जब खुद को बार बार यकीन दिलाना पड़ जाए
तो समझ लीजे शक का गृह-प्रवेश हो चुका है-
"गृहप्रवेश के वक्त
घर के मुख्य द्वार पर ली गयी
नववधू के हाथों की छाप
जीवनपर्यंत उनके कृत्यों को
उजागर ना करने की
'क्षतिपूर्ति' मान ली जाती है..!"-
घर की इन दीवारों में अब मीठी मीठी यादें बस्ती हैं
घर के कोनों की धूल में प्यार की खुशबू बस्ती है
हो गया वर्ष एक पूरा इस आंगन में रहते हुए
फिर भी ना जाने क्यों कल ही की बात लगती है।
ढेर सारी यादें बस्ती हैं खुशियों के इस झरोखे में
एक एक कर समय की सीढ़ियों पर कदम रखे है
इन सफेद रंगी दीवारों पर निशान यादों के लगे
तो कभी इन्ही ऊंची दीवारों पर फोटो फ्रेम टंगे हैं।
अपने इस आशियाने को खुद ही सजाया है
कभी परदों से तो कभी बंदनवार से नवाजा है
इस घर को महल बड़े बड़े ख्वाबों से बनाया है
और अपनों के साथ रहकर एक वर्ष बिताया है।-
तिनका -तिनका कर इकट्ठे बना आया ..!!
यूँ घोंसला छोड़ आया उस डाल पर ..!!
गर भूल से भी आएं तो गृह प्रवेश सा हो जाए..!!-
"गृह प्रवेश"
औंदी जद वारी नवी बहु दे गृह प्रवेश दी,
बड़ी धूम-धाम नाल कराया जांदा ए,
लष्मी दा रूप बन आयी आ नवी बहु,
आरती उतार कलश पूजा कर पैरा दी छाप उतारी जांदी आ,
शगुणा नाल झोलियाँ भरिया जांदिया ने,
हर किसी नु चहिदी बहु दे रूप विच लष्मी,
फिर क्यू कूख विच धिया मारिया जांदीया ने,
क्यों ओह लष्मी दा रूप नही जिसनू तुसी बहु बना के ल्यान्दे ओ,
क्यों किसी धी-रानी दे जन्म ते खुशिया क्यों नई मनाउंडे ओ,
क्यों उसदी आरती उतार कलश पूजा करनी भूल जांदे ओ,
क्यों उसदा गृह प्रवेश कर उसदे पैरों दी छाप नही लेंदे ओ,
आज दी धी ही कल किसे दी बहु बनूगी,
आज ओह लष्मी दा रूप ले के ताड़े घर आऊँगी,
आप जी दे घर नु मंदिर बनाऊँगी,
सिर्फ बहु दा गृह प्रवेश न करो लोकों,
जिस धी-रानी ने जन्म ले के घर औना उसदा वी गृह प्रवेश कराओ,
न मारो धीया नु कूख विच जन्म लेन दा उसनु वी अधिकार है,
जे आज जन्म नही लेन देओगे धी-रानी नु ते कल बहु किथो लाओगे,
अपने पुत्रा दी फ़ौज बना के उन्हा दा विआह किथो रचाओगे,
उन्हा दा की फिर आचार पाओगे।।-
एक दुल्हन ........
ख्वाबों का शॉल ओढ़कर
उम्मीद की चांदनी में लिपटकर
कल्पना के सुर्ख रोचन
लगे पैरो से.......
आंखो में आसमानी चमक लिए
विश्वास के दूल्हे का हाथ थाम के
आशा के दीपक के आरते के साथ
एक दुल्हन ........
ससुराल के आंगन मे
करती है ग्रह प्रवेश
ये होगा नसीब उसका
मिलेगी बगिया फूलों की
या कांटों का दरवेश।
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आज आशियाना बदल रहा हूँ मैं
घर समेटा जा रहा है
एक - एक, कोना खाली हो रहा है
और भी उदास,
बस सिसकी लेने को हो
जरा -सा देख लूँ तो फफक पड़े
लेकिन उस घर की
दीवारों को भी मेरा इंतजार है
तुलसी प्रतीक्षारत हैं
आस का दीप जल रहा है
तुमने भी साथ दिया है बरसों
कैसे भूल सकते हैं हम सब
कोई यहाँ भी आएगा
घर आँगन में गूंजेंगी हंसी
अब हमें चलने दो...
उस की आस टूटने से पहले जाना है
एक वादा उससे भी निभाना है...
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आयुष्याची सगळी स्वप्ने
तुझ्या सोबतीने करायची आहेत मला खरी,
असेल तुझी सहमती तर
तांदळाचं माप ओलांडून यायचं आहे
मला तुझ्या घरी...!!-
माप ओलांडते सप्तपदी चालून
विचार उद्याचा करून
रंगवित चित्र सहजिवनाचे
घेते प्रेरणा आईबाबांकडून
चार दाणे वेचीते माहेरचे बांधून शिदोरी संस्कारांची
लेक लाडकी माहेराची निघते सासरला
फेडीते उपकार जोडून दोन कूटूंबांना
माहेरी असो वा सासरी ऐकत असते तरी सारखी
तू तर आहेस परक्या घरची
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My biggest happiness is seeing you smiling seeing you happy I can forget all my sorrows after seeing a wide smile on your lips and today this is your one of the most happiest moment of your life you are entering your new home and with this I pray for your unlimited infinite happiness this new home brings new happiness new strength new power more more more more and more smile on your face and being a part of this home I am pleased to wish you great good health and lots of memorable and Happy memories गृह प्रवेश की हार्दिक शुभकामनाएं
HBK... the old-