मतला
नामची लोग होते धनी हैं बहुत,
पीर उनको पराई से क्या फायदा-
मैं बिकता रहा बाजार में गैरों के हाँथ से
ये सोचकर तुम ही एक खरीददार थे.-
-:गीत:-
तुम सज कर हुईं चांद सी चांदनी
जुगनुओं की तरह हम तड़पते रहे
शाम को आओगी या सुबह आओगी
उम्र बड़ती रही दिन भी कटते रहे
हो ब्रहद पूर्णिमा कुछ भी आशा नहीं
रात के सब मुसाफ़िर भटकते रहे
मौन ने मौन को सुन लिया इस तरह
वो भी कहते रहे हम समझते रहे
नभ,गगन,नील,अम्बर की चादर तले
वो जगाते रहे हम भी जगते रहे!-
सलमा सख्त है बहार के ज़माने चले गए
हम मस्जिद की मीनार छू जाने चले गए
कत्ल करने केवल दस्ताने चले गए
खुद बा खुद तीर निशाने चले गए
जब रहा ना कोई जमाने गुफ्तगू काबिल
पिछली गली से निकले और मयखाने चले गए-
कहानी के मिरी सब किरदार आबाद रखना,
ऐ खुदा पर मुझको भी याद रखना
यूँ तो अच्छी है अलामत इश्क की, फिर
फिर जरूरी है थोड़ा एहतियात रखना
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तमाम रात छूने का उन्हें खयाल आता रहा
पर्दे में उन्हें देख मिरी ज़ुर्रत तमाम हुई-
हीरा तलाश कर रहा मैं हीरे की खान में,
बापू बैठा रहा,जबकि अपने मकान में
जैकारों मैं उठती यहां मोमिन की सदा,
मैं सुन रहा हूँ राम को मस्जिद की अज़ान मैं
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कैसीं तेरी ये उलझनें कैसा मलाल है
लब पर तेरे,मेरे लिए ये किसका सबाल है-
उम्मीद हो ना क्यों यहाँ दीगर के साथ की
अपनों के हांथों में खंजर हसीन है-
कुछ ख़ामोशी मांगी थी जिंदगी में हमनें,
सब चाहने वालों ने किनारा कर लिया-