घर की पुरानी दीवारों में अब सीलन होने लगी है,
सुंदरता के साथ ये अपनी मजबूती भी खोने लगी हैं!!
संजो के रखा था अब तक ना जाने कितनी यादों को,
देख के कोने में वो संदूक टूटी, यादें भी रोने लगी है!!
ईट, पत्थर, चूने, लोहे, लकड़ी से बनाया था इसको,
टपकती छत, अब फर्श ख़ुद - ब - ख़ुद धोने लगी है!!
बचपन, यौवन, जवानी, बुढ़ापा सब देखा है यहाँ पर,
अब मौत के इंतज़ार में मेरी साँसें भी सोने लगी है!!
दु:ख, दर्द, व्याधि,थकान,अकेलापन सब देखा कुमार',
उम्र मेरी अब, इस शरीर और मकान को ढोने लगी है!!
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