जो घर बच्चों को अब पुराना लगता है,
वही घर बाप को खरीदने में जमाना लगता है। ✍️-
तब जो था जितना था लगता था कि काफी है,
अब जो है जितना है लगता है कुछ बाकी है। ✍️-
मेरी जेब में थी बचपन में कलम की जगह, जब बड़ा हुआ तो उसको भी रकम ने घेर लिया। ✍️
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मैं लिखता नहीं हूँ, परंतु में लिखता हूँ, शब्दों को ख़ुशी के ठिकानों मैं। ✍️
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समय का खेल समय के अनुसार ही चलता है, परन्तु फिर भी इंसान कहता है कि मेरा समय चल रहा है। ✍️
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जगह की अपनी स्मृतियाँ होती हैं। वह तुम्हें वही याद दिलाती है जो जगह तुम्हारी सबसे अधिक प्रिय होती हैं क्युकी जीवन का सत्य हमारी कल्पना से कम मोहक होता है। ✍️
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है कुछ भी नहीं पर बहुत कुछ है, ये आँसू भी क्या चीज़ है, अगर झलक जाए तो अस्तित्व तक बदल देते है। ✍️
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तुम्हारा पत्र मिला इस से ज़्यादा ख़ुशी की बात और क्या होगी कि तुमने अपनी ज़िंदगी के दस मिनट मेरे और सिर्फ़ मेरे ही बारे में सोचा?
मैं कुल तीन बार पढ़ चुका हूँ तुम्हारी लिखावट को कल एक बार बस ढ़ाबे पे और पढ़ूँगा बार-बार पढ़ने से शायद ख़त में लिखा कुछ बदल जाए, अगर नहीं भी बदला तो पढ़ते-पढ़ते मुझे ये पढ़ने की आदत हो जाएगी कि तुमने अंत में तुम्हारा नहीं लिखा। ✍️-
शब्दों से ऊर्जा का क्षय होता है, नियति अत्यंत शक्तिशाली व चपल होती है, उसे इतनी सहजता से धोखा नही दिया जा सकता, वह तुम्हें स्वयं खोज लेतीं है। ✍️
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