Kavita Verma   (Kavita verma)
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Joined 7 February 2021


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3 MAY AT 22:39

कैसे कह दूं जुदा हो गए हो तुम मुझसे? नज़र नहीं आते पर नज़र में हो तुम ही।।
कैसे कह दूं जुदा हो गए हो तुम मुझसे? मेरी हसीन यादों में जो बसे हो तुम ही।।

मेरी बातों में-मेरी रातों में-मेरी ख्वाबों में, मेरी सुबह-शाम और खयालों में तुम ही।
इक पल भी जुदा ना हुए हो मेरे हमनवां, मेरी हसीन यादों में जो बसे हो तुम ही।।

रात अंगड़ाई लेती भी होठों पर तेरा नाम, नभ में देखूं चांद तो दिखते केवल तुम ही।
तारों सी चमक भर जाती है मेरी आंखों में,मेरी हसीन यादों में जो बसे हो तुम ही।।

पवन का वेग चलती जैसे दसों दिशाओं में, मेरी सांसों के प्राणाधार हो तुम ही ।
यादों की बारात दस्तक देती मेरे दिल पर, मेरी हसीन यादों में जो बसे हो तुम ही।।

खिल उठती है जैसे कलियाॅं-देख सूरज, मेरे अधरों की मुस्काती कलियाॅं तुम ही।
महकती है तुमसे मेरी दिल की गलियाॅं, मेरी हसीन यादों में जो बसे हो तुम ही।।

तेरी यादों के सहारे ही चलती मेरी जीवन, तेरी बाहों में सिमटती है मेरा मन।
गदगद होती तेरी यादों में डुबकी लगा, मेरी हसीन यादों में जो बसे हो तुम ही।।

कैसे कह दूं जुदा हो गए हो तुम मुझसे? नज़र नहीं आते पर नज़र में हो तुम ही।।
कैसे कह दूं जुदा हो गए हो तुम मुझसे? मेरी हसीन यादों में जो बसे हो तुम ही।।

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3 MAY AT 22:04

अंधेरा हो जब-जब अपनों के मार से,
अंधेरा हो जब मुश्किलों की धार से।
अंधेरा हो जब परेशानियों की हार से,
परंतु अंदर की रौशनी जलाये रखना।।

दिखेगा ना कुछ-जब पीड़ा बहुत होगी, थकेगा मन और आंखें भी बहुत थकेगी।
होगा जब मन के अंदर-बाहर घोर अंधेरा, इक कोने में अंदर की रौशनी जलाये रखना।।

व्याकुल और व्यथित होगा जब मन,
बरसेगा आंखों से जब बेहद सावन।
कोलाहल के काले मेघ जब ढकेगा मन,
इक कोने में अंदर की रौशनी जलाये रखना।।

कभी घेर लेगी जब अमावस की काली रात, कभी घेर लेगी जब लोगों की कड़वी बात।
कभी घेर लेगी जब नकारात्मक अंधकार,अंदर उम्मीद की रौशनी जलाये रखना।।

कभी छा जाएगा जब आंखों के आगे अंधेरा,
ना दुनिया नज़र आएगी और ना ही कोई सवेरा।
तिलमिला उठेगी जिया नफ़रत के अंधकार से,
तब भी-इक कोने में अंदर की रौशनी जलाये रखना।।

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2 MAY AT 15:00

बेफिक्री से सर रखकर तेरी बाहों में, मैं सुकून की मीठी नींद में सो जाती हूं।
कल-कल करती नदियां मीठे गीत सुनाती, मैं तेरे हसीन ख्वाब में खो जाती हूं।।

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1 MAY AT 10:08

चल पड़े हो बेसूध सुनसान डगर पर, मालूम भी है किधर जाना है तुमको?
मंजिलें यूं आसानी से तो मिलती नहीं, मालूम भी है कि क्या पाना है तुमको?

