तारीफ़ करूँ तो भक्त कहलाऊँ, न करूँ तो चमचा
अपना अपना मफ़लर सबका, अपना अपना गमछा-
गमछा मात्र एक कपड़े का टुकड़ा नहीं है,
उत्तर भारतीयों की आन बान शान है ।
गले मे हो तो बढ़िया सा साज बन जाता है,
सर पे हो तो हम बनारसीयो के सर का ताज बन जाता है ।-
कठिनाईयों से लड़ता है
फिर भी गुनगुनाता है वो
ईर्ष्या मिलती है उसे बदले में
फिर भी गीत प्रेम के गाता है वो
दुनियावालों को इसकी परवाह नही
फिर भी भार सभी का उठता है वो
तन पर अपने डालता है गमछा
और कपड़े सभी तक पहुँचाता है वो
चाहे आये कितनी ही कपकपी सर्दी
लिए फावड़ा , हल चलाता है वो
अपनी मेहनत से सजाता है धरती को
और सबको मुस्कान दे जाता है वो
अमीरी भरी होती है प्रेम की उसकी कोठरी में
और फिर भी अन्न से स्वयं गरीब रह जाता है वो-
गमछा
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मैं गमछा सदियों से जाना पहचाना
अपना सब का गमछा
सब रखते हृदय के पास
लाज शर्म को ढ़कता
मेहनतकश का पसीना सुखाता
दुखी के अश्रु पोंछ लेता
पाथेय की पोटली बन जाता
शीत और ताप से बचाता
सिरहाने लोग रख लेते, नींद सुकून की देता
बच्चे जवान बूढ़े सब का हिस्सा
मैं गमछा सदियों से जाना पहचाना।
वो भी दिन आया ,ना रहे वो मेरे ठाठ बाठ
सांस्कृतिक संक्रमण से खुद को ना बचा पाया
सांसे मेरी टूटती रही और नित नया आता रहा
नाम नाम का रहा लेकिन प्रतीक बचा रहा
त्याज्य समझा जाने लगा आधुनिकता की बयार में
भारत का था, ना मिटी आशा मन की
दिन बहुरेंगे मेरे भी ऐसा अब दिखने लगा
कर्मर्योगी एक, याद दिला गया धुमिल हुई मेरी कहानी
पुनर्र जीवित हो जाऊं
मै गमछा सदियों से जाना पहचाना ।-
गांव के माटी से जुड़े है, वहां के हर जन से हमारा पहचान है,
कही रहे कुछ भी बोले, पर ई भोजपुरिये हमारा जान है,
शहर में कितना भी हैट और कैप क इज्जत हो,
पर हमरा खातिर ई गमछवे हमारा स्वाभिमान है..।-
Desire
तू घुँघरू मुझे बनइयो, जो बाजू संग तवायफ
पर जब थक जाऊँ ऐसे, दर्पण की कियो इनायत
इक ताली मुझे बनइयो, जो गूँजू संग किन्नर दिल
पर जब थक जाऊँ ऐसे, न्योछावर कियो इनायत
तू कफन बनइयो फौजी, संग संग बलि जाऊँ शायद
पर जब थक जाऊँ ऐसे, रंग दियो तिरंगा भारत
इक गमछा मुझे बनइयो, प्रस्वेद मिटाऊँ मेहनत
पर जब थक जाऊँ ऐसे, आँचल की दियो इनायत
इक बाँस मुझे बनइयो, जो ढोऊँ हर मुर्दा तन
पर जब थक जाऊँ ऐसे, बसुरी की दियो इनायत
इक लड़की मुझे बनइयो, जानूं कितने होते दुःख
पर जब थक जाऊँ ऐसे, ममता की दियो इनायत-
मैं अपनी जिंदगी में तुमसे कुछ ज्यादा नहीं चाहता हूँ...
तुम्हारी साड़ी में अपना गमछा बाँध के सत्य नारायण की कथा सुनना चाहता हूँ...-