बात आज से 5 महीने पुरानी है
मैं रायपुर mo बनवाने गई थी मुझे
1 हजार की जरूरत थी मैं अपनी
नानी से पैसा मांगी तो बोली कि बड़ी
भाभी को दी हूं मेरे पास नहीं है
शाम हो गई थी मुझे बस में अपने
घर निकलना था फिर भाभी ने पैसे दिए
बोली दीदी ये मेरे पैसे है मैं सुनी
जो कि जल्दी बस में घर जाना था
रात में बस में8 बज जाते mo दुकान
में जाकर mo ली नानी89 साल की
झूठ बोल रही थी अपने जिंदगी में
सत्य थोड़ा ना थोड़ा जरूर रखिये
क्योंकि आपके मरने के बाद आप
सुन नही सकते कर्म नही कर सकते
राम नाम सत्य है-
होली
सब चाहते थे कि मैं रायपुर जाऊ
और होली खेलूं आंनद लू इस होली
पर्व का पर वर्तमान में होली के साथ
साथ देश में कोरोना भी तेजी
से फैल
रहा है बहुत से लोग
खत्म हो जा रहे है
सोचती हूँ जो फौजी भाई हमारे लिए
बहुत साल तक होली नही खेल पाते
आज भी हमारी सुरक्षा के लिए
बाहर दिन रात खड़े हैं मेरे
एक साल से ज्यादा उनका
बहुत साल है मेरा होना मायने रखता है
मेरा होली खेलना नही
जय हिंद जय भारत-
कोई आश्चर्य नही होता इन बात से
हर कोई छोड़ देता है साथ
कोई दूसरा मिल जाने से
इसलिए किसी का होकर रहना है
तो माँ पापा के बनकर रहो-
हर किसी के अंदर ये नही होता साहब
किसी का ऐब दिख जाता है
तो किसी का ढक जाता है-
मासिक धर्म पाप या भेदभाव या प्रताड़ना
मैंने बहुत बार सुना मेरी नानी से
की मासिक धर्म में यदि कोई
खाना बनाती है तो उसे बहुत
ज्यादा पाप भोगना पड़ता है
शुरू से ही सुनती आई
मैं कोई रिश्तेदार की औरत आती
तो मेरी नानी बताती उन लोगों
को की ये बहुत बड़ा पाप कर रही है
बहुत पाप लगेगा इसे मैं मानसिक तनाव में होती मेरी मौसी की लड़की मोना तीजा में मासिक धर्म के पहले दिन में चाय बनाई
और तीजा की25,30 औरतो को चाय बनाकर दी मेरी नानी को पता था
मेरी बड़ी भाभी को बोलते चाय बना लेती
तो क्या वो नही बनाती पर दे दिया सबको चाय मेरे लिए पाप और दूसरों के लिए कुछ नहीं ये कैसा पाप है जो मुझे लगता हैं पर मोना मेरी मौसी की लड़की को नही मेरे समझ के परे है ये पाप मेरे पापा के खत्म होने के बाद माँ डिप्रेशन में थी यदि पाप देखती तो मेरे छोटे भाई बहन भूखे रह जाते इसलिए जो सही लगे वो करो दुनिया बात करेगी खाना कोई नहीं देंगा-
हमें खुद की कीमत खुद ही तय करनी होंगी वर्ना लोग तो अपनी दिखाएंगे ही
खुद ही अपना उसूल स्वयं बनाये
वर्ना दुसरो के वसूलो मे हमें चलना पड़ेगा-
हमारे भी ख्याल कुछ ऐसे ही थे
दुनिया की फितरत से वाकिफ ना थे
जब ठोकर खाई तो अहसास हुआ
कोई भी हमारे पास ना हुआ
पापा कहते रहे बेटा विश्वास ना करना
धोखा खाते रहे और सीखते चले गए
पापा की बात ना मानकर गलती करते चले गए-