चल पड़े हो बेसूध सुनसान डगर पर, मालूम भी है किधर जाना है तुमको?
मंजिलें यूं आसानी से तो मिलती नहीं, मालूम भी है कि क्या पाना है तुमको?
सुहावनी डगर पर रूक न जाना कहीं,ख़ूबसूरत मोड़ पर खो न जाना कहीं।
झिलमिलाते व्यर्थ विचारों के धुंध में, मंज़िल से पहले ठहर न जाना कहीं।।
कभी मेघ के गुर्राती गर्जना, कभी बिजलियों की चमक बहुत डराएगी तुमको।
कभी तेज तूफानी बारिश राह रोकेगी, कभी रास्ते स्वयं ही भटकाएगी तुमको।।
रास्ते तो बहुत है मन को भटकाने को ,मगर मालूम हो किधर जाना है तुमको।
दृढ़ संकल्प हो केवल अपनी मंज़िल पर, अंतर्मन सही राह दिखाएगा तुमको।।
पार कर जाओगे जब हर मुश्किल बधाओं को, यही रास्ते फूल बरसाएंगे तुम पर।
किधर जाना है तुमको बस ये मालूम हो, मेहनत प्रबल और हो भरोसा खुद पर।।
चल पड़े हो बेसूध सुनसान डगर पर, मालूम भी है किधर जाना है तुमको?
मंजिलें यूं आसानी से तो मिलती नहीं, मालूम भी है कि क्या पाना है तुमको?
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