बेशक़ नजरें फ़लक पे गड़ाए रखिए
नफरतों के अन्धेरे खुद मिट जाएँगे
इक शम्मा मोहब्बत की जलाए रखिए
मुस्कान सजाए रखिए चेहरे पे हमेशा
दर्द कितना भी हो छुपाए रखिए
मंजिल खुद निशाने पे आएगी तुम्हारे
अपने होसलों के तीर चलाए रखिए
मुकम्मल ना हो जब तक जिंदगी अधूरी लगे
इक ऐसा ख्वाब आँखों में सजाए रखिए
दिल का गुलशन आबाद रहेगा सदा
किसी की यादों के फूल महकाए रखिए
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रिश्तों की फसल उगाए रखिये
आसमाँ में बेशक ऊंचा उड़िये
धरा पे घोंसला सजाए रखिये
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मंज़िल कहीं भी हो मुसाफ़िर की,
सफ़र सारे यहीं से शुरू होते हैं,-
हौसला उड़ने का जरूर रहे
आकांक्षाओं से भी लवलेश रहो तुम
पंख पसार उड़ान भरते रहो
ये आसमां सारा तुम्हारा है
पर हर थकान के बाद
माँ की गोद ही आराम दे जाती है
इसलिए जमीं पे कदम टिकाए रखिये
हर रिश्ता जमीं से बनाए रखिये-
मिट्टी की महक मन में बसाए रखिए
खाक होकर मिट्टी में ही मिलना है यारों
इस सच को सीने से लगाए रखिए
बहुत कुछ दिया है इस ज़मी ने हमें
कुछ आप भी प्रकृति का कर्ज चुकाए चलिए...
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उड़ते रहो भले ही आकाश मे
मगर वास्ता धरती माँ से
बनाये रखना इतना मत
खो जाना दुनिया की
इस भीड़ मे अपना
वजूद संभाल कर रखना-
शिद्द्तें दे दो अपनी,तुम ख़्वाबों से मुकर जाओ
ए आसमान अब तुम, ज़मीन पर उतर आओ-
नहीं चाहिए वो आकाश जो मुझे मेरी ज़मी से दूर कर दे
वो ऊँचाई भी किस काम की जो मेरे स्वाभिमान को ग़ुरूर कर दे?-