मनवा..
किस बात का है गुमान, किस बात का है गुरुर,
किस से तू प्रेम छल कपट है करता मनवा,
यही पड़ा रह जाना है जमीन महल मालिये तेरा यौवन,
धरा पर धरा रह जायेगा तेरा छल कपट धन दौलत गुमान,
बिखर जाएगा हुस्न शौहरत सब हो बेईमानी मनवा,
कैसी नफरत, किस पर अभिमान, किस से ईर्ष्या लड़ाई मनवा,
सबका यही हाल है होना, सत्य है चिता की राख,
कोई हाथ भी ना लगाएगा, जल्दी विदाई को जमाना आतुर हों जाएगा,
क्या राजा हो या क्या हो रंक सबकी इक़ सी औकात,
हो जाना सिर्फ एक लोटा राख ही तो है तुझको,
धु धु जलता क्या देखे पड़ा, है अपनी अपनी यही पहचान,
सब अपनी अपनी समझ समझ की बात है मनवा,
होना राख ही, तो यारी कर फायदे की राख से ही..✍🏼🐦
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