VIVEK   (शून्यमय🖋️)
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Joined 27 April 2019


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13 JAN 2024 AT 18:18

तू तन्हा था तन्हा ही रहा।

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1 JAN 2024 AT 18:13

नवचेतना नवहर्ष नवउमंग का सृजन हो,
नवरंग से रंगा हुआ नववर्ष का जीवन हो।

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24 DEC 2023 AT 19:17

तेरी बातों का एहसास कुछ यूँ होता है,
तू ना होकर भी मेरे आस-पास होता है।

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24 DEC 2023 AT 19:01

मन के डर से लड़कर एक दिन जीत हीं जाना है,
कोशिशों की आग से सफलता को तपाना है।
गिर गिर के एक दिन सम्हल हीं जाना है,
कुछ कर के दिखाना है,कुछ कर के दिखाना है।

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24 DEC 2023 AT 18:50

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13 NOV 2020 AT 20:18

प्रकृति भी सौम्य सा ममतामयी आशीष दे,
सुख-समृद्धि का उज्ज्वल सा शुभाशीष दे।

जीत का तेरा हर दांव हो सृष्टि में प्रभाव हो,
उत्तम सा स्वभाव हो..न कोई अभाव हो।

अंतःकरण में न कोई घबराहट हो,
पूरी तेरी हर कही-अनकही चाहत हो।

मन में उदासी और मस्तिष्क में चिंता न कोई शेष हो,
नयी खुशियों और नयी आशाओं का श्रीगणेश हो।

उम्र का दीपक सदैव प्रज्ज्वलित रहे,
उमंगों का आदित्य निरंतर उदित रहे।

चेहरे पर प्रसन्नता के पुष्प अनन्तकाल तक आच्छादित रहे,
हृदय का मोती भी नेकी के इत्र से सुगन्धित रहे मुदित रहे।

हँसते रहो खिलखिलाते रहो है बस यहीं दुआ,
सृष्टि में जगमगाते रहो जैसे हो कोई वेदप्रभा।

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21 OCT 2020 AT 22:53


विवशता की चौखट पे दम क्यों तोड़ जातें हैं किसान,
राजनीति के पैरों तले कुचले गए न जाने कितने समाधान।
हरे-भरे खेत-खलिहान बार बार बन रहे नए शवाधान,
अनवरत लिखा जा रहा है आत्महत्या का कुत्सित विधान।

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18 OCT 2020 AT 11:20

है वो कौन सी विधा सखी,
जिससे हो तुम जुदा सखी।

सभी भावों से परिपूर्ण,
काव्यविधा में सम्पूर्ण।

साहित्य रूपी वृक्ष में..
जैसे हों रंग बिरंगे फूल।

कभी प्रेम की अभिव्यक्ति हो,
कभी नवदुर्गा सी शक्ति हो।

कभी शशि की जुन्हाई सी,
कभी ख़ुशियों की परछाई सी।

कभी हँसी की तरंग सी,
कभी इंद्रधनुषी रंग सी।

कभी अमृतवाणी की बरसात,
तो कभी करे हृदयस्पर्शी बात।

रचनाओं में विविधता का प्रतिरूप,
ग़मों की छाँव में खुशहाली की है धूप।

खुशियों के घर में जैसे..हो हँसी का झरोखा,
लेखनकला से सम्मोहन का अंदाज़ है अनोखा।

प्रीति की प्रतिमान,सबके प्रति रखे सम्मान,
कृतियों में झलकता है जिसके अपूर्व उत्तम ज्ञान।

ऐसे ही हँसते रहो हँसाते रहो..लिखते रहो पढ़ाते रहो,
जीवन के हर पड़ाव पर दीपशिखा सी जगमगाते रहो।

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13 OCT 2020 AT 14:02

कलम का जादूगर✍🏻❤️

दो पंक्तियों में हीं कह जाते कितनी गहरी बात,
आपके शब्द रूपी मोतियों की माला है बड़ी नायाब।

कलम का है कागज़ पे अद्भुत मायाजाल,
खिलाड़ी जैसे शतरंज में चले जीत की चाल।

संश्लेषण-विश्लेषण का है कितना सुन्दर मिश्रण,
शब्द सुमन करते हों जैसे हृदय में स्वतंत्र विचरण।

सटीक शब्दों से रचा गया वाक्य का विन्यास,
पढ़कर-गढ़कर होता है नित्य सुखद अहसास।

वर्तमान विकृतियों पे भी करतें हैं उत्कृष्ट तीक्ष्ण कटाक्ष,
जैसे स्वयं सत्य का ताण्डव करते हैं शब्दों के रुद्राक्ष।

और क्या कहूँ मैं मान्यवर आपकी कला का कायल हूँ
शब्द रूपी अनुभव के विलक्षण तीर से मैं घायल हूँ।

हृदयशः नतमस्तक हूँ आपके शिल्प पे हे काव्य-शिल्पकार,
शब्दों की माला सृजित हुई मिला काव्य को सहज आधार।

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22 AUG 2020 AT 18:19

हे विघ्नविनाशक..अब करो आप ही सबके विघ्नों का नाश।
सुख-समृद्धि से भर दो झोली..हो सम्पूर्ण सर्वांगीण विकास।।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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