हे हमराही, ना जावो हमारी तड़फती रूह पर, काश हम भी किसी की दिल की जिद होते..
ए दिल, काश कोई हमें भी पाने के लिए हद पार कर जाता कुछ यूं..
✍🏼🐦-
चाय पर चर्चा..✍🏼🐦
इंसान चाहे तो वो अपने जीवन को सुखी बना सकता है..
बस उस मे हर परिस्थितियों को बर्दाश्त करने की क्षमता..
और..
धैर्य के साथ नजर अंदाज करने की क्षमता हो..
दोनों क्षमता गर आ जाये तो..
जिंदगी जीना आसान हो जाता है..
अक्सर इंसान इन क्षमताओं के अभाव में..
दुसरो के हाथ की कठपुतली बन के दुःख भोगता है..-
माधव..
आप हिय बसे श्रीराधे महाराणी जू,
छवि युगल सरकार मनोहारी श्रीनाथ,
अर्ज जो सुणो हमारी श्याममनोहर जू,
काज हमारा भी हो जाये साकार श्रीजू,
हे गोविंद..
नित नई आस है नित नई उम्मीद दर्श,
दर्श अभिलाषा चित्तधरों रासबिहारी जू,
जै आप चाहो तो हो हर काज हमारो जी,
दातादयाल करो साकार कृपालु करुणेश्वर,
आपकी कृपा से है खुशियों की बहार प्रभु,
यूँ तो कर्म हमारे भी कुछ ख़ास अच्छे नहीं,
मगर आपकी नजर पड़े तो हो जाए नाथजू,
इस अपराधी का भी उद्धार गिरधरगोपाल जू,
मोरी करुणेश्वरी श्रीराधे करुणेश्वर श्री श्याम,
हिय पधार बिराजो मनमीत साँवरे सरकार..
✍🏼🐦-
चाय पर चर्चा..✍🏼🐦
किसी से प्यार मोहब्बत इश्क होना इंसान की स्वभाविकता हैं..
मोहब्बत रहबर के श्रेष्ठतम वरदान की तरह होती है..
पर हर, किसी को नसीब नहीं होती..
जब कोई किसी को दिल से पसंद करता है..
तो उसका प्यार सिर्फ़ लफ्ज़ों तक सीमित नहीं होता..
वो अपनी हर खुशियों, बेहिसाब परवाह..
अपनापन और रूह तक प्रेम को सौंप देता है..
और उस इंसान की किस्मत बड़ी बुलंद होती है..
जिसे किसी का सच्चा और स्वेच्छा से दिया गया प्यार..
समर्पित भाव के साथ नसीब होता है..
ज़बरदस्ती से मिला साथ कभी सुकून नहीं देता..
असली मिठास तो मोहब्बत में तभी होती है..
जब इंसान निःस्वार्थ खुद चाहे, खुद चुने..
क्योंकि किसी का प्यार सिर्फ़ साथ नहीं होता..
वो संघर्ष में एक साथी हमसफ़र होता है..
जो इंसान रूहानी प्रेम की कद्र ना कर सके..
उन से ज्यादा बदनसीब और बेगैरत कोई नहीं हो सकता..-
हे हमराही.. काश कुछ यूं..
एहसास इन धड़कनों के तूफानों के..
काश! तुम समझ पाते..
आरजुओं के मेलों की जुस्तजू को..
काश! तुम समझ पाते..
खामोशियों के इन उठते भवँर तूफानों को..
काश! तुम समझ पाते..
अहमियत लम्हों की सजाएं हमने तुम्हारे लिए..
काश! तुम समझ पाते..
इंतजार है सिर्फ इक़ तुम्हारे मिलन का..✍🏼🐦-
माधव..
प्रभु मंद मंद मुस्कनिया बन गई हमारी जिंदगी कैसी मनोहारी,
श्याममनोहर का मुस्कुराता मुखारबिंद रुपरस क्या चखा हमने,
हे गोविंद..
चहु व्योम मुस्कुराता नजर आ रहा, सब और रूपरस बरस रहा,
बृजकुँज पेड़ लताये, ये जीव पक्षी, ये जमुनाजी ये झरने, सब कुछ ही तो गुनगुनाता हुआ नजर आ रहा.. चित्त चेहरा मुस्कुरा गुनगुनाता श्रीहरि गुण, जो हिय सुनना चाहे वेणु सरस.. वो कुंजबिहरी सुना रहे साँवरे सरकार..✍🏼🐦-
मनवा.. जब पिता के कंधे पर खुद को..
बैठा पाया.. इमाधर्म का सबक पढ़ाया..
जीवन पथ पर धैर्य, संयम, त्याग समर्पण..
