Kewal Singh  
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Joined 26 July 2018


Joined 26 July 2018
25 JAN AT 17:53

अपनी कहानी लिखता रहता है,
ज़िंदगी के अनुभवों से रूबरु होता रहता है,
पर कभी रुकता नहीं है,
अनवरत आगे बढ़ने की प्रेरणा देता रहता है,
जो हो गया उससे सबक लेता रहता है,
ना उसका रोना रोता है l

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21 JAN AT 18:10

आसमां निहारते रहो..
परीक्षा की घड़ी है,
अनवरत ख़ुद को साबित करो..
नहीं हो तुम बर्फ के गोले की तरह..
बन चट्टान ऑंखें पर्वतों से मिलाते रहो,
आग सीने में रखो..
ग़र आये मुश्किलें..
पिघला कर रास्ते बनाओ..
लक्ष्य को हासिल कर..
मुस्कुराओ, जीना सिखाओ..

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21 JAN AT 17:06

एक बार फिर से सोया लेखक..
उठ कर ढूढ़ रहा अपनी कलम..
बेतहाशा खोजता इधर उधर..
न जाने कहां छुप गईं रूठ कर..
फिर निकला ढूढ़ने बूढ़े बरगद के पास..
उसने खांसा कौन है, या कोई राहगीर..
जाना पहचाना आया कोई अपना..
जानकर बरगद फिर मुस्कुराया...
गले लगाया रिमझिम बारिश से नहलाया..
पतियों से झांकती सूरज की किरणों से मिलवाया ..
शाम ओढ़े खड़ी लाल दुशाला क्षैतिज पर..
बुला रही मुझे, न जाने कब से ढूढ़ रही मुझे..
जैसे मिला रही मुझे अपने आप से कलम से...


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10 JUL 2022 AT 18:38

दूरिओं से अब कोई शिकवा न रहा,
वक्त लहज़ा लहज़ा अपनी मंजिल में समा गया,

हाथ पकड़ मेरा मुझे अक्सर खींचता रहा,
मैं कहीं अतीत की दहलीज पऱ अटका रहा,

हवाओं ने साथ देने का वादा बखूबी निभाया,
मैं ही तूफानों के बिछाये जाल में अटक गया,

शाम की ख़ूबसूरती ने तो दामन थामा,
रात की स्याह ओढ़नी में कोई तारा न टिमटिमाया,

ज़िंदगी ज़िंदगी वक्त खेलता रहा,
मैं समझता ज़िंदगी को खेलकर वक्त जाता रहा,




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20 APR 2022 AT 21:38

फिर बेवक्त क्यों चले आते हो,
भर भर कर आंखों में सपने क्यों दे जाते हो,

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20 APR 2022 AT 19:44

शाम धीरे धीरे ढलने लगी,
कोई राह इंतज़ार करने लगी,
धूल भी राह की थक कर बैठने लगी,
चिराग़ की लौं भी जलकर मुस्कुराने लगी,
हवाओं की शरारते बढ़ने लगी,
कतारे मयखाने की तरफ सजने लगी,
इमारते रोशनी से नहाने लगी,
रात की खूबसूरती से आसमां को ईर्ष्या होने लगी,
बर्दाश्त की हद दरकने लगी,
फिर क्या बादलों की गड़गड़ाहट डराने लगी,
मूसलाधार बारिश यादों के ख़त भिगोने लगी,
धीरे-धीरे शाम रात की महफिल में शिरकत करने लगी,




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22 JAN 2022 AT 21:11

रात की खूबसूरती निखरती है,
आसमां ये देखकर,
न जाने क्यों ईर्ष्या से भर जाता है,
बादलों की ओट में रात को छुपा लेता है,
चाँद भी कहां कम है,
हवाओं से दोस्ती बखूबी है उसकी,
बादलों की फिर वो मिटा देती है हस्ती,

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22 JAN 2022 AT 20:37

कहां है तेरी मंजिल ये जता,
देखकर ख्वाब नैनों में,
देखूँ तुझे तू अपना सर तो झुका,
देकर ऊंचाइयां इतनी,
अब मुझे मत डरा,

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22 JAN 2022 AT 20:18

सपना था कोई जैसे अपना था कोई,
बिखरा कुछ इस कदर, समेटने में ही उम्र हो गई,

निकले थे जैसे हिमनदी की भांति, राहे बनती गई,
आये जब मैदानों में गहरी ख़ामोशी हो गई,

बहूत जिद्दी थी, ज़िंदगी घमंड की परछाइयों से घिरी हुई,
ढलता गया सूरज फिर रात गहरी जैसे खाई हो गई,

वादा करके पक्का, निभाने की मंशा धरी रह गई,
खिलती सुबह,जब शब के नयनों की काजल हो गई,















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21 MAR 2019 AT 20:42

प्यार ज़िंदगी का रुख..!!
एक बहती नदी सा सार है..!!
मरुस्थल सी बंजर भूमि को..!!
सदाबहार खिलता पुष्प-ए-चमन है..!!
प्यार जोड़ता..!!
नफ़रत किनारों को..!!
जोड़ता संगम सा पुल है..!!
ये नहीं तो ज़िंदगी..!!
एक तपता रेगिस्तान है..!!
इसकी फ़िजाएं हैं..!!
तो राहें आसान हैं..!!
दूर कठिनाईयां तिमिर कोशो दूर है..!!
प्यार सपनों की खूशबू है..!!

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