तेरी मौजूदगी मुझमें सुकूं की बहती धारा ,
प्रेम का समन्दर जैसे आनंद का किनारा ।
निहारती रहूं बस तुम्हें आंखों में बसा लूं ,
तुम हो तो लगता प्यारा ये ज़हान सारा ।।
तेरी मौजूदगी में है खुशियों की खनक ,
झूमती हूं ऐसे जैसे पायल की झनक ।
बरसती है मुझमें रिमझिम प्रणय वर्षा ,
दमकता है चेहरा मेरा जैसे कोई कनक ।।
तेरी मौजूदगी से शब्द खामोश हो जाते ,
दिल की बातें तो बस ये आंखें ही कहते ।
सुनाई देती है इन धड़कनों में तेरी शोर ,
तेरी मौजूदगी से बेकल दिल मचल-उठते।।
तेरी मौजूदगी मुझे खुद पे यक़ीं दिलाती है,
तू है तो सब कुछ मिला ख्वाहिशें सजाती है।
ज़िंदगी यूं आसां नहीं होती तेरे बिना रहबर,
तेरी मौजूदगी मुझे मखमली एहसास कराती है।।
तेरी मौजूदगी मुझमें साहस भर देती है,
उमंगों के नए आयाम पंख लगा देती है ।
होता है मुझमें इक नई शक्ति का संचार,
तेरी मौजूदगी मुझे-मुझसे मिला देती है।।-
मानव मन कितना पागल है ,परछाई के पीछे भागता है ।
मृगतृष्णा है यह दुनिया ,क्यों नहीं भगवान को भजता है।।
खुद को मोह पास में बांधकर , दूसरों को भी मोह पास में बांधता है।
जिसे प्यार कहते है लोग, वही प्यार जंजीरों में जकड़ता है।।
रुपया पैसा धन दौलत शोहरत में ,
न जाने कितना अकड़ता है ।
मोक्ष की चाहना छोड़ क्षणिक सुख में ,
बुलबुले सा अधिकाधिक उछलता है।।
ज्यों ज्यों बीते हैं जीवन के क्षण ,
वृद्ध शरीर में ईश भजन करता है ।
जो ना संभले खुद का शरीर तो फिर,
मानव मन ही मन में बिफरता है।।
मृत्यु शैयां पर लेटे अतीत के पन्नों में,
दुख भरी कर्मों पर अश्रु बहाते रहता है ।
जिसके पीछे लगा दिया सारा जीवन,
आज वही पल घुट- घुट खलता है।।
पश्चाताप के सिवा ना कुछ बचता है,
मोक्ष प्राप्ति को फिर बहुत बिलखता है।
अंत में जीवन भर जो किया वही कर्म ,
मरणोपरांत भी पीछा करता है।।
समय रहते समझ लो जीवन की गहराई,
थोड़ा-थोड़ा कर लो पुण्य की कमाई।
कुछ भी नहीं साथ जाने वाले बन्धु,
एक ईश्वर को बना लो जीवन की परछाई।।-
कैसे बयां करें दिल के दर्द अब,
जो मरहम लगाने वाले थे वहीं अब घाव करने लगे हैं ।
जो कहा करते थे अक्सर- इश्क़ हैं तुमसे बेपनाह,
आज वही अपने इश्क को परखने लगे हैं।।-
जो दिल मिलते नहीं इस ज़मी़ पर ,
अक्सर आसमाॅं में वो मिला करते हैं।
गुफ्तगू होती दुनिया से बेफिक्र हो,
अरमान सितारों से सजा करते हैं ।
आसां कहां है इश्क की दुनिया में,
दो दिलों को अंगार मिला करते हैं।
मासूम सा इश्क़ जब परवान चढता,
अक्सर ये दुनिया ही जला करते हैं ।
बेताबी कब-कब कौन समझ पाया?
इक नज़र भर से करार मिला करते हैं।।
दूर होते भी दोनों एक जैसे अवनी-अंबर,
जो दूर क्षितिज पर हमेशा मिला करते हैं।
किस्मत के तराने भी क्या खूब कहे,
कैसे इश्क़ का सिला- मिला करते हैं।
जो किस्मत में नहीं बेइंतेहा इश्क़ उससे,
इश्क़ की कश्तियां अक्सर डूबा करते हैं।
जो दिल मिलते नहीं इस ज़मी़ पर ,
अक्सर आसमाॅं में वो मिला करते हैं ।-
प्रेम की श्रेष्ठतम उच्चतम शिखर
तब तक नहीं मिलता
जब तक संपूर्ण समर्पण नहीं होता-
1.लड़का:-
मोहब्बत की राहें आसान नहीं है ,
कांटे ही कांटे फूल खिलते नहीं है ,
क्या तुम चलोगी साथ मेरे हमदम ?
