अवसर और सूर्योदय में एक ही समानता है..
देर करने वाले इन्हें खो देते हैं!!-
जिदंगी मे मुझसे कभी कुछ छिपाना मत
अगर कुछ छिपाया है तो उसे बताना मत
जैसे हो अब संग रहो हमारे
एक पल के लिए मुझसे दूर जाना मत
जिदंगी मे मुझसे कभी कुछ छुपाना मत-
हम तेरे पास भी आये जज़्बात का शीशा लेकर
लफ्ज़ के पत्थर ने तोड़ दिया तेरी सफाई देकर
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ऐसे मिले वो मुझसे जैसे बरसों पुरानी पहचान थी
बिछड़े ऐसे के मुड़ के फ़िर उसने देखा भी नहीं
कुछ न कहते हुए भी अक्सर बहुत कुछ कहती हूं खुद से
यूं तो लब़ पे है ख़ामोशी मगर मन के अंदर चीखता है शोर ख़ुद ही ख़ुद से
मन के सागर में उमड़ -घुमड़ उठता है शोर अंदर
कुछ अधूरा सा था जो अंदर ... हां कुछ अधूऱा सा था जो अंदर
खुद़ ही खुद़ में ख़ुद को पूरा समझ उसकी ख़ुशी में ख़ुश हो मुस्कुरा देती हूं माफ़ कर उसे........... हां मुस्कुरा देती हूं.माफ़ कर उसे.......!!!!🍁🍂🌺-
कृष्ण की लाडली वो, हम भाइयों की जान हैं,
वो छूटकी सी बच्ची सच बड़ी शैतान हैं।
खुद को गोपिका, कृष्ण को स्वामी समझती,
कृष्ण ही सखा उसके, कृष्ण ही उसकी पहचान हैं ।
भक्ति कहाँ जानती है, निःस्वार्थ प्रेम की पुजारी है,
कृष्ण की अनदेखी मानो उसका ही अपमान है ।
उदासी की जो पूछो तो कहती, "अपन रोता नहीं",
चंचल सा मन उसका मगर असीमित स्वाभिमान है,
उम्र में उसकी समझ न आते थे, शब्दों के अर्थ हमें,
नन्हीं सी बच्ची को, जाने कितने शब्दों का ज्ञान हैं,
वो बहन है, हमारी जाने इस बात पर क्या सोचती है वो,
पर उसके भाई कहलाने पर, होता मुझे अभिमान हैं ।-
देखा नहीं कोई शख्स तुम- सा
.....जो चाहे मुझको इस तरह जैसे मैंने चाहा रसमलाई को।।-
Baat ishq ki h aur mehfooz rehne ki aasra bhi h
Ye wo raah h janaab jaha manzil bhi mil jaaye to sukoon kho jaata h-
दिवा की वो रश्मि है निशा की रजनीश,
तमस् की वो दीपशिखा है,है निराशा में नव्य प्रतीश।
वदान्यता का प्रतीक है वो,है अनुपम ईश्वरीय आशीष,
उनकी नायाब कला को प्रणाम करता मैं,सहृदय झुककर शीश।
मुख से करती अमृतवाणी,है कोमल सा स्वभाव,
अपनी कृतियों से छोड़ चुकी हैं जो मन में सौम्य सा प्रभाव।
सफलता के शिखर पर बढ़े चले तुम्हारे हर एक कदम,
दुःख का साया कभी छू ना सके,बस मुस्काते रहो हरदम।
ना कोई अहमभाव है जिनमें ना कोई विकार,
सौम्यवाणी से ही झलक जातें हैं उनके उत्कृष्ट संस्कार।
किस विधि सखी मैं व्यक्त करूँ तुम्हें अपना आभार,
केवल चंद पक्तियाँ हैं देने के लिए कर लो इन्हें स्वीकार।
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ऐसा नहीं था की चाहत नहीं थी तुम्हारी.....
बस वक़्त ने मेरे हाथों से डोर खिंच ली थी तुम्हारी....-