सुहावनी डगर पर रूक न जाना कहीं,ख़ूबसूरत मोड़ पर खो न जाना कहीं।
झिलमिलाते व्यर्थ विचारों के धुंध में, मंज़िल से पहले ठहर न जाना कहीं।।

कभी मेघ के गुर्राती गर्जना, कभी बिजलियों की चमक बहुत डराएगी तुमको।
कभी तेज तूफानी बारिश राह रोकेगी, कभी रास्ते स्वयं ही भटकाएगी तुमको।।

रास्ते तो बहुत है मन को भटकाने को ,मगर मालूम हो किधर जाना है तुमको।
दृढ़ संकल्प हो केवल अपनी मंज़िल पर, अंतर्मन सही राह दिखाएगा तुमको।।

पार कर जाओगे जब हर मुश्किल बधाओं को, यही रास्ते फूल बरसाएंगे तुम पर।
किधर जाना है तुमको बस ये मालूम हो, मेहनत प्रबल और हो भरोसा खुद पर।।

चल पड़े हो बेसूध सुनसान डगर पर, मालूम भी है किधर जाना है तुमको?
मंजिलें यूं आसानी से तो मिलती नहीं, मालूम भी है कि क्या पाना है तुमको?

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30 APR AT 20:44

ज़िंदगी की दौड़ में शामिल सभी, जीत हासिल को संघर्ष है सतत ।
गर्भस्थ शिशु से मृत्यु शैया तक, प्रतिभागी सभी संघर्ष है अनवरत।।

श्वांस में श्वांस प्रतिपल श्वांस के लिए, सबका श्वांस से है संघर्ष ।
ज़िंदगी की दौड़ में सहज जीत है कहां, स्वयं से ही है बहुत संघर्ष ।।

सुख चैन सुकून की तलाश में, सुख चैन त्याग ज़िंदगी भर भागते।
तन - मन पर ध्यान नहीं, ज़िंदगी की दौड़ में बस भागते ही भागते।।

क्या पाना है-क्या खोना इसका, तनिक एहसास नहीं-बस भागते हैं।
ज़िंदगी की दौड़ में भागते-भागते, जो जीतना है वही भूल जाते हैं।।

धन संपदा ऐश्वर्य बेशक सुकून से जीने के, हमारा मूलभूत आधार है।
परंतु ज़िंदगी की दौड़ में जीतने के लिए, परमात्म याद ही धार है।।

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30 APR AT 10:08

क्या सजना क्या संवरना, चूड़ी बिंदिया कंगन सब फीके हैं।
प्यार बिना सब सूना-सूना लगता, क्या करना अब जीके है।

कैसे बताएं ये अकेलेपन की कठिनाई, काटने को दौड़ती है।
सुबक-सुबककर रोती है मन, और आंखें प्यार को तरसती है।।

प्यार बिना सब सुना लगता, जीवन अंधकार सी नज़र आती है।
मकसद ना मिलती जीने को अब, अंतर्मन प्यासी रह जाती है।।

ठिकठ जाते हैं कदम, घर से भी तनिक-पांव बाहर निकालने से।
कैसे रोकूं सबकी घूरती नज़रे, कैसे रोकूं खुद को कतराने से।

महफूज़ लगता है प्यार के साथ, और सुकून मिलती है जीने में।
प्यार बिना सब सूना-सूना लगता, रास नहीं आता अब जीने में।।

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29 APR AT 9:44

मुझे प्रोत्साहित करने के लिए
बहुत-बहुत आभार दीदी जी

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27 APR AT 22:40

भ्रांति की धुंध में मंज़िल आता नहीं नज़र, खड़ी हूं मैं दो राहों में ।
दिल की फ़रियाद सुनो प्रभु जी, ले लो मुझे अपनी पनाहों में ।।

खोल दे मेरे बंद आंखों का द्वार, जला कोई उम्मीद का चिराग।
दिल की फ़रियाद सुनो प्रभु जी, अंतर्दृष्टि में हो तेरा ही अनुराग।।

शंका ना हो तुझे चुनूं या दुनिया को, दिखा कोई ऐसा कमाल।
दिल की फ़रियाद सुनो प्रभु जी, जीवन में हो बस तेरा ही धमाल।।

दिखा सकूं इन आंखों से जैसा तू दिखता है, भर दो शक्ति अपार।
मन में हो निर्मलता , अधरों की मुस्कान‌ में खुशियों की अंबार।।

ज्ञान सूर्य से दूर कर दे धुंध, बांट सकूं जग में तेरे दिए सभी उपहार।
दिल की फ़रियाद सुनो प्रभु जी, बनूं मैं सदा सर्वदा तेरे गले का हार।।

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16 APR AT 8:34

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8 APR AT 22:58

जो दर्द की गहराई को भी शब्दों में पिरो दे।
दर्द इतनी कि दर्द भी अपनी बेबसी पे रो दे।
लिखते हैं बेहद कमाल के दर्द भरी शायरी,
दुआ है कि किस्मत मंजिल तक पहुंचा दे।।

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