है कुछ लोग
जिसका जिक्र करते हैं कुछ लोग
मगर बेटियाँ घर के आँगन की
देखकर जलते है कुछ लोग.
बोझ है बेटी हर बाप की
ऐसा क्यूँ जताकर जाते हैं कुछ लोग.
समझ नहीं आता बेटियाँ ही
पराई क्यूं कहलाती हैं
जब की परायों सा व्यवहार
तो करते है शादी के बाद
खुद उनके बेटे जिन्हें अपना
मानते हैं वे लोग.
रीति रिवाज की भेट क्यु
चढ़ा दी जाती है?
यह कहकर कि क्या कहेंगे लोग?
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Rina Sahu
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Joined 15 June 2021
5 JUN AT 9:52
31 MAY AT 22:17
कहां छुपाए दिल के ग़म
खुशी तब कब्र में दफना दी जाती है
जब आँखों की नमी बाढ़ बन छुप जाती है
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30 MAY AT 14:14
तुम्हें संवारते संवारते ऐसा लगता है जैसे
तुमसे मिलकर मेरी जिन्दगी ही संवर गयीं.-
29 MAY AT 22:09
जैसे खुबसूरत सपने
बंद आँखों में मेरे अपने
खुली आँख तो लगे बेगाने
देख दूसरे की खुशी को
लगा वो आँखों में खटकने.
काश कोई ऐसी सुबह ले आए
जब अपनों के आवाजों से
घर का आँगन लगे चहकने.
खुशी के आंसू से आँखें लगे छलकने.
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28 MAY AT 1:08
पैसे से कभी खुद को बेचा नहीं
प्यार से कभी किसी ने खरीदा नहीं
दुआओं का दरबार कहीं मिला नहीं
सच्चे प्यार को किसी ने समझा नहीं.-
12 MAY AT 22:39
जो तुम निभा ना सकों
वो करना जरूरी था
वादा सिर्फ शब्द नहीं था
वो दामन था उम्मीदों का
उसे मुझसे छुड़ाना क्या जरूरी था?
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11 MAY AT 19:18
ममता का पता तो बस माँ होती है
माँ की बाहों में ही तो सुकूंन का जहां होती है
और आँखों में ख्यालों भरी चिन्ता होती है.
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