Jaya sahay   (Jaya sahay ''JB''✍️)
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Joined 27 March 2018


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Joined 27 March 2018
29 DEC 2023 AT 8:59

बेपरवाही उस बयार की सबसे बड़ी देन थी। मैं चाहती थी कि मेरे केश सलीके से उड़ें, पर चलती हुई बयार को पसन्द था कि केश चेहरे को छूकर जाएँ, कभी आँखों के नज़ारे ढक जाते तो कभी बातों के बीच में हस्तक्षेप कर जाते...! मैं उन दिनों सबसे ऊँचे टीले पर बैठी थी, पर मेरे बैठने में बेपरवाही नहीं थी, दोनों हाथों से टीले के दो नुकीले कोनों को पकड़ रक्खा था, वह आती और पहले देह की पहली परत की बस एक झिल्ली भर को छू कर चली जाती, मुझे महसूस हो जाता था कि इस झिझक में अजनबिय्यत है, वह फिर आती और देह की दूसरी परत को छूती, फिर केश के साथ क्रीड़ा करती, मैं मना करती या जाने देती यह मेरे विचार में ही नहीं था, मैं ऊँचाई पर आँखें टिकाए बैठी थी। वह बयार इतनी तेज़ थी कि कस कर बाँध दिया जाना भी बालों के लिए सज़ा नहीं थी...वह एक विफल प्रयास था...! इस कोने से उस कोने तक फैली हुई बयार को मैंने महसूस करने में देर की थी शायद। धीरे-धीरे मैं इस क्रीड़ा को समझने लगी थी पर ऊँचाई का अचरज कम हो चुका था, अब छूअन का दौर था..!

वह बयार थी, तूफान नहीं था, वह केवल ऊँचाई थी, जहान नहीं था।

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2 JUL 2023 AT 0:02

सुख-दुख
अपनी अवधि
पूरी करते-करते
हमारे मन में
जीना सीख जाते हैं...
उबाऊ नयापन और
नया रह जाने वाला
पुरानापन ही उसकी
सबसे निचली सतह है...

धीरे-धीरे ही समझ आता है कि
हरा उनका रंग ही नहीं
असल रंग पीला है...
चटख नहीं......!

मुरझाया हुआ पीला...!!

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22 FEB 2023 AT 16:26

"प्रेम का स्पर्श..."
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20 FEB 2023 AT 19:27

असुरक्षा से ही जनित है दर्द,
दर्द को साझा किया जा सकता है
असुरक्षा को साझा नहीं किया जा सकता...

'असुरक्षा' ढाढ़स को भी कुचल देती है..

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4 DEC 2022 AT 10:38

नौ महीने के घर को
'माँ' जीवन भर सँवारती है..
ममता ऐसी भावना है
जो माँ का स्वभाव बन जाती है..!

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29 JUL 2022 AT 21:06

बादलों की चोट है गर्जना
बारिश की ओट है गर्जना..!

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12 JUL 2022 AT 14:42

किसी बड़े और सुन्दर उपवन के कड़ियल माली की देखरेख में उगा हुआ दुर्लभ पुष्प है प्रेम। वो किसी बदसूरत लड़की के कानों में जा टिका है, वो लड़की तो अब बहुत ख़ूबसूरत दिखती है। सुन्दरता से इतराती, बेकद्र लड़की के कानों से एक रोज़ वह पुष्प कहीं गिर जाता है और संताप से घिरी वह लड़की फिर से बदसूरत हो जाती है। किसी राहगीर को वह पुष्प मिलता है और जब तक दृष्टि जाती है तब तक वह आधे पैरों से रौंद दिया जाता है, फिर भी आधी जान बची रहती है, वह राहगीर उस पुष्प को माली के हवाले कर के आता है। विलाप में अन्ध और नासमझ हो चुका माली उस पुष्प को वापस उसी टहनी में लगाने का विफल प्रयास करता है। माली अपने ज्ञान को भूल जाता है, अपनी प्रवृति को भूल जाता है।
प्रेम रूपी दुर्लभ पुष्प हाथ में आते ही हम सभी रूप परिवर्तन का अनुभव करते हैं, कुछ सुन्दर हो जाते हैं, कुछ जिम्मेवार हो जाते हैं, और कुछ नासमझ हो जाते हैं...
कल्पना और स्वप्न सुन्दर बनाते हैं, भूल-चूक और ग़लतियाँ जिम्मेवार और प्रेम में मिला विलाप प्राय: प्रवृति को भुला देता है।

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11 JUL 2022 AT 13:10

दूर से देखने में केवल देखना शामिल है
बहुत पास जाने में केवल सुनना शामिल..!

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11 JUL 2022 AT 12:55


जाने की तारीख़ पर लगे होते हैं
तेज़ रफ़्तार पहिए
जो रूकने की मोहलत पर
लगातार दौड़ते हैं....!

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4 JUL 2022 AT 19:52

प्रेम में अप्रत्यक्ष रूप से दुत्कार झेलने वाले लोगों का मन या तो बहुत कमज़ोर हुआ, या बहुत कठोर..! और जो दोनों न हो पाए, वे हुए नासमझ व्यवहार के स्वामी..!

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