सरेआम ईमान बिक जाते, शोहरत की होड़ में,
जो सारे लोग कल तक तेरे थे, वो आज मेरे है।-
क्या क्या नहीं चखा दिया था जीवन ने
अब तो क्या दवा क्या ज़हर,
ना किसी का स्वाद महसूस होता था
और ना ही असर!
.....अनुशीर्षक पढ़ें.....-
हाँ, साहब मैं गंवार हूँ
अच्छा हुआ मैंने ऊँची ऊँची डिग्रिंया नहीं पाई है
उन बड़े-बड़े नाम वालों विश्वविद्यालय से
जहाँ सिखाई जाती हैं, चाटुकारिता
और किसी खास वर्ग के अर्थ के लिए
निरर्थक बातों को लोगों पर थोपना
हाँ साहब, मैं गंवार ही हूँ
मेरी डिग्रीया भी ख़रीदी नहीं गई है
मैं तो इसे छिना हैं, लड़कर और मरकर
मैंने सिखा हैं, लड़ना उन चाटुकार तुच्छे लोगों से
जिसे तुम्हारे सभ्य समाज में गंवारपन कहा जाता है
वक़्त का इंतेज़ार है
जब ख़ामोश हो जाएगी ये चाटुकारिताएं
और सुनी जायेंगी, लड़ी जाएंगी
गवारों की फ़ौज के संग-संग
लिखनें को एक नई धारा
मैं गंवार हूँ साहब
मेरी बातों पर ध्यान न देना
पढ़कर भी हैं, तुम्हें ख़ामोश ही रहना
असभ्य समझकर छूटेंगे तुम्हारे मन में हँसी
इस हँसी को देखता हूँ,
कब-तक हैं, तुम्हें बरकरार रखना-
सावधान! ये नया हिंदुस्तान है ध्यान रहे यहाँ:
1)रूपये की और प्रधानमंत्री की गिरती इज्ज़त पर बात न हो।
2)किसान और बेरोजगारों की आत्महत्या पर बात न हो।
3)डीजल-पेट्रोल के बढ़ते भाव पर बात न हो।
4)रेलवे में खुली लूट पर बात न हो।
5)दो करोड़ नौकरियों पर बात न हो।
6)गिरते हुए बाज़ार पर बात न हो।
7)दाल-टमाटर-प्याज पर बात न हो।
8)बंद हो गए विदेशी निवेश पर बात न हो।
9)घटते जा रहे निर्यात पर बात न हो।
10)चौपट अथ-व्यवस्था पर बात न हो।
11)बर्बाद कानून-व्यवस्था पर बात न हो।
12)बढ़ती महंगाई पर बात न हो।🤫-
जिन्होंने शोहरत के आगे तवज्ज़ो न दी दोस्त- यारों को,
उन्हें भी शिकायत है कि ज़माने में हमें वफ़ादारी न मिली।-
चाटुकार का आचरण मालिक का गुण गाये,
ज्यों धतूरा खायके मादकता अधिकाय !-