Astha Srivastava   (आस्था)
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Love to live,Love the love.
Not a writer, बस जब दिल भर आता है तो कुछ शब्द गिरा देती हूँ|
Joined 19 March 2017


Love to live,Love the love.
Not a writer, बस जब दिल भर आता है तो कुछ शब्द गिरा देती हूँ|
Joined 19 March 2017
24 DEC 2021 AT 23:36

जाओ नहीं उतारती तुमको पन्नों पर
ग़र कविता हो गए तुम भी
तो हक़ीक़त कैसे बनोगे

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16 NOV 2021 AT 0:27

महफ़िल में किस्से हमारे मशहूर नहीं हैं,
आम होने का शौक है, मजबूर नहीं हैं।

मशालें पकड़ीं हैं हाथों में,
हमें ग़ुरूर है हम मगरूर नहीं हैं।

बाहें पसारे खड़ी है ज़िंदग़ी,
हमको खुशियाँ मंज़ूर नहीं हैं।

दर्द बह गया है सब पन्नों पर,
दिल जख़्मी है कमज़ोर नहीं है।

हथकड़ियां तोड़ना सीख लिया,
बगावत के दिन अब दूर नहीं हैं।

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22 OCT 2021 AT 23:28

जब तुम मुझको देखते हो,
क्या ज़ख्म मेरे सचमुच छोटे दिखते हैं?
ग़र हाँ, तो क्यों दर्दों पर मेरे रोते हो?

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17 OCT 2021 AT 2:20

अपने कमरे की खिड़की के पास बैठकर
आज भी वैसे ही चाय की चुस्कियां लेते हुए
ढ़लते सूरज को देखती हूँ
शाम की हवा आज भी खिड़की से होते हुए
पहले मेरी चाय को और फिर मेरे बालों को छूती है,
हाँ अब भी मैं शर्मा कर वो एक लट 
कान के पीछे दबा देती हूँ
और नज़रें झुका कर मुस्कुरा लेती हूँ
सब कुछ तो वही है सिवाय एक बात के
अब तुमको लिखती नहीं,
इसलिए नहीं क्योंकि तुम दूर हो,
इसलिए क्योंकि डरती हूँ,
डरती हूँ कि अगर तुम्हें लिखा
तो खुद को मिटा दूंगी, फिर से,
और तुम, हमेशा की तरह आज भी
मुझे पढ़ने नहीं आओगे

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11 OCT 2021 AT 22:29

वो घूमता रहा बारिश में प्यासा
एक बूंद ज़िंदग़ी की तलाश में

दम घुटता रहा हसीं फ़िज़ा में उसका
न अश्क़ ही गिरे न लफ्ज़

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27 AUG 2021 AT 1:47

ज़िन्दगी चाहे जिस मोड़ ले जाए
हमसफ़र चाहे जिसे बनाये
कितना ही कोई दिल को भा जाए
पर जब जब जिक्र मोहब्बत का आए
नाम तेरा ही सबसे पहले याद आए

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12 JUN 2021 AT 23:56

एक हसीं शाम
लाल नीले आसमां के नीचे
जब झल्ली हवा मेरे बालों से उलझती हुई
मेरी चाय की प्याली को
मेरे होठो से पहले ही चूम रही थी
तब ये ख़याल आया 
की कैसी होती होगी वो दुनिया 
जहाँ पूरी होती होंगी मोहब्बतें

शामें भरी होती होंगी शरारतों से
होंठ सिर्फ चाय की प्याली को ही नहीं चूमते होंगे
और बालों से शरारत सिर्फ हवा ही नही करती होगी
नज़रें खेलती होंगी
उंगलिया शांत कैसे रहती होंगी
मुस्कुराहटें हवा में गूँजती होंगी
पैरों से कोई तो रिदम निकलती होगी
खूबसूरती की असल परछाई तो
वो ही शामें होती होंगी
जिस जहां में मोहब्बतें पूरी होती होंगी

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31 MAY 2021 AT 23:23

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आज़ादी का
इक ख़्याल का
चिंगारी का
हजारो ख़्वाब का
तन्हाई घर है
किसी रचना की शुरुआत का

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12 APR 2021 AT 22:26

कभी कभी हम "कैसे हो?" का जवाब "ठीक हूँ" इसलिए भी देते हैं क्योंकि हम खुद अपनी समस्याओं से इतना थके होते हैं कि बार बार उन्हें सुनना नही चाहते।

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9 APR 2021 AT 1:55

मोहब्बत नदी है समंदर हूँ मैं,
मेरी लहरों पर मिलती है
वो चंचल, गंभीर हूँ मैं,
मेरे सिरहाने पर सोती है
कहती है नादान हूँ मैं
पर फ़िर,
आकर मेरे दिल में बहती है

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