तेरी आँखें जादू कर गई
दिल में आंसू भर गई
हँसती हुई जो मैं ज़िंदा थी,
रोते-रोते मर गई.
कैसे मैं समझू तुमको
कैसे तू समझे मुझको
जब जुबां न बोलने की
कसमें खा कर अड़ गई.
पास आने के लिए
कितनी मोहलत चाहिए
एक मुद्दत से बहार
आते-आते गुज़र गई.
फसलों में फासले है,
हर जुदाई में हिज्राँ
एक ग़म है सौ तरह के
झेलकर मैं मर गई.-
स्त्री हूं
जीवन मूल्यों की मिस्त्री हूं
क्यों फिर भी
शिक्षा अधिकारों से वंचित हूं
गृहस्थी हूं
जीवन की समृद्धि हूं
मुझेे पढ़ना है जीवन को
संस्कारों को लिखना है
जोड़ना है परिवारों को
संतापों को घटाना है
स्त्री हूं तो क्या
स्वयं को नहीं
पूरे परिवार को
शिक्षित बनाना है
मुझे भी अपने
अधिकारों का हिसाब लगाना है
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शिक्षा के बिना नारी अधुरी है,
शिक्षा सभी के लिए जरूरी है।
शिक्षित समाज अपनी अलग पहचान बनायेगी,
तरक्की की राह पर नारी भी हाथ बढ़ायेगी।
शिक्षित नारी समाज को एक नई दिशा देगी,
पुरूष प्रधान समाज में अपनी जगह लेगी।
हर क्षेत्र में नारी सम्मानित होने लगी है,
नये भारत के निर्माण में नारी की कद बढ़ने लगी है॥
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'क,ख,ग' के बिना अधूरी उसकी कहानी है,
'च,छ,ज' के बिना हर दर्द सहती वो जनानी है,
'प,फ,ब' ने कितने आँसू उसके पोंछे होते,
'श,ष,स' के जैसे अगर सपने ना सोए होते।
शिक्षित नारी, शिक्षित समाज,
ये चर्चा बड़ी ताजी है आज,
नारी के अधिकार को शिखर तक पहुंचाना है ,
शिक्षा रूपी ज्योती से रौशन जीवन उसका बनाना है।
जिसने रचा संसार को,मायूस खड़ी देखे मनमानी,
अत्याचार, दुराचार के खिलाफ कभी,लड़ना ना जानी,
पढ़,लिख कर अपने हर हक़ को उसे पाना है,
शिक्षा रूपी ज्योती से रौशन जीवन उसका बनाना है ।
© रंजीता अशेष
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मैं एक स्त्री हूँ
पर कमज़ोर नहीं हूँ
मैं पढ़ना चाहती हूँ
अपने पैरों पे खड़ी होना चाहती हूँ
क्या हुआ अगर में एक स्त्री हूँ
उन मर्दो से कहीं ज्यादा शक़्तिशाली हूँ
जो एक स्त्री को कमज़ोर समझतें है
मेरी क्या गलती है जो में पढ़ नहीं सकती
क्या नहीं है मुझमें जो में कहीं जा नहीं सकती
क्यों रहूँ में बँध पिंजरे में मैं तो उड़ना चाहती हूँ
खुले आसमान में एक क़दम बढाना चाहती हूँ
तोड़ के हर रिवाज़ आज़ादी की साँस लेना चाहती हूँ
में एक स्त्री हूँ
एक स्त्री को हर वो सम्मान देना चाहती हूँ
समाज को एक स्त्री का हुन्नर दिखाना चाहती हूँ
बताना चाहती हूँ की शिक्षा पे हमारा भी हक है
अपना अधिकार में हर हाल में पाना चाहती हूँ
स्त्री हूँ तो क्या हुआ पढ़ लिख के आगे बढ़ना चाहती हूँ
सफलता की और अपना हर क़दम बढ़ा के
गर्व से देश का नाम रोशन करना चाहती हूँ
एक स्त्री होने के अभिमान को सार्थक करना चाहती हूँ
मैं एक स्त्री हूँ
शिक्षा पाकर शिक्षा देना चाहती हूँ-
महिला समानता दिवस
यदि घर में स्त्री शिक्षित है
समझ लीजिए आगे चलकर
दो घरों की पीढ़ियां शिक्षित हो जाएंगी।
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भोजन के सात्विक होने पर जोर देने का मुख्य कारण,
यही था कि हमारे शास्त्र कहते है जैसा खावै अन्न!
वैसा पाबै मन्न।
अपना अपना नज़रिया है! कहके वास्तविकता को,
छुपाया तो जा सकता है,मिटाया नही।
जैसी दृष्टि वैसा दर्शन।
देवी "अनुसुइया" ने अपने हाथ में जल लिया और त्रिदेव पर डाला!
तीनों के तीनों छः माह के बालक बनगए उनकी पत्नी ढूंढती फिरें।-
स्त्री बहुमूल्य रत्नों का भंडार है
हमें बस उनकी परख नहीं होती।-