कितना
सुकून मिलता है ना ,
जब जीवन के संघर्षों
से थककर ,
एक दिन-दिल से ,
खुद को ,
मां प्रकृति की गोद में,
किसी अबोध
बालक की तरह
सौंप देते हैं।
तब प्रकृति भी ,
हमें अपने संतान की तरह ,
अपनी आगोश में लेकर ,
अपनी संपूर्ण शक्ति से
सराबोर कर देती है ।
और जीवन के रहस्यों के साथ
सार्थकता का बोध कराती है।
क्योंकि,
हम उनकी संतान हैं,
और उनकी सुरक्षा
हमारी जिम्मेदारी ।-
कैसे कहूं ?
मैं -मिरे ,
जज़्बात ।
कि जब भी तुम
मेरे साथ
होती हो,
मेरे जीवन के
मरूभूमि में
तपते तड़पते
मन को
सावन की
ठंडी फुहार
सी लगती हो।
क्या तुम यूं ही,
मेरा साथ निभाओगी
उम्र भर?-
जब बाह्य शोर से ज्यादा, अंदर की खामोशी शोर मचाती है ।
बैठ शून्य में शून्य को देखते, प्रकृति में विलीन हो जाती हूं।।
अंतर्द्वंद की अनंत लहरें आती-जाती विचलित करती मन को।
भयभीत मन को स्थिर करने, प्रकृति में विलीन हो जाती हूं।।
कभी दुख संताप की अश्रुधारा, सुनामी की भूचाल लाती है।
ठहराव की चाहत में बस, मां प्रकृति में विलीन हो जाती हूं।।
नि:संकोच समा लेती है मुझे, मेरे अनगिनत बुराइयों के साथ।
स्थिर कर व्याकुल मन को मेरे, अपार शांति प्रदान करती है।।
मेरे हर उलझनों का जवाब, मां प्रकृति की गोद मिल जाती है।
जब मेरी और मां प्रकृति की ऊर्जा, एक धारा में मिल जाती है।।
कभी उनकी अपार शांति, कभी चिड़ियों की गुनगुनाती संगीत।
मैं खुद को खोकर उनमें ही खो जाती हूं तब खुद को ही पाती है।।-
इन यादों की भी बड़ी अजीब दास्तां है,
इन यादों की भी बड़ी अजीब दास्तां है ।
किसी खास के साथ बिताए हुए लम्हे,
अक्सर
बिछड़ने के बाद उन्हीं लम्हों में याद आते हैं।।-
कई दफा छूप जाती है सिसकियां किवाड़ के पीछे,
झांकते कभी मन बहलाने, सहमें कदम हट जाते पीछे।
खामोश हो जाते लब्ज़ सील जाते हैं होंठ खुद ब खुद,
दहलीज पार करते ही खींच लेते हैं ये बेड़ियां पीछे।।
सूनी आंखें तरसती धवल खुले आसमां को तांकने ,
बंदिशों का जोर आजमाकर खींच देते कदम पीछे ।
मन उन्मुक्त परिंदों सा ऊंची-ऊंची उड़ान भरना चाहे,
काटकर उम्मीदों के पंख खींच लेते हैं कदम पीछे ।।
चार दिवारी से घिरे अंधेरों में डरावनी चीखों का शोर,
दहलते दिल को डराकर खींच लेते हैं कदम पीछे ।
किवाड़ के दरारों से आती सूर्य की पतली सी किरण,
उम्मीद की झलक दिखलाकर खींच लेते कदम पीछे ।।
साहस कर भागते कदम जब किवाड़ पर आकर रुके ,
मायूस दिल बिना इजाजत खींच लेते के कदम पीछे।
बन जाते ये किवाड़ ही रोड़ा और आंसुओं का सहारा,
टूटते हौसले ही अक्सर खींच लेते है ये कदम पीछे।।-
कि चलती नहीं आंधियां यूं ही बेखबर होकर,
कुछ तो जुनून उसके सीने में भी होता होगा...-
