Ravita Gupta   (रविता)
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Joined 22 May 2020


Joined 22 May 2020
17 JUL AT 6:28

मन जो एक मुद्दत से
सूखा,सूखा सा पड़ा था,
आज सावन की पहली बारिश में
मन को थोड़ा भिगोया है।
कागज की नाव चलाकर
नाती के साथ बच्चों की तरह
भीग भीग कर पानी के बुलबुलों को
छूने की कोशिश में छपक छपक कर
सुनहरे पलो को मैने जीया है,
अहसास की खूबसूरती की क्या कहिए जनाब
लगा जैसे अमृत सुधा को होठों से मैने पीया है।

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11 JUL AT 21:54

दर्द ने मुझको ऐसा घेरा
जाने का वो नाम ना लेता
कहते है सबको अपने हिस्से का
दर्द खुद ही झेलना पड़ता
मेरे साथ मेरा परिवार भी
कुछ कम कष्ट नहीं झेलता
मेरी आंख से बहते आंसू देखकर
मन उनका भी हर दम रोता
मेरा ईश्वर भी मेरे साथ ही होता
मनोबल मेरा जब गिरने लगता
दर्द से लड़कर जीने का हौसला वही देता
घर का आंगन,मंदिर,तुलसी का पौधा
खाली पड़ा झूला,बेटियां,नाती नातिन
सब उदास रोज वापस आने की बाट जोहते,
होना है ठीक इन सबके लिए
सो जाती हूं यही विश्वास लिए
रोज सुबह उठती हूं यही आस लिए।

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9 JUL AT 11:07

सावन का महीना आया है।



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5 JUL AT 8:37

सुंदर सजीले गठीले शरीर को
गले लगाता आगे पीछे घूमता है हर कोई
सूखे ढांचा हुए शरीर को गले लगा कर
मेरी हर चिड़चिड़ाहट को नजरअंदाज कर,
मैं तुम बिन कुछ नहीं
तुम्हारा हर कष्ट मै बांट लूंगा
कह सकता है मेरे हमसफर सा
फरिश्ता ही कोई।

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5 JUL AT 8:33

फासला इतना ही रहे
कोई अपना आवाज लगाए
तो सुनाई पड़ जाए..
आंख के आंसू बहने से पहले
पोंछ दिए जाए,
आह की बात ही छोड़ो
खामोशी भी शोर मचा जाए...
याद में दिल डूबने को हो तो
एक प्यार भरी झप्पी मिल जाए
अपनो के लरजते हाथों को
हाथों में थाम लिया जाए।

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4 JUL AT 5:39

छपक छपक कर गिरती
बारिश की बूंदों से बने बुलबुलों में
झूले पर बैठ कर टकटकी लगाए,
सतरंगी सपने देखता बुदबुदाता मन ,
एक एक बुलबुले को
टूटता बिखरता देखती
अपने नाती को छाते में छुपाकर
ताली बजाती उसके संग संग।

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4 JUL AT 5:16

मन के भाव
उतरे कागज पे
रचना रचे।

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3 JUL AT 20:10


दिल में जब किसी की बात चुभ जाए
निकाल कर फेंक दो आराम मिल जाएं।
मलहम मुस्कुराहट का लगा ले चुभन पर
गया वो जमाना जब जख्म के निशान रह जाए।
इतना कुछ है करने को जो करने पे आजाए,
निशान का भी नामोनिशान मिट जाए।

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27 JUN AT 2:03

दिन का कत्ल
करने के इल्ज़ाम में रात
सदियों से सजा पाती रही...
रात की रानी की गंध को समेटे,
ओस के अश्रु बहाती
अनगिनत पापों को आंचल में छुपाती रही...
रोशनी ने बहुत कुरेदा उसे मगर वो
काली स्याही में खुद को डुबाती रही....
रात भर एक याद को लगाए सीने से
ध्रुव तारे पर टकटकी लगाए
सप्तऋषि के आशीर्वाद की आस लगाए
तारों की छांव में खुद को सिमटाती रही।

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23 JUN AT 20:15

Oaty के अंदर जाता patient 
बाहर खड़े परिवार जन,
दोनों के बीच जो घटित होता है
वो शब्दों में बांधा नहीं जा सकता।

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