लड़की:-मोहब्बत में मुश्किल हो कितनी चाहे ,
फूल मिले या कांटे बिखरे राहे ।
तेरे संग संग चलूॅं मैं ,(2)
दे हाथों में हाथ और थामें तेरी बांहें ।।
2.लड़का:-
हर बढ़ते कदम पे इम्तिहान खड़ी है ,
जीत जाए एक तो दूसरी कड़ी है ,
क्या तुम चलोगे साथ मेरे हर पल?
लड़की:-इम्तिहान सारी पास कर जाऊंगी ,
तू जो साथ मेरे सारी जीत जाऊंगी ।
तेरे संग संग चलूॅं मैं ,(2)
तुमसे किया हर एक वादा निभाऊंगी ।।
3.लड़का:-
दिल एक है मेरा बार-बार जीत लेती,
बैठूं मैं सारी ज़िंदगी तेरे प्यार की कस्ती।
तेरे संग- संग चलूॅं मैं ,(2)
तुमसे ही मैं हूं और तुम्ही से मेरी हस्ती।।-
कंगन कर कनक काजल कुंदन, शोभित स्त्री मुखमंडल।
कवि काव्य की धार मधुरस, झनक कनरस लागे सुंदर।।
कवि कल्पना प्रेयसी अप्सरा, स्त्री सत्य स्वर्ग की द्वार है ।
राग अनुराग रवि तेज मस्तक, मन मस्त मलंग मल्हार है ।।
आभा अलौकिक अति हर्षाए, आनंद अधिकाधिक भाए।
स्त्री सुमधुर सुहाषिनी वाणी, प्रेम हृदय में प्रगाढ़ समाए।।
साज-साध साथ प्रेम साधना, सुदृढ़ कर मन में आराधना।
विश्वास विशाल वरदान है, पथ जटिल जो वन हो घना।।
प्रेम पराकाष्ठा पूजित जब मन में, पावन पावस गंगाजल ।
पुष्पित पल्लवित परिपूर्ण स्वयं में, जीवन होता सफल।।-
इस फरेबी दुनिया में, हर चेहरे पर नकाब है ।
मन में है ईर्ष्या कटुता, अहंकार भरे रूआब है ।।
जलता है भीतर भीतर, चेहरे पे फरेबी मुस्कान है ।
बच के रखना क़दम, सरे राह कांटों की बिसात है ।।
इस फरेबी दुनिया में, पलक झपकते बदलते किरदार है।
जिसकी जिव्हा चाटुकारिता, रिश्ते उससे ही सरोकार है ।।
रंग है जितने दुनिया में, चेहरे पे उससे ज़्यादा भरमार है।
जो है सच्चा सीधा-साधा, जीना उसका दुश्वार है।।
इस फरेबी दुनिया में, कोई नहीं है अपना कहने को।
सभी मतलबी स्वार्थी, सच्चा साथी ढूंढना बेकार है।।
कब कौन कैसे खंजर घोपे-पीठ पर, कह नहीं सकते।
अमृत जैसे रिश्तों के आड़े, विषैले सांपो की फुंकार है।।
हर तरफ छल कपट, झूठा चमक-दमक आधार है।
शीश महल सा हर तरफ छलावा, सच तो निराधार है।।
इस फरेबी दुनिया में, ना कर यक़ीन खुद के सिवा।
सच तो है जो एक ईश्वर, वही मार्ग वही मंज़िल सार है।।-
खिले खुशियों के फ़ूल हमारी राहों में ,
जब से मिली है ज़िंदगी तेरी पनाहों में ।
बाग़बान तू संवारता हर रंग से मुझको ,
महकता है जीवन का हर क्षण तेरी बाहों में ।।
मिट गया है अंधकार मन का सारा, खिले खुशियों के फ़ूल सूरजमुखी सा मन हमारा ।
आन बसे सूरज सा प्रतिपल मेरी निगाहों में ,खिलखिलाती जीवन तुमसे आभार तुम्हारा ।।
रंग गया है तन-मन तुमसे मनभावन प्रियतम ,
भीगा है अंतर्मन का सरोवर तुम्हारी मीठी बातों से ।
खिले खुशियों के फ़ूल बसंती पलास सा ,
राहत मिली है मन को दुनिया की कांटों से ।।
सिखलाया है तूने जीवन में रंग प्रेम का भरना ,बाग़वान सा जीवन बगिया को निखारना ।
खिले खुशियों के फ़ूल कभी गुलाब-कभी कमल सा, कभी रात कुमुदिनी सी खिलना।।
प्रभु तुम्हारी छत्रछाया में है सुकून का दरिया,
मंज़िल तुम अब चाहत नहीं है किनारो से ।
जब से मिली है ज़िंदगी तेरी पनाहों में ,
खिले खुशियों के हजार फ़ूल हमारी राहों में ।।
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