सुनो! एक तो मैं 'सूफ़ी सा बन्दा' और उस पर तुम एक 'मासूम सी परी'...
उफ्फ्फफ ! कमबख्त 'इश्क' तो होना ही था हो गया 'आखिरी पहरी'..-
सूफी के इबादत की लौ सा है इश्क़ मेरा,
खुद ही में बेख़ुद, लबरेज़ सा है इश्क़ मेरा...
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ये सच है, रब हमें आज़माता है,
अक्सर उन चीज़ों के लिए
जो हमें बेहद पसंद होती हैं।
मैंने अपनी पसंद की हर,
वो चीज़ छोड़ दी,
जिससे मेरा रब राज़ी नहीं,
वो मेरा रब हैं, आज़माये ,
उसे हक़ है, मेरा तो काम
सिर्फ़ उसकी रज़ा के आगे
सिर झुकाना !-
सब कुछ खुद कर
बस मेरा नाम कर देता है
जे मेरा मुर्शिद भी कमाल है साहब
बिन कहे ही मेरे सारे काम कर देता है ।-
कहानी बहुत सुन ली मैंने के अब रूबरू होने दे मुझे भी
............... ऐ खुदा ..........
आखिर एक मौका तो मिले जलवा दिखाने का आज तुझे भी-
तलब मौत की क्यूं करना गुनाह ए कबीरा है
मरने का शोंक है तो इश्क़ क्यों नहीं करते
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दिल में बसने वाले दिल से नहीं निकल दे
ज़ुल्म ओ सितम हो या ज़हर पेश ए रूह
इश्क़ में सच्चे आशिक़ प्यार से पीछे नहीं हट दे
इश्क़ जुलेखा हो या इश्क़ सुलेमानी
ज़ज्वा ए पाक कभी मुश्किल से नहीं मुकर दे
है हया जेब अहले निसा हो या मर्द ए युसुफ
खुदा के पाक बंदे कभी राहे हक से नहीं हट दे
शहर बानो होकर सहजादी ए मुल्क
एहतराम ए हुसैन से कभी नहीं भटक दे।
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क्या है राज ए नसीबा खुदा जानता है
फेंक आसा ज़मीन पे मूसा आगे खुदा जानता है
करके जुदा याकूब से युसुफ को
ये भी राज खुदा जानता है
कौनसा रास्ता है मंज़िल मुराद
ये बात बस सिर्फ खुदा जानता है।
शहादत ए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम
की बेहतर सब से खुदा जानता है।
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कैसे बाहर रखें इस जिस्म को इश्क़ से,
इसने मुझ सूफ़ी को हैवान कर दिया।-
बजाहिर खुद को छिपाया है ला तादाद परदों में मगर,
कायनात का हर ज़र्रा ज़र्रा तेरे होने की गवाही देता है!-