जाने क्यों तेरा इंतज़ार रहता है
तुम नहीं आओगे...पता है
फिर भी,
फिर भी न जाने क्यों
इस कमबख़्त दिल को
ये ऐतबार रहता है
के एक रोज़ शाम ढले
जब बादल का रंग
इश्क़ सा लाल होगा,
मेरे बगीचे के सारे फूल खिले होंगे
और मैं! अपनी छत की मुंडेर पर खड़े होकर
चाय की चुस्की लेते हुए तुमसे बातें कर रही होऊँगी,
"हाँ तुम, वही तुम! जो मुझमें रहता है",
उस रोज़ तुम जरूर आओगे
और मेरी चाय की प्याली से
एक घूँट चुरा कर कहोगे,
"ये चाय भी बिल्कुल तुम सी है,
कड़क पर मीठी।"
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शायद कुछ ज्यादा उबाल दी थी मैंने
इश्क की चाय।
शायद भाया नहीं तुम्हें
इसका गहरा रंग
या फिर कड़क स्वाद।
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सुहानी सुबह और
तुम्हारी मुस्कान,
कड़क चाय की प्याली
साथ बकबक और प्यार,
तुम्हारा मेरे हाथों में हाथ
यह है सुहानी सुबह वाली बात।-
चाय भी पियेंगे और प्यार भी करेंगे
अपनी आंखे तेरे संग चार भी करेंगे
फिकर ना कर मेरे रूह के प्यारे शादी
के बाद मीठा और फिका इजहार भी करेंगे-
हे हमराही, बड़े नसीबो वाले होते हैं वो जिन को दो जून की रोटी नसीब हैं,
भाग्यशाली, पुण्य के भागी हैं जिन को नसीब हैं, माँ के हाथ की कड़क रोटी,
हम माता श्री के हाथ की कड़क रोटी खाते हैं यारो, ......😍💞😎
(पूरा अनुशीर्षक में पढ़े जी)-
कड़क धूप निकलनी चाहिए
कुछ सूख गया है शायद भीतर
वो कसक पिघलनी चाहिए ।।
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लोगों को छोड़ो चाय से प्यार करो,
अपनी चिंता और तकलीफ़ पर,
कड़क और मीठा सा वार करों।-
साँवला है रंग.. थोड़ी कड़क मिज़ाज़ है,
सुनो तुम पसन्द हो हमे, तुम्हारा चाय सा स्वाद है..✍️-
कभी कड़क तो कभी मसाला, कभी डाल के इलायची तो कभी सुलेमानी। क्या अदा है तेरी, ना जाने कितने दीवाने है रे तेरी और हम भी शामील है इन में । तू शमा है तो हम परवाना और तेरे बिन कैसा जीना । शुरू होती हर सुबह तेरी गर्म अदाओं से और ढलती है शाम तेरी मेहरबानी से ।
जाते जाते एक गीत तेरे लिए ;
यूँ तो हमने लाख हंसीं देखे हैं
तुमसा नहीं देखा
उफ़ ये नज़र उफ़ ये अदा
कौन न अब होगा फ़िदा
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