तुम्हें कैसा मेहसूस करूँ मैं...
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आईने से भी तकल्लुफ़ उठाने की ज़िद में
वो हँसती है तो बस मुस्कुराने की ज़िद में
पल्लू की गाँठें उसकी हाँ! बहुत पुरानी हैं
जो बाँधी थी एक कसम खाने की ज़िद में
उस जाने वाले से उसने मंज़िल नहीं पूछी
यूँ रूकी रही उसके लौट आने की ज़िद में
आँसू हर दफ़ा उसने गिन-गिन कर बहाये
आँखों में सही, उसको बचाने की ज़िद में
कई दिन हो आए, उसने खोली नहीं चोटी
उलझे हुए बालों को सुलझाने की ज़िद में
भंगिमाएं उसके चेहरे की सब गहरा गई हैं
प्रेम में अपना सब-कुछ गँवाने की ज़िद में
वो आजकल बहुत ही कम बोलने लगी है
इस 'बवाल' को मौन समझाने की ज़िद में-
बंद किवाड़ों से आवाज़ों का आना लाज़िमी था
कुछ कहानियों का किस्सा बन जाना लाज़िमी था
आदमी की तसव्वुर में ही अच्छी गुज़र गई ज़िंदगी
हक़ीक़त में तो मुश्किलों से लड़ जाना लाज़िमी था
ये भीतर कोई दूजा शख़्स नहीं बस आईना है दोस्त
ख़ुद से रूबरू होने को उस पार जाना लाज़िमी था
उम्मीदों के बोझ तले पले ग़ज़ब बवाल हैं हम सब
ऐसे में हर मंज़िल को बस ठुकराना लाज़िमी था
बेफ़िक्री में नींद का आना अमा ये कोई बात है यार
चिंता की थकावट से आँख लग जाना लाज़िमी था
क्या शख़्स था रोके रहा आँसू ओ जी गया ज़िंदगी
मरते वक्त दो आँसू आँखों का बहाना लाज़िमी था-
मैंने देखें हैं अक्सर
तुम्हारे गालों पर उभरते वो निशाँ
जो तुम्हारी आँखों में
रूके हुए अश्रुओं की दास्ताँ कहते हैं
जिनको बहने की मनाही है-
जल्दबाज़ी रही सभी को जीने की
तो तथाकथित सिखाये गए तौर-तरीकों को
कर लिया कंठस्थ हमनें
इतना कि लहू में घुल गए हमारे
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आग नहीं, जलते अंगार को देखिये
फिर इस ग़ज़ल के मेयार को देखिये
है रूह सबसे बेचैन चीज़ दुनिया की
तो दिल्लगी को नहीं, प्यार को देखिये
फूल की क्या बिसात, काँटा भी तड़फे
ज़रा बेरूखी से अगर खार को देखिये
तलवार से भी तीखी है शब्दों की मार
धार को नहीं बस उस वार को देखिये
कभी बस हाथ थामिए, पास बैठिये
कभी-कभी यार के ख़ुमार को देखिये
रोशनी कुछ नहीं अँधेरे के वजूद बिना
जब देखिये अपने अँधियार को देखिये-
दरख़्त होना आसाँ न रहा
किसी भी शख़्स के लिए
वर्ना कौन चाहता है
सख्ती का कवच ओढ़े रहना
बड़े नेह से पाले गए पत्तों को
वक्त बेवक्त दूर जाने देना
बस बढ़ते रहना प्रतिकूल परिस्थिति में भी
धूप धूल बारिश बिजली
बचाये रखना छाह को अपनी
दिन भर की मुस्कान का बोझ उठाए
रातों में चुपचाप रोना
अपनी छाहों को भनक तक न लगने देना
क्या गुजरी रात गयी रात उनपर-