जिस शहर में इंसा आस्तीन में छुरी छिपा मुलाक़ात करता है,
उस शहर में इक नादां गैरों से दिल की बात करता है।-
"आपने उनको गिरफ्तार क्यों किया?"
"उनके मुँह में राम था।"
"तो?"
"तो बगल में छुरी होने की आशंका थी।"-
प्यार से दिल मांग लेती वो, तो से देते हम…(2)
पर उसका यूं दिल पे छुरियां चलना, तो जुल्म सा ढा गया है।-
बात अगर ज़रूरत की हो,
तो मीठी ज़बान भी तीख़ी छुरी होती है,
और जायज़ बात न बोला करो एे लोगों,
अब सच्ची बातें भी बुरी होती हैं...-
हर छुरी रखने वाले को हम अपना कह देते हैं
बड़ी मासूमियत से हम कातिलों के बीच रह लेते हैं-
आज तुझसे नहीं शायद खुद से ही मेरी रुसवाई है
तुझसे करके प्यार मैंने ज़िंदगी में पायी सिर्फ़ तन्हाई है
दामन छुड़ा के प्यार का मेरे तूने अपनी दुनिया बसायी है
मैंने समजा तुझे हमसफ़र अपना तू निकला हरजाई है
हर कसम को मैंने जान से भी ज्यादा निभाया है
फ़िर भी जाने क्यों प्यार में मेरे तुझे कमी नज़र आयी है
ना कोई शिकवा तुझसे ना गीला ये वफा मेरी कर पायी है
मोहब्बत की इन रहो ओए मैंने हर पल ठोकर ही खायी है
किस से बयान करूँ दर्द दिल का आँखो में नमी सी छायी है
जिस पे था यकीन मुझे उसी ने दिल पे छुरी चलायी है
इस बेरहम दुनिया पे अब भरोसा मत करना तू 'शगुन'
चारों और नज़र आती अब मुझे सिर्फ़ और सिर्फ़ बेवफ़ाई है
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दिल में दिया जो ज़ख्म आपने
किसी तेज छुरी के लगने जैसा है
फ़िर झूठा दिखावा प्यार का किया जो आपने
वो वाकई घाव में नमक लगने जैसा है
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उसकी अदाएं हमारा कत्ल कर जाए।
वो जब भी आए दिल पर खंजर चलाएं।।
तो क्यों ना एक बारी हमारी भी आए।
हम शिकारी और वो शिकार बन जाए।।-