D@ Raygaan'   (बवाल)
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"इज्जत और ज़िल्लत आपके हाथ में नहीं है"
Joined 6 September 2017


"इज्जत और ज़िल्लत आपके हाथ में नहीं है"
Joined 6 September 2017
15 SEP AT 8:03

क़िस्मतों के सहारे छोड़ दिये मैंने
अपने बच्चे बेचारे छोड़ दिये मैंने

उल्फ़त मुझे डसने लगी तो लोग
उल्फ़त के मारे छोड़ दिये मैंने

अब एक बेख़ुदी से है राब्ता मेरा
ख़ुदीओखुदा सारे छोड़ दिये मैंने

रात में नींद का सपना कैसे देखूँ
जब दिन ही बुहारे छोड़ दिये मैंने

दरिया से मैं वैर कर बैठता , पर
बारिशों में किनारे छोड़ दिये मैंने

अंतिम साँस सीधे चिता पे लूँगा
लोग थे जो प्यारे छोड़ दिये मैंने

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9 SEP AT 0:25

सब कहते हैं जिंदगी को बर्बाद नहीं करना
जीने की बातें कोई मरने बाद नहीं करना

दस्तरस में मुट्ठी है, लकीरें नहीं किसी की
कर्म करना, फल की फ़रियाद नहीं करना

जो भी आया राह में, बहा ले गईं हैं सब ये
नदियों के रास्तों को यूँ आबाद नहीं करना

दीवाली के बुझे दीये-सा बस हो गया हूँ मैं
अगली दीवाली तक कोई याद नहीं करना

जो भी टूटा है तबाह होता चला गया यहाँ
तो अब टूटे हुए से कभी मुराद नहीं करना

ज़िंदगी से लड़कर सबने हारना है 'बवाल'
गर बात ख़ुद पर आए, फ़साद नहीं करना

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8 SEP AT 7:49

मैं एक राएगाँ से बढ़कर कुछ भी नहीं
बे-दस्त-ओ-पाँ से बढ़कर कुछ भी नहीं

मेरे नाखूनों ने तो रूह तक खरोंच दी
जिस्म पर निशाँ से बढ़कर कुछ भी नहीं

ज़मीं से ज़मीं छीन ली ज़मीं वालों ने
ओ कहते हैं जाँ से बढ़कर कुछ भी नहीं

रब है भी कहीं तो है वो अपने घर में
पर रहना तो याँ से बढ़कर कुछ भी नहीं

अपनी ज़िद को ग़ुलाम बना तो लिया
अब उसकी माँ से बढ़कर कुछ भी नहीं

किसी मोड़ पर अपना साथ छोड़ दूँ
हाँ अधूरीदास्ताँ से बढ़कर कुछ भी नहीं

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4 SEP AT 21:41

उम्मीदों की दीवारों के घर बनाये हैं सबने
फिर आशाओं के उनपे रंग सजाये हैं सबने

हर कोने में रख लीं फिर यादें भोली भाली
पीड़ाओं के चित्र पर धुँधले लगाये हैं सबने

ताकों में रख ली आज़ादी जैसे जमा पूँजी
खूँटियों पर सपने सजीले लटकाये हैं सबने

आँगन में बिछा लीं फिर प्रेम की खपरैल
छत पे अपने हिस्से ब्रह्मांड बनाये हैं सबने

देहरी पर रख दी शुभ चिंतकों की तस्वीर
बंदनवारों पर रिश्ते गहरे सजाये हैं सबने

पर अंत में जब ना मिलती रोने को जगह
लगता रूहों पर कैसे ये क़ैद ढाये हैं सबने

जब जिस्मों को रहे पोसते सब ही यहाँ पे
सच है कि ख़ुद ही ये दाव लगाये हैं सबने

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3 SEP AT 14:56

मैंने कहा था वक़्त से
रूकना ज़रा, मैं नादां हूँ, थोड़ा सादा हूँ
लम्हों में गुजारिशें कर लूँ, होगा नहीं मुझसे
मेरे दौर को ज़माने की आदत न लगे
दौड़ने भागने की तिज़ारत न लगे
मैं तो बस ठहरने का इरादा हूँ
मैं इश्क़ में होता हूँ तो हँस देता हूँ
रो दूँ, कहाँ मैं प्यादा हूँ
मैंने डूबो दिए हैं आँसू सारे N₂O में
अब रोता भी हूँ तो हँसता हूँ
वक़्त ने सुनी नहीं मेरी
खो गया मुझसे, मेरा मैं
जिसे हँसने की आदत लगी थी
और अब रोने को भी तरसता हूँ— % &पर होता है एक शख़्स सभी के लिए
