चल तलाशें दूसरा शहर कोई, कि खुशियां यहां से चलती जा रही है!
ये टूटी हुई ज़िन्दगी न जाने किस मोड़ पर टहलती जा रही है।
लेकर ख्वाहिश, निकले थे घर से सुकून पाने को कहीं,
रफ्ता रफ्ता ही सही, वो आस अब जलती जा रही है!
हम अटके हैं माज़ी के हसीन-ए-लम्हों में आज भी,
और वक़्त है कि बस फिसलती जा रही है।
होकर लापता खुद से मैं अपनी ही खोज में निकला हूँ,
जाने कहाँ खो गयी वो शख्सियत जो अब बदलती जा रही है!
बस एक जान बाकी है जिस्म में और सांसे जैसे रुक सी गयी है,
कुछ इस तरह ये ज़िन्दगी निकलती जा रही है!
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तू कर कोशिश मुझे रुलाने की, और मैंने अपनी मुस्कुराहट गिना न दिया तो कहना!
लाख कोशिश कर ले चाहे मेरी हिम्मत आजमाने की, तुझे अपना सब्र मैंने दिखा न दिया तो कहना!
कर कोशिश मुझे गिराने की, चाहे तो मुझे हराने की,
कौन हूँ मैं क्या कर सकती हूँ, तुझे फिर बता न दिया तो कहना!
देखा तो नहीं तुझे कभी बस महसूस ही किया है,
लाकर अपने शहर मगर, तुझे ख्वाहिशें करना सीखा न दिया तो कहना!
अगर पलकों पर अश्क और लबों की शिकायत को ही कहते हैं जीवन,
तो सुन ज़िन्दगी तुझे हरा न दिया तो कहना!-
ना दे पाए हम वो प्यार उन्हें कभी
बरसो साथ निभाने के बाद,
कमबख्त अहमियत भी पता चलती है किसी की
तो उसके दूर चले जाने के बाद!-
आज उतार लेती हूँ जज्बात दिल के पन्नों पर यूँ ही,
कभी आना तो बस मेरे लिए दो पल का साथ ले आना !
संवर जाउंगी हर रूप रंग में ढल कर भी मैं तो,
गर दे सको इज्जत मुझे थोड़ी सी, तो एक शाम ले आना !
छिपाके जी लुंगी हंसते हंसते दर्द-ओ-गम मैं सीने में,
बस तुम आना तो मेरे लिए थोड़ा सम्मान ले आना !
जिये जा रही हूँ दबकर अहसान तले नाम लेकर तुम्हारा,
कभी आना तो मेरी खुदकी पहचान ले आना !
भुला रही हूँ रफ्ता रफ्ता वजूद अपना खुद का मैं,
जो कुछ दे सको तो मेरा खोया हुआ अभिमान ले आना !-
लम्हे थोड़े फुर्सत के,
थोड़ी खामोशियाँ जीते रहे,
वो बैठ कर मुस्कुराती रही,
हम फीकी चाय पीते रहे !-
तू गंगा आरती सांझ की,
मैं दशाश्वमेध का घाट सा !
तू बनारस का मीठा पान कोई,
मैं चटपटा बनारसी चाट सा !
तू गंगा की अविरल धारा हो,
मैं भोले की मंदिर का कपाट सा !
तू वाराणसी की विश्वनाथ गली सी,
मैं भी मंदिर काशी विश्वनाथ का !
तू मुसाफिर अस्सी घाट की,
मैं दो घूंट कुल्हड़ वाली चाय का !
तू तंग गली बनारस की,
मैं गोदौलिये के बाजार हाट सा !
तू करीम का गीता कोई,
मैं कार्तिक के कुरान सा !
मैं नज़्म बनूँ इश्क-ए- बनारस की,
तू बन जा काशी के ठाठ- बाट सा !-
यहां कदम- कदम पर धोखा है,
वक़्त रहते सम्भल जाओ,
लोग करते रहेंगे इश्क मोहब्बत की बातें,
तुम चाय लो और निकल जाओ !-
अश्क आंखों से सुख चुके,
बेवफाई का कमाल देखो,
चीख रही है खामोशियाँ,
मेरे सीने से दिल कोई निकाल फेंको !-
कर रहे हो जो हमारे साथ अभी,
यूँ किसीको नज़रंदाज़ ना करना,
जो मैं भी बयॉं कर दूँ हाले दिल अपना,
तो तुम भी ऐतराज़ ना करना !-