देख रहे हों इन परिंदों को है कितने आज़ाद
तुम्हारी बाहों ने है मुझे जकड़ा पर मैं दिलसे हूँ आज़ाद-
लाज़िम है कि हर बात का जवाब दिया जाए
देखा है हमने की आपकी समझदारी तो
अक़्सर समझदारी से भी ऊपर चली जाए.
आम सी जिंदगी जीते हैं हम
क्या और कैसे कहें कि आपको
हमारी बात बिन कहे ही समझ आ जाए-
उसने अपना ना समझा इस बात का.
एहसान मान उस ख़ुदा का
जिसने बनने ना दिया तुझे
खिलौना उस निर्दयी के हाथ का
तू मान बन सम्मान दे
अपनों के ज़ज्बात का.
आखिर तुझे रोना किस बात का?-
हे!भोले बाबा आपका भोलापन तो देखो
बंद आँखों ने भी माँ पार्वती के मन
के भाव को पढ़ लिया है देखो.-
यादों का वो मौसम ले आया
बाहों को हमने फैलाया
दिल मेरा भरमाया
लगा जैसे कि वो लौट आया.
फिर हमनें दिल को समझाया
जाने वाला कभी ना लौटकर आया
समझ लो एक बात
जो चला गया और फिर लौट आया
तो समझ लेना तुम्हें खोकर
वो बहुत पछताया
तेरी यादों की सावन में
उसकी आँखों ने बहुत अश्रु है बहाया
तुम्हें खोकर पछताया
तब जाकर वो तुम्हें पाने की चाहत में
फिर से तेरे दर पर आया.
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आस्था की पराकाष्ठा का
कोई मापदंड नहीं होता
यह तो आत्मा की तृप्ति
का बस आधार है होता.
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