Dharmesh Shukla 'Dev'   (आचार्य धर्मेश 'देव')
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Joined 16 June 2020


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Joined 16 June 2020
29 APR AT 18:44

जो चीज़ तेरे नहीं थी किसी काम की ,
उसे अब दे दिया उसको जिसके थी काम की।

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25 MAR AT 11:48

ये युद्ध स्त्री पुरूष का कब था?

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25 MAR AT 9:41

जब आपको लगे मेरी दुनिया बहुत छोटी हो गई है, वही सही समय है, अपने पंखों को खोलने का...

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24 MAR AT 21:00

मैंने उसे नवाज़ा बेपनाह मुहब्बत से
वो ऐसा मालिक बन बैठा,
खुदा से भी ऊपर हो गया।

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24 MAR AT 11:11

छुट जाएगा सब तेरे हाथ से खुद ही एक दिन, अभी आनंद कर बीते ज़ख्मों पर नमक ना लगा...

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8 MAR AT 13:15

उज़ाले और अंधेरे सब देन हैं उसी की,
मैं उसमें भी खुश था मैं इसमें भी खुश हूं...

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3 FEB AT 10:28

अपने जीवन को स्वयं नियंत्रित करो, अपने एकांत को दृढ़ करो, अपने भीतर की सत्ता को धीरे धीरे बहने का अवसर दो ताकि अपने जीवन का वास्तविक लक्ष्य पकड़ पाओ।

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26 JAN AT 20:30

मुस्कुराना तो मेरी फ़ितरत है
ग़मों से आशिकी भी करता हूं...

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3 JAN AT 13:10

हम साहित्य के चाहने वालों को बेरंग शहर अच्छे नहीं लगते। हमें तो पंछीओं का चहकना भी चाहिए और मिट्टी की खूशबू भी, रीति रिवाज़ों की धमक भी चाहिए और मां गंगा की कलकल बहती धारा के किनारे की शांति भी, प्राचीनता की गूंज भी और आधुनिकता का शोर भी और भी बहुत कुछ या यूं समझिए सब चाहिए बस प्रेम के आवरण में ढ़का हुआ।

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29 DEC 2024 AT 22:29

या तो पूरा अपना लो
या फिर पूरा ठुकरा दो

ये बीच के संबंध मुझे समझ नहीं आते।

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