Mohit Das  
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Joined 3 April 2020


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15 FEB AT 16:08

जिंदगी एक मौका दे, मैं खुद को साबित करना चाहता हूं।
रह गया जो मुकाम अधूरा उसको पूरा करना चाहता हूं।।

अजब–गजब दुनिया के झमेले,
उलझे कुछ जिंदगी के सवाल..
मैं खुद से खुद में लड़ना चाहता हूं

रह गया था जो पीछे,
भुला देना अब मैं चाहता हूं।।

ज़िंदगी एक मौका दे,
मैं खुद को साबित करना चाहता हूं।।

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15 DEC 2023 AT 22:17

–त्यौहार–

D7...........अफसोस इस खानाबदोश जिंदगी में न जाने कब कौन सा सफर लिखा हो, और मेरा क्रिसमस कब और कहां हो।

E9..........रुक जा ऐ मुसाफिर थम जा ऐ मुसाफिर...तेरे कदम बहुत आगे निकल चुके।
तू चल तो पड़ा है लेकिन मुड़कर देख, तेरे अपनों ने तेरे कदमों के निशान मिटा दिए।।

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8 DEC 2023 AT 1:13

सर्द रातों में भी गर्मी महसूस करता हूं,
अकेले बिस्तर पर लेट बीते कल को याद मैं कर लिया करता हूं।

कैसे बीत गया वो पल जो था सबके साथ हो चला आज अकेला ,
खुशहाल हो सबकी दुनिया रब से ये दुआ मांग लिया करता हूं।

कुछ यूं उजड़ी मेरी जिंदगी खुद से खुद को सुना लिया अब मैं करता हूं,
लोगों के तानों से परेशान मैं दास ,कुछ झूठे सहारे का अहसान ले लिया करता हूं।

बिता वक्त बीते कई साल ये मुश्किल दौर भी गुजर जायेगा,
खुद से यह बात कह लिया मैं करता हूं।

थे कई अपने मेरे भी... अब है उनकी यादों का सहारा ,
आईने में खुद को देख एक से दो हैं झूठी तसल्ली मैं अब दे दिया करता हूं।

होंगे मेरे फैसले गलत भले लेकिन कोशिश हर हालात में मैं कर लिया करता हूं।

शिकायत नहीं किसी से मुझे ए दुनिया के लोगों......मैं खुद से खुद में मुस्कुरा लिया अब मैं करता हूं।।

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15 OCT 2023 AT 14:10

जिस घर की बूढ़ीयों को आपस में
घर में आग लगाने का शौक हो,
उस घर की रीड की हड्डी नहीं होती।।

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13 AUG 2023 AT 11:12

क्या कुछ नहीं किया मैंने अपनों के खातिर
हर परिस्थिति में खड़ा था प्यार के खातिर,

दूर रहकर किसी से ईमानदारी दिखाई नहीं जाती, प्यार के खातिर परिवार की इज्जत लुटाई नहीं जाती,

तुझे मुबारक बड़ा शहर बड़े पद ओ सनम,
तेरी बेरुखी बर्दाश अब की नहीं जाती.......।।

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11 NOV 2022 AT 22:49

मेरे जीवन में भी एक पल ऐसा आया था, कर फैसला जिसे मैं पथ पर आगे बढ़ने आया था.....
हुवे बहुत उतार_चढ़ाव मगर नाव को डूबने से मैने हर पल बचाया था...।।

था दूर अपनों से अब हूं मैं और चला, वार्ता हुई बंद हो गए विच्छेद जीवन ऐसा हो चला......
यात्री जीवन भटक गया, दूर अब मैं निकल गया..।।

क्या कहूं किसी से हां गलत फैसला मैं ले पड़ा
कामियाब से हुआ अब नाकामियाब बात अब जान पड़ा।।

अपने पराये सबने मुंह अब फेर लिए,
पल दो पल की कोई खबर लेने को नहीं जीवन व्यथा को अब जान पड़ा।।

होते हैं कामियाब लोगों के साथ हजार चलने वाले, ये नाकामियाब इंसान आज जान पड़ा।।

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17 AUG 2022 AT 20:51

जीवन रहा अब चंद दिनों का माना
लेकिन कुछ करना होगा,
अवसर की तर्ज लिए हमको
खुद झूठा बन अब हंसना होगा।।

जीने की शर्त बड़ी है जालिम..
कुछ सच्च छिपा गिरवी रखना होगा,
आहिस्ते आहिस्ते सही
लोगों को खुश दिखना होगा।।

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25 MAR 2022 AT 8:42

क्योँ किसी के आसरे जिया करता हूँ।

चलो फ़िर से वोही दौर शुरू करता हूँ।।

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19 SEP 2021 AT 13:04

अब मैने बोलने से ज्यादा सुनने की आदत डाल ली है।

कोरे पन्नों औऱ दोहरे चहरों को पढ़ने की आदत डाल ली है।

अपनापन जताने वाले उन झूठे लोगों को पहचानने की आदत डाल ली है।

खैर.....,

लोगों का काम है उंगलियां उठाना
अब मैंने बोलने से ज्यादा सुनने की आदत डाल ली है।

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31 AUG 2021 AT 18:31

कांटो की पनाहों में, गुलाब हो गए तो क्या,
किसी की हकीकत से, ख्वाब हो गए तो क्या।

इससे तो अच्छा है जो चाहे तोड़ ले,
चाहने वाले की छुअन से, खराब हो गए तो क्या।।

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