संघर्ष का सबक क्या खूब हम ने सीखा..
स्वाभिमान हो दुनिया को साथ साथ चलते..
स्वयं को बड़ा भाग्यशाली पाया है..
अपने पिता को ज़मीन से जुड़ा..
खुद को मेहनतकश भूपति पाया है..
भले ही नहीं है एक गज ज़मीन भी..
पर अपने आपको सुकूँ मे पाया..
मेरे पास था सारा का सारा आज़म..
पर पिता के कंधो पर बैठ अपने की पाया..
सारा जमाना को अपनी मुट्ठी में पाया..
ना थी भले ही हैसियत कुछ भी..
फ़क़ीरी में भी अपने आपको शहंशाह पाया..
पर उन कंधो पर बैठे दुनिया को फ़क़ीर..
और स्वयं को जमाने का सम्राट पाया..
कंधे से क्या उतरा कुछ यूं..
तब से अब तक महत्वकांशाओ से लड़ रहा हूँ..
आँधियो के भवँर में स्वयं के वर्चस्व से युद्ध कर रहा हूँ..
कर्मयोद्धा पिता के कंधो पर बैठ सुकून को..
अपना गुलाम समझ, सुख पाया था..
पिता के कंधों पर स्वर्ग की अनुभूति को जाना था..✍🏼🐦-
"पिता" उस दीये की तरह हैं, जो खुद जलकर,
अपनी औलादों का जीवन रौशन करते हैं..
पिता त्याग और समर्पण का दूसरा नाम है..
सुलगती धूप जहाँ आ कर हार जाती है
उस घनेरी छांव का दरख़्त है पिता..
पिता उस मंदिर का नाम है जहां..
बिना प्रार्थना के ही मुराद पूरी हो जाती हैं..
एक पिता ही है जो चाहता है कि..
उसका बेटा-बेटी उससे बड़े और कामयाब बनें..
बेटियाँ पिता के दिल के सबसे करीब होती हैं..
क्योंकि वो उनके प्रेम का प्रमाण नहीं खोजती..
अगर जेब में पैसा होने के बावजूद
बाज़ार से गुज़रते हुए कोई शख्स..
अपनी पसंद की कोई चीज नहीं..
खरीदता तो उसे कंजूस नहीं..
"पिता" कहते है..✍🏼🐦-
माधव..
साँवरे कैसा ये प्रेमकृपा अटुट सूत्र में बांधा है मनमोहन मनमीत,
सुकूँ मिल रहा, आ रहा आनंद भी क्या खूब मनमोहन मनमीत,
हे गोविंद..
कितनी ख़ूबसूरत है, उमंगो लफ़्ज़ों की मखमली डोर मनमीत,
कैसी बांधी है रे साँवरा मोरे जीवन पतंग चित्त डोर चित्तचोर सरकार.. आपकी मुझसे मुझे आपकी से क्या दिव्य भावतरंग है साँवरे सरकार..✍🏼🐦-
मनवा..
कहा तू अपने मन के उद्गार व्यक्त कर पायेगा,
क्या है तेरी लेखनी में वो शक्ति जो तू लिख पायेगा,
कहा से लाएगा वो लफ़्ज़ जो तेरे भाव व्यक्त कर पायेंगे,
जिन का तू अंग अणु बराबर उनकी कल्पनाओं की ही लिखावट है तू,
जिन के सिर पर है हाथ पिता का वो है अनमोल,
पार वो पा जाते जीवन की हर मुश्किल परिस्थितियों से,
जो हिम्मत जीवन भर हर पड़ाव पर देती है शक्ति,
तू उस को दिल से महसूस कर, पायेगा मन में बसी सदा,
वो तेरे जीवन में आता पिता बन, तुझ को रण कौशल में करता पारंगत,
तुझ को दे जाता है हर जीवन की खुशियां अपार,
हर कर तेरी हर विकट परेशानियों को अपनी मुस्कान में,
छुपा लेता है वो देवदूत हर मुश्किलों को,
मुफलिसी में भी आभास नही होने देता,
दे देते है सारी सुख सुविधाओं को,
सपना सुनहरा बुनते है वो मेरे नाम से जाने सब उन्हें,
सपना पूरा करना है ये सपना उनका, यही है मकसद ज़िंदगी का,
उनके गुस्से में भी सदा प्यार छुपा होता था, हर बुरे भले सबक याद कराते,
उनकी डाट में भी दुलार भरा होता था,
और उसी देवदूत का नाम पापा मेरे जीवन में था..
आप हो दूर मगर सदा हो हर अंश में मेरे, हर कतरे में समाये हुए..✍🏼🐦-