यूँ तो लिखती हूँ गम को
कई दुसरे रंग को
जिन्होंने छुआ है अन्तर मन को
मेरे अकेले पन को
कोई साथी नही
बस एक कागज कलम ही काफी है
मेरे इस जीवन को-
सुनो,
मत करो इंतज़ाम तुम मेरे सफ़र के लिए अब ,
ये कलम, कागज, और किताबे ही मेरी सच्ची हमसफर है!!
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जब मेरे शरीर से प्राण निकल जाए
मेरे हाथों में कागज कलम थमां देना
आंसू न लाना आंखों में
बस खुलकर मुस्कुरा देना
मैं लिखूंगा दास्तां,
उस जहां में भी जाकर
बस इतने से वादे को,
मेरे यारों तुम निभा देना ।
लेखक - योगेश हिंदुस्तानी
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जब कभी मैं तुझसे बात करता हूं
कलम और कागज साथ में रखता हूं
कितने ग़म और कितने खुशी तूने दिए
सब का हिसाब किताब लिखता हूं
जमाने को भी इससे वाकिफ कराता हूं
पर कसम से तेरा नाम नहीं लिखता हूं
कूरेदना नहीं चाहता उन ज़ख्मों को
लेकिन मै रियाज भी तो इन्हीं से करता हूं
जब क़ीमत नहीं रह जाती इन सबूतों की
इन्हें भी बाजार में रद्दी के भाव में बेंच आता हूं
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जरा सा ग़म आने पर कलम ले बैठते हैं ये शायर लोग,
कोई निरा ही पागल होगा जो इन से इश्क़ कर बैठे!-
हर शाम तन्हाइयों में लिखने बैठ जाता हूं,
अपना दर्द कलम से कागज को सुनाता हूं,
कई बार दर्द जब 'बे-बर्दाश्त' हो जाता है,
उस रोज कलम की नोक से,
कागज का कलेजा छलनी कर देता हूं,
आंखों से गिरे आंसुओं की सिहाई बनाता हूं,
अपना दर्द कलम से कागज को सुनाता हूं,
जिंदगी की इस भीड़ में कोई अपना ना मिला,
बस कलम मिली -- कागज मिला,
जिंदगी के तमाम फलसफे
हाले दिल - दर्दे ऐ दिल,
इन दोनों को ही बताता हूं,
हर शाम तन्हाइयों में लिखने बैठ जाता हूं...
अपना दर्द कलम से कागज को सुनाता हूं...
अपना दर्द कलम से कागज को सुनाता हूं....-
मैं शायर हूँ
आप मुझे पागल और बेवफा कहते हो,
मुझे बुरा नहीं लगता।
मेरी शायरी मेरा पागलपन है,
जिसमें मैं तुम्हें लिखता हूँ।-
अब हम भी अपने पास "कागज़ क़लम" रखना सीखनेवाले हैं
जब कहोगे हम तेरे हैं, उसी वक्त आपका दस्तखत लेनेवाले हैं-
जमी पर बिखरे मीले उस कागज के टुकड़े।
ना कलम के काम आए ना तेरे ना मेरे।।।-
तुझे लिखने के लिए ना सिर्फ़ कागज कलम
ये रातें भी तो जरूरी है
एक तेरी तस्वीर देख किन्ने दिन गुजारूं में यार
ज़िंदा रहने के लिए कुछ मुलाकातें भी तो जरूरी है........-