तुमसे अपनी मोहब्बत का इज़हार कर दूं क्या
नहीं तो कहो मोहब्बत से ही इंकार कर दूं क्या
ख़ुदा ने की है साजिशें कई हमें मिलवाने को
बोलो उसकी सारी कोशिशें बेकार कर दूं क्या
- सुप्रिया मिश्रा-
एक बात अपने दिल में उतार ले मेरे प्यार के रंग को खुद में ढाल ले
पकड़ के तेरा हाथ तेरा साथ नहीं छोडूंगा
जिस दिल में मेरे लिए इतना प्यार है वो दिल में तेरा कभी नही तोडूंगा
रूठेगी हर बार मनाऊंगा पर तुझ से कभी मुंह नही मोडूंगा
बहुत प्यार है तुमसे इनकार मत करना तेरे हर एहसास के साथ ही है जीना मरना
मिलती है खुशी तेरे साथ से सुकून मिलता है तेरे एहसास से
सुनता रहूं तेरी आवाज दिनों रात जैसे कानों में रस घुलता है तेरी बात से
मासूमियत से भरा तेरा चेहरा दिन-रात इसे ही निहार रहा हूँ मैं
चुपके से देख के नजरें झुका लेता मै
कहीं तुम देख ना लो इससे पहले ही नज़रें चुरा रहा हूँ मैं…
तेरे सामने हर वक्त दिल बेकाबू हो जाता है
आओगे मिलने तुम अगले ही पल आस लगाता है
इसे इंतज़ार की तस्सली देकर समझा रहा हूं मैं
क्यों मेरे प्यार का इम्तिहान ले रही हो क्यों ऐसे दूर रहकर मेरी जान ले रही हो
क्यों मेरे दिल को दुख दे रही हो जिसमें तुम्हारे लिए बेपनाह प्यार है
क्यों उसी का इम्तिहान ले रही हो
जनता हूं मेरे नसीब से लड़कर तुझे प्यार किया
नहीं जानता मैंने क्यों प्यार का इजहार किया
मेरी आंखों में तुझे चाहत नही नजर आती रोती है यह आंखे तू क्यों नही समझ पाती
बहुत होंगे तुझे चाहने वाले पर क्या तुझे मेरी कमी नजर नहीं आती-
अजी अच्छा ही है आशियाना बन जाए तो
"हमारी मोहब्बत हर दफ़ा" ऐसे ही महकती रहेगी-
हो गया मुझे भी प्यार
लो कर लिया आज ये इजहार......
मिली है मुझे लाखों की भीड़ में
अब नहीं चाहिए कोई और जिंदगी में
तू ही इबादत तू ही इनायत
तू ही मेरी तमन्ना है....
तू ही धरती तू ही आसमां
तू ही मेरी दुनियां है.....
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ऐ सनम हम आदाओं से अपनी तुम्हारे दिल पर ऐसा वार करेगें
तुम पागल हो जाओगे हम तुमको इतना प्यार करेगें
रह ना पाओगे दूर हमसे इक पल भी अब तुम
हम अपनी यादों से तुम्हे इतना बेकरार करेगें
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ज़िंदगी में इक जिंदगी चाहता हूँ,
तुझ पे बस अख़्तियार चाहता हूँ !
लब पे इज़हार आज आ ही गया,
मैं तुझे हद बेहद चाहता हूँ!
आ भी जा तू कि दिल के गुलशन में,
गुल-ओ-ख़ुश्बू बहार चाहता हूँ!
राह में तेरी बिछा के मैं पलकें,
लज़्ज़त-ए-इंतिज़ार चाहता हूँ
जिस नज़र में शराब सा है नशा,
उस नज़र का ख़ुमार चाहता हूँ!
इश्क़ ले कर आई मेरी रूह,
मैं तुमको इजहार करता हूँ!-
वो रस्म -ए मोहब्बत कुछ इस क़दर निभाये जा रहे.....
इज़हार -ए इश्क़ को हँसी - ठिठोलियों में बिसराये जा रहे.....
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मुकम्मल इश्क़ के लिए जन्मों के रिश्ते कम पड़ जाते है
और लोग चार रोज़ के इजहार-ए-इश्क़ पर मर मिटने की बातें करते है
बगावत-ए-मोहब्बत की बातें है दिल बहलाने के लिए अच्छी
दिल्लगी करने वाले क्या मंजिल-ए-इश्क तक क़याम का दम रखते है
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इजहार ए इश्क में क्या हाल ए दिल कहूं !
दिल में है वहीं पर लफ्ज़ है कि सुनते नहीं !-