तू गंगा आरती सांझ की,
मैं दशाश्वमेध का घाट सा !
तू बनारस का मीठा पान कोई,
मैं चटपटा बनारसी चाट सा !
तू गंगा की अविरल धारा हो,
मैं भोले की मंदिर का कपाट सा !
तू वाराणसी की विश्वनाथ गली सी,
मैं भी मंदिर काशी विश्वनाथ का !
तू मुसाफिर अस्सी घाट की,
मैं दो घूंट कुल्हड़ वाली चाय का !
तू तंग गली बनारस की,
मैं गोदौलिये के बाजार हाट सा !
तू करीम का गीता कोई,
मैं कार्तिक के कुरान सा !
मैं नज़्म बनूँ इश्क-ए- बनारस की,
तू बन जा काशी के ठाठ- बाट सा !-
हम दिखावे के रिश्तों से दूर रहते है ।
इसलिए शिव के भक्ति में मशहूर रहते है ।-
काशी महिमा कौन गा सके, अति गूढ़ है यहाँ की गाथा
अचरज से भर इसे निहारें, या झुक जाये प्रेम से माथा
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मेरे मैं का, यूं मिट जाना
मिट कर के, शिव हो जाना
शिव हूं मैं, शिव हूं मैं, शिव हूं मैं-
गंगा में स्नान करूं और मैं अविनाशी हो जाऊं
महादेव की कृपा मिलें और मैं काशी हो जाऊं
मात पिता का हर वचन निभा कर कलियुग में
मैं भी इस युग का बनवासी हो जाऊं
मिट जाऊं मैं इस मातृभूमि की मिट्टी के खातिर
इसके इक आलिंगन का ही अभिलाषी हो जाऊं
हर कोई मुझे अप ना समझें इस दौर में भी,
अल्फाजों में मिठास रहे मैं मृदुभाषी हो जाऊं-
सत्य को लिखा आपने ।
इतना आतंक तो
किसी ने भी किया ।
विकास के नाम पर
काशी को विछुप्त किया-
छोड़कर गया था, अपना घर-बार जहां।
मिले मुझे अंजाने दोस्त वहाँ।
समझा न ज़िन्दगी के इस मोड़ को, चल दिया अपनी तकदीर बनाने वहाँ।
न जाने क्या लिखा था, खुदा ने मेरी किस्मत में वहां।
अंजाने आज लगते अपने से, आ गया अब मैं जहाँ।-
आज से हीं आध्यात्मिक गीत गुनगुना रही हूं
काशी मैं आ रही हूं तुममें समा रही हूं
दशाश्वमेध घाट की गंगा आरती
विदेशी सैलानी भी अपलक ताड़ती
मेरी मम्मी की जन्मभूमि है काशी
जहां घट घट बसते हैं विश्वनाथ वासी
मेरे मामाजी हैं वहीं के निवासी
घाटों पर मिल जाते हैं बहुत से संन्यासी
बहुत नाम है बनारस के घाट का
रोज़ लगता है मेला आध्यात्म के हाट का
देखिए जाकर काशी विश्वनाथ के ठाठ का
मिल जाएंगे कई पाठशाला संस्कृती के पाठ का
क्योटा के चक्कर में संस्कृति का ह्रास हो रहा है
विश्वनाथ कॉरिडोर के लिए मंदिरों का नाश हो रहा है
मंदिर तोड़वाने वाले तुम काश हो जाओगे
आने-वाले दिनों में सर्वनाश हो जाओगे..-