जब ईश्वर ने
स्त्री को रचा
कूट कूट कर भरी
उसमें सक्षमता
जब ईश्वर ने पुरुष को रचा
उसे भी हर प्रकार सक्षम बनाया
दोनों की तुलना ना हो
इसीलिए
स्त्री और पुरुष को
एक दूसरे का पूरक किया
लेकिन
पुरुष ने स्त्री की सक्षमता को
कभी नहीं स्वीकारा
स्वीकार करने का गुण
उसने क्या केवल स्त्री में भरा ??
यदि नहीं .. !! तो पुरुष की सोच
पितृसत्तात्मक या कि पुरूषवादी
कब और कैसे हो गई ??-
रोटी पर सब्ज़ी ना सही, प्याज ऱख दिया करते है
कुछ वैंसे ही YQ पर हम, सोच ऱख दिया करते है-
शहर ढूंढा
हर गली ढूंढा
पर कहीं न पाया...
तवायफ़ की तलाश मेरी
जाकर मेरे आँखों मे खत्म हुई।।-
जैंसे बिन पंछी के
घोंसला अधूरा सा लगता है
वैंसे ही अगर दिल में दया न हो
तो सोने का दिल भी छोटा सा लगता है-
क्यूँ पत्थर बनकर मेरी राह में खड़े हो
जो हुआ सो हुआ हमारे दरमियान
अभी भी क्यूँ तुम अपनी ज़िद्द पर अड़े हो।-
क्योंकि मैं एक स्त्री हूँ...
सुंदरता के नाम दांतों को नुकीला कराना पड़ता है,
लौसा के नाम लोहे के अंतवस्त्र पहनना पड़ता है,
वक्षस्थल दीर्घ न हो तो सपाट कराना पड़ता है,
महोत्सव के नाम बैलगाड़ी में बंधना पड़ता है,
विधवा हुई तो औरों के साथ सोना पड़ता है,
अछूत मान कर चौपदी से गुजरना पड़ता है,
उंगलियां कटवा कर शोक मनाना पड़ता है,
अच्छा हो नग्नावस्था में पिटवाना पड़ता है,
अर्धनग्न हो कर सम्मान दिखाना पड़ता है,
चप्पल को हाथ मे रख के चलना पड़ता है,
स्त्रीत्व अंग का अंगभंग सहना पड़ता है,
लोट्स फ़ीट से दिव्यांग होना पड़ता है,
नग्न रह कर सावन मनाना पड़ता है,
कौमार्य का सबूत देना पड़ता है,
....क्योंकि मैं एक स्त्री हूँ!
_राज सोनी-
संसार में सबसे बड़ा रोग आलस है
और ये हमारी दुर्बल इच्छा शक्ति के दुष्प्रभाव से संक्रमित होता है
क्योंकि यही वो रोग है जो हमारे मन और तन को
पूर्णतः नियंत्रित करने में सक्षम है-
ब्रांडेड कफन बनाने वाली, अभी कोई कम्पनी नहीं आई
(कैप्शन पढ़ें👇👇👇)
🙏एक बार जरूर पढ़ें🙏-
तुमने कहा था
सच हो जाता है
सोचा हुआ तुम्हारा
मैं सोच रहा बरसों से
तुम्हें हिचकी भी नहीं आती-