जब भी तुम कहते हो मैं साथ हूं तुम्हारा, दिल को बहुत सुकून मिलता है।
अब तमन्ना नहीं है कुछ और पाने की, तेरा होना ही मुझे आराम देता है।।-
शीर्षक:- एक पेड़ मां के नाम
भूगर्भ में जैसे खुद को समेटे,
जड़ों की भांति बांध लेती ।
पूरा परिवार बंधा जिसमें,
सुखमय सुंदर संसार देती ।।
चली बयार की भांति बहता प्रेम ,
जीवन को दिशा दे संवार देती ।
मां की ममता अविरल निश्चल ,
ऑक्सीजन भांति श्वांसो को प्राणाधार देती ।
चलो करें जीवन में एक नेक काम,
सहयोग दे प्रकृति को एक पेड़ मां के नाम।
चलो करें जीवन में एक नेक काम,
सहयोग दे प्रकृति को एक पेड़ मां के नाम ।।
फुल पीस रीड इन द कैप्शन
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तेरी मौजूदगी मुझमें सुकूं की बहती धारा ,
प्रेम का समन्दर जैसे आनंद का किनारा ।
निहारती रहूं बस तुम्हें आंखों में बसा लूं ,
तुम हो तो लगता प्यारा ये ज़हान सारा ।।
तेरी मौजूदगी में है खुशियों की खनक ,
झूमती हूं ऐसे जैसे पायल की झनक ।
बरसती है मुझमें रिमझिम प्रणय वर्षा ,
दमकता है चेहरा मेरा जैसे कोई कनक ।।
तेरी मौजूदगी से शब्द खामोश हो जाते ,
दिल की बातें तो बस ये आंखें ही कहते ।
सुनाई देती है इन धड़कनों में तेरी शोर ,
तेरी मौजूदगी से बेकल दिल मचल-उठते।।
तेरी मौजूदगी मुझे खुद पे यक़ीं दिलाती है,
तू है तो सब कुछ मिला ख्वाहिशें सजाती है।
ज़िंदगी यूं आसां नहीं होती तेरे बिना रहबर,
तेरी मौजूदगी मुझे मखमली एहसास कराती है।।
तेरी मौजूदगी मुझमें साहस भर देती है,
उमंगों के नए आयाम पंख लगा देती है ।
होता है मुझमें इक नई शक्ति का संचार,
तेरी मौजूदगी मुझे-मुझसे मिला देती है।।-
मानव मन कितना पागल है ,परछाई के पीछे भागता है ।
मृगतृष्णा है यह दुनिया ,क्यों नहीं भगवान को भजता है।।
खुद को मोह पास में बांधकर , दूसरों को भी मोह पास में बांधता है।
जिसे प्यार कहते है लोग, वही प्यार जंजीरों में जकड़ता है।।
रुपया पैसा धन दौलत शोहरत में ,
न जाने कितना अकड़ता है ।
मोक्ष की चाहना छोड़ क्षणिक सुख में ,
बुलबुले सा अधिकाधिक उछलता है।।
ज्यों ज्यों बीते हैं जीवन के क्षण ,
वृद्ध शरीर में ईश भजन करता है ।
जो ना संभले खुद का शरीर तो फिर,
मानव मन ही मन में बिफरता है।।
मृत्यु शैयां पर लेटे अतीत के पन्नों में,
दुख भरी कर्मों पर अश्रु बहाते रहता है ।
जिसके पीछे लगा दिया सारा जीवन,
आज वही पल घुट- घुट खलता है।।
पश्चाताप के सिवा ना कुछ बचता है,
मोक्ष प्राप्ति को फिर बहुत बिलखता है।
अंत में जीवन भर जो किया वही कर्म ,
मरणोपरांत भी पीछा करता है।।
समय रहते समझ लो जीवन की गहराई,
थोड़ा-थोड़ा कर लो पुण्य की कमाई।
कुछ भी नहीं साथ जाने वाले बन्धु,
एक ईश्वर को बना लो जीवन की परछाई।।-