हे हमराही, जिंदगी देख आज मैंने आईना देख लिया,
कैसे ग़ुरबत के हालात में पेट की आग
ए दिल, उम्र से पहले समझदार बना देती हैं
वरना बोझिल बचपन में खेलना किसे पसंद नहीं..
ग़ुरबत में जिम्मेदारीयो में शौक अक्सर कम हो जातें हैं,
बचपन भी देखो खेलने की उम्र में ज़िम्मेदार हो जाते हैं,
हमसफ़र शवाब हैं, कुछ मुफलिसी के मारे यतीमों के
सर पर आसरे वाला हाथ रख हौसला बढ़ाने को,
ग़ुरबत की चक्की में बचपन को पिस्ते जलते देखा हैं,
ताकि घर का चूल्हा जल ये अंतहीन पेट की ज्वाला बुझ सके,
हाँ जिंदगी इन की मैंने लाचारी के गुब्बारों में बिकते देखा हैं,
चंद पेट की ज्वाला शांत करने, चंद भर जिंदगी की
साँसे खरीदने के लिए रोज जिंदगी को बेचते देखा,
गर मरहम लगा सको तो किसी मुफलिसी में रिसते जख्मों पर लगा देना,
सरेराह इलाज को हकीम बहुत मील जायेगे, जिन को कोई कमी नहीं,
नही मिलेगा तो शराफ़त के बाजार में इन फरिश्तों के इलाज के खातिर..✍🏻🐦
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