Dharmesh Shukla 'Dev'   (आचार्य धर्मेश 'देव')
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Joined 16 June 2020


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1 JUL AT 12:02

साहित्य का सृजन करना अर्थात्
इस धरती को धरती बनाये रखना।

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10 JUN AT 9:38

अभी कल की ही तो बात है, यह जीवन किस क्षण कहां मुख मोड़े पता नहीं, वह परमसत्ता कब किस कर्म का फल देदे पता नहीं....

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17 MAY AT 19:21

अपनी हस्ती अपने वजूद को मिटाके चले हैं हम
उस हर नई डगर पर मुस्कुराके चले हैं हम...

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5 MAY AT 15:04

कुछ तो छूट गया था यहां मेरा,
जिसकी तलाश में आता जाता रहता हूं...

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29 APR AT 18:44

जो चीज़ तेरे नहीं थी किसी काम की ,
उसे अब दे दिया उसको जिसके थी काम की।

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25 MAR AT 11:48

ये युद्ध स्त्री पुरूष का कब था?

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25 MAR AT 9:41

जब आपको लगे मेरी दुनिया बहुत छोटी हो गई है, वही सही समय है, अपने पंखों को खोलने का...

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24 MAR AT 21:00

मैंने उसे नवाज़ा बेपनाह मुहब्बत से
वो ऐसा मालिक बन बैठा,
खुदा से भी ऊपर हो गया।

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24 MAR AT 11:11

छुट जाएगा सब तेरे हाथ से खुद ही एक दिन, अभी आनंद कर बीते ज़ख्मों पर नमक ना लगा...

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8 MAR AT 13:15

उज़ाले और अंधेरे सब देन हैं उसी की,
मैं उसमें भी खुश था मैं इसमें भी खुश हूं...

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