बैठे बैठे गुमसुम हो जाता हूँ, क्या याद उसे मैं आता हूँ, _राज सोनी
सब भुला पर उसे ना भुला, शायद वो पहला प्यार था!
जब तेरे नाम की आहट सुनता हूँ, चौंक के मैं देखता हूँ,
नाम तेरा पर चेहरा किसी का, वजह पहला प्यार था!
किसी हाथ में गुलाब देखता हूँ, कोई खत पुराना पढता हूँ,
तब तेरा वो शर्माना याद आए, अनकहा पहला प्यार था!
कोई गज़ल रूमानी सुनता हूँ, उसमे तुम्हे महसूस करता हूँ,
कॉपी के आखरी पन्ने याद आए, मासूम पहला प्यार था!
जब जब तन्हा मैं होता हूँ, तब मैं वो चाँद निहारा करता हूँ,
अक्स चाँद में तेरा ही उभरे, असर शायद पहला प्यार था!
जब किस्से प्यार के पढता हूँ, कोई जोड़े की बातें सुनता हूँ,
तब बरबस तेरी याद आ जाए, अहसास पहला प्यार था!
मेरे बालों की सफेदी देखता हूँ, तब तेरी जुल्फे सोचता हूँ,
तेरे वो लहराते बालों का समा, दिलकश पहला प्यार था!
जब मिलन की जगह से गुजरता हूँ, लम्हा भर रुक जाता हूँ,
पर अफसोस "राज" कह न पाया, फिर भी पहला प्यार था!-
याद फिर आए वह गुजरा जमाना
दोस्तों के संग पूरा दिन का बिताना
मस्ती कर मोहल्ले में सब को सताना
मम्मी की डाट पर भोला बन जाना
साइकल के टायर को दिन भर नचाना
याद फिर आए वह गुजरा जमाना
एक साथ बैठकर बांटकर के खाना
न ही जाति पात न ही धर्म का आ जाना
बिन बुलाए बर्थडे में यारों के घर जाना
केक की चाहत में पूरे घर को सजाना
ब्लैक एंड व्हाइट टीवी को ठोककर चलाना
छायागीत सुनने को नींद से जग जाना
याद फिर आए वह गुजरा जमाना...
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चाय का आना ,
तेरा देख यूँ मुस्कुराना,
याद आएगा ये गुजरा जमाना,
चाहकर भी तुम्हारा हमें भूल ना पाना,-
एक ख़्वाब कई ख़्वाबों पर भारी पड़ गया
वो जिंदगी था मेरी जो मुझसे बिछड़ गया
है यकीं मुझको भी कि वो मेरे बिना खुश तो नहीं है
पर कहने को हमारे दर्मियां बचा भी कुछ तो नहीं है
हां ये स्याह रातें गुजरती बड़ी मुश्किल से हैं
उसके बिना नींद पड़ती बड़ी मुश्किल से है
जो मिल जाए एक दफा तो उसे आगोश में भर लूं
छीने जो लम्हा उसे तो फिर उस लम्हें से भी लड़ लूं
याद जब भी कभी आऊं तो बस एक बार वापस आ जाना
दिल जब भी दुखे तुम्हारा तो एक दफा मुझसे बता जाना
आकर फिर से कभी मेरी गोद में सर रख लेना
जो नींद तुम्हें ना आए तो हाथ मेरा पकड़ लेना
मैं गुजरते वक़्त के साथ आगे नहीं बढूंगी कभी
पलट के देख लेना गुजरते वक्त को जो वक़्त मिले कभी
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मैं जो लिखता हूँ ना मेरे दोस्तों! वो आधी हक़ीक़त है और आधा अफ़साना है।
मुझे सब आज कल के लगते हैं, पता नहीं ये "अभि" ही क्यों गुज़रा ज़माना है।-
हुनर बा-कमाल है उसका मुकर जाने का
अपने कीए वादों की हद से गुजर जाने का
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रात के ढेड़ बजे हैं तुम्हे घर जाने की जल्दी है
रुको ठहरो ये भी कोई वक़्त है घर जाने का
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रबड़ की थी ज़रूर, पर लगती मेटल
एक कपल, पर काज करती मल्टीपल
(पूरी हास्य कविता अनुशीर्षक में 😁🙏)
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आज याद करके उसको भूला ही दिया हमने
गुजरे जमाने की बातो को फिर सुला दिया हमने-