तुम नहीं थे
आज सफ़र में एक शख़्स दिखा
जो कुछ -कुछ तुम जैसा था,
एक पल में जैसे तुम सामने आ गए,
वही कद काठी, वही रंग
उसके बालों का स्टाइल भी
कुछ - कुछ तुमसा था,
हाँ पर वो चोटी नहीं थी जिसे
तुम अपनी शान बताते थे,
घंटे भर वो मेरे पास वाली
सीट पर ही बैठा था,
मैं कुछ-कुछ अंतराल के बाद
उसपर एक नज़र डालती और
ख़ुद को इत्मिनान दिलाती
कि वो तुम नही हो,
मन था कि उसे जी भर के देखूं,
क्योंकि उसमें मुझें तुम दिख रहे थे,
मेरी नज़र उसके जूतों पर पड़ी तो
वैसे ही जूते पहने हुए थे
जैसे कि तुम पहना करते थे,
चोर नज़रो से मैं उसे देखने की
अथाह कोशिश में लगी थी,
तभी एक पल के लिए मेरी
आँखें उसकी आँखों से टकराई,
और यकीन हुआ कि वो तुम नहीं थे,
उसकी मंजिल आयी और वो चला गया
अनजाने में मुझें तुम्हारी याद का तोहफ़ा देकर।
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