जो गुज़ारिशों से ठीक पहले के लम्हों में रहता है
जो बस आँखों से कहता है और होंठों पर
हँसी और आँसू बराबर रखता है
जिसकी साँसों में तस्सली की रवानी होती है
पहलू में बैठो तो दुनिया दीवानी लगती है
जो मसाइलों को सिखा देता है दिल्लगी
ताकि वो डूबे न तुममें, तुम्हें, तुमसे छीन लेने को
और हर मसाइल गुज़र जाती है रूह के ऊपर ऊपर
ताकि जिस्म क़ैद न बने तुम्हारे लिए— % &ऐसे शख़्स के साथ
मीलों के सफ़र छोटे लगते हैं
ख़ुशी ऐसे मिलती है हर मोड़ पर
कि रूह को क़ीमत नहीं चुकानी पड़ती
जैसे किसी बच्चे को राज़ी करने में चंद सिक्के लगते हैं
उन संग बिताये लम्हें गुज़ारिशों के मोहताज़ नहीं होते
बस चाहना होता है और झूमे जाता है मन
जैसे कोई बहाना बन जाता है वक़्त
उन नज़दीकियों में ठहरे रहने का
न हँसने का हिसाब रहता है
न रोना भारी लगता है
और बचा रह जाता है हम में
हमारा 'मैं'— % &

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3 AUG AT 8:37

मिरी क़िस्मत के काँटों पर तुमने फूल खिलाये
मेरे हाथों के पत्थर तुमने आँसुओं से पिघलाये

मैंने राह की ठोकरों को चुना अपना समझकर
मैंने अपनी क़ब्र खोदी ओ अपने ही बुत बनाये

तिरी तासीर में प्रेम जिला लेता मुझको शायद
पर मैं बे-ख़ुदी की बीमारी को था सीने लगाये

मैं रब बनाकर तुमको पूज न सका चाहके भी
मैंने अपने सारे मन्दिर थे, अपने हाथों जलाये

मेरे पहलू में मौत भी तड़फे, कर ले खुदकुशी
तुमने कैसे फिर ये जीने को सबब रखे बचाये

मैं एक निर्मोही 'बवाल', आस करूँ भी क्या
मैंने जीने के गीत लिख बस चिता में सजाये

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30 JUL AT 19:46

तुम्हें कैसा मेहसूस करूँ मैं...

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19 JUL AT 1:52

आईने से भी तकल्लुफ़ उठाने की ज़िद में
वो हँसती है तो बस मुस्कुराने की ज़िद में

पल्लू की गाँठें उसकी हाँ! बहुत पुरानी हैं
जो बाँधी थी एक कसम खाने की ज़िद में

उस जाने वाले से उसने मंज़िल नहीं पूछी
यूँ रूकी रही उसके लौट आने की ज़िद में

आँसू हर दफ़ा उसने गिन-गिन कर बहाये
आँखों में सही, उसको बचाने की ज़िद में

कई दिन हो आए, उसने खोली नहीं चोटी
उलझे हुए बालों को सुलझाने की ज़िद में

भंगिमाएं उसके चेहरे की सब गहरा गई हैं
प्रेम में अपना सब-कुछ गँवाने की ज़िद में

वो आजकल बहुत ही कम बोलने लगी है
इस 'बवाल' को मौन समझाने की ज़िद में

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10 JUL AT 10:25

बंद किवाड़ों से आवाज़ों का आना लाज़िमी था
कुछ कहानियों का किस्सा बन जाना लाज़िमी था

आदमी की तसव्वुर में ही अच्छी गुज़र गई ज़िंदगी
हक़ीक़त में तो मुश्किलों से लड़ जाना लाज़िमी था

ये भीतर कोई दूजा शख़्स नहीं बस आईना है दोस्त
ख़ुद से रूबरू होने को उस पार जाना लाज़िमी था

उम्मीदों के बोझ तले पले ग़ज़ब बवाल हैं हम सब
ऐसे में हर मंज़िल को बस ठुकराना लाज़िमी था

बेफ़िक्री में नींद का आना अमा ये कोई बात है यार
चिंता की थकावट से आँख लग जाना लाज़िमी था

क्या शख़्स था रोके रहा आँसू ओ जी गया ज़िंदगी
मरते वक्त दो आँसू आँखों का बहाना लाज़िमी था

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23 APR AT 8:53

ज़िंदगी... कैसी है पहेली हाय!!

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