घर में आए हर एक अतिथि भगवान के स्वरूप नहीं होते है
कभी कभी राक्षस भी भगवान के भेष में आते है-
जितना तराशा उतना ही अज़नबी पा रहा हूँ,
मैं खुद के लिए अब अतिथि होता जा रहा हूँ।-
बिना तिथि बताये आये वो अतिथि हैं।
निजता की अक्षुण्ता को खण्डित कर दे वो अतिथि हैं।
राशन पानी का हिसाब गड़बड़ा दे वो अतिथि हैं।
हमारे संसाधनों को अपनी बपुति समझें वो अतिथि हैं।
जीवन के सौरमण्डल में राहु बन आये वो अतिथि हैं।
सुख़द दाम्पत्य में जो बवंडर सा आये वो अतिथि हैं।
फिर भी देवों के समकक्ष जो हैं वो अतिथि हैं।
है! अतिथि मेरी सेवाओं का प्रसाद दे दो
जीवन पर आखिर "उपकार" कर दो
अपने जाने की तिथि बता दों।
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कुर्सी
चार टांगे नहीं होती इसकी, चार स्तम्भ है
सच्चे, झूठों को बिठाने का रखती दम है!
इसे पाने की लालच कौन नहीं करता बोलो
नेता पाने को इसको झूठ बोलता हरदम है!
ऐसा नहीं कि सिर्फ मक्कारों को बिठाती,
अतिथि का आतिथ्य भी ना करती कम है!-
खातिरदारी की ...
खूब ठूँस ठूँस कर खिलाया
वो बार बार आए..
हर बार जाते जाते ..
ऐहसान भी जताया..
तुम्ह़े तो हमारी याद आती नहीं
हम ही तुम्हें इतना चाहते हैं...
तुम तो कभी हमारे घर आते नहीं
बार बार हम ही चले आते हैं..
अरे भाई इतना गैप तो दो कि
तुम्हारी हमें याद आए..
तुम जैसे आने जाने वाले..
थोड़ा ब्रेक दें तो हम भी कहीं जाएँ
😂
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जब जब भी धरती पर किसी ने सीता को छला हे
इतिहास गवाह है रावण ने साधु का रूप धरा है।।-
सही बात हैं इसका जीता जागता सबूत हैं
"Corona"
आ तो गया बाहर से पर जाने का नाम नहीं ले रहा है-
आँगन बिखरा हो तो अतिथियों के आने की सम्भावना अधिक होती है, और मन बिखरा हो तो प्रेम की।
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