मैं शांत समंदर सी 'सहर'   (Sunita ❤️ K ❤️🗒🖋)
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Joined 7 July 2022


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एक तलब तेरी आगोश की
है तुझसे ख्वाइश सुकून की

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तोहमतें कितनी लगाई
मेरे वजूद पर
जब बारी खुद की आई
बहाना अश्कों का
क्या खूब आया है

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कब से सूनी थी तुम बिन अंखियां मेरी
प्रीत के काजल से सज गईं पलकें मेरी

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आ भीग ले मोहब्बत की बारिश में हम दोनों
फिर मिलेंगे यह भादों अगले बरस हमें भीगने को

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क्या होती है
प्रेम की अनुभूति....

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खिला कभी अपने हाथों से पानी पूरी
तेरे हाथों के चटखारों की तलब जो है

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हृदय तरंगों में झंकृत होता तुम्हारा प्रेम
इस देह पर सौंदर्य के राग छेड़ जाता है...

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झर रही है देखो शाखाें से रोशनी चांद की
बिखरा दी है कदमों में उसने चांदनी फूलों की

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चलो मौन तुम्हें मैं लिपिबद्ध करूं....

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यह वसन
बन लिपटा है
जल देह पे
मेरी.....
मूंद के नैना
मैं बस
छवि निहारूं
तेरी.....

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