Neeraj Thepoet   (नीरज Neer)
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Joined 8 September 2017


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30 OCT 2022 AT 17:53

गाँव को छोड़ कर शहर आना पड़ा
भूख को है फ़क़त मुफ़्लिसी की समझ

*मुफ़्लिसी- गरीबी

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30 OCT 2022 AT 14:35


हुस्न पर आ नही सकता है दिल मिरा
मेरी आँखों को है सादगी की समझ

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28 OCT 2022 AT 17:07

दूब जैसी उग गयी बेटों के बीच
बेटियाँ बढ़ती हुई सी घास हैं

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28 OCT 2022 AT 17:06

दूब जैसी उग गयी बेटों के बीच
बेटियाँ बढ़ती हुई सी घास हैं

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27 OCT 2022 AT 15:41

सखी हर्गिज़ न अब मैं 'सूट' पहनूँगी
घड़ी में फिर दुपट्टे को फसा देगा

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26 OCT 2022 AT 12:46

ज़ोर चलता है औरत पे सो मर्द ख़ुश
बीवी पे ख़त्म मर्दानगी की समझ

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25 OCT 2022 AT 10:35

वर्ना किसको हक़ है बिन मर्ज़ी छू ले
नाज़ुक रिश्ता है झुमके का गर्दन से

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22 OCT 2022 AT 9:58

खुले आसमाँ के नीचे
एक कदम की दूरी पर सब है

सब यानी दुनियादारी!

मैं यहाँ अपना 'कुछ' लेकर आया हूँ
कुछ में बस प्रेम होता है

तुम भी बस इसी 'कुछ' को साथ लाना!

हम अभी भी बचा सकते हैं एक- दूसरे को खर्च होने से,

'ख़ाली-पन बस प्रेम से भरता है'

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16 OCT 2022 AT 22:31


मैंने उससे सबकुछ कहा है
सिवाए इसके कि 'मैं तुमसे प्रेम करता हूँ'

बदले में चाहा कि वो कुछ भी न समझे
सिवाए इसके कि ' मैं उससे प्रेम करता हूँ'

हमेशा मैं बस इतना ही चाहूँगा
वो मुझे कवि नही प्रेमी समझे

प्रेम को जीने वाला मन ही बस
कविता को 'प्रेम- पत्र' समझ सकता है.

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14 OCT 2022 AT 12:11


सजा लो गेसुओं में फूल समझो गर
किताबों में पड़ा मुर्झा गया हूँ मैं

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