ekrajhu   (Ekrajhu)
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Joined 18 July 2019


Joined 18 July 2019
19 SEP 2021 AT 0:30

मतला

नामची लोग होते धनी हैं बहुत,
पीर उनको पराई से क्या फायदा

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18 SEP 2021 AT 21:17

मैं बिकता रहा बाजार में गैरों के हाँथ से
ये सोचकर तुम ही एक खरीददार थे.

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17 SEP 2021 AT 13:17

-:गीत:-
तुम सज कर हुईं चांद सी चांदनी
जुगनुओं की तरह हम तड़पते रहे

शाम को आओगी या सुबह आओगी
उम्र बड़ती रही दिन भी कटते रहे

हो ब्रहद पूर्णिमा कुछ भी आशा नहीं
रात के सब मुसाफ़िर भटकते रहे

मौन ने मौन को सुन लिया इस तरह
वो भी कहते रहे हम समझते रहे

नभ,गगन,नील,अम्बर की चादर तले
वो जगाते रहे हम भी जगते रहे!

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17 SEP 2021 AT 1:34

सलमा सख्त है बहार के ज़माने चले गए
हम मस्जिद की मीनार छू जाने चले गए

कत्ल करने केवल दस्ताने चले गए
खुद बा खुद तीर निशाने चले गए

जब रहा ना कोई जमाने गुफ्तगू काबिल
पिछली गली से निकले और मयखाने चले गए

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16 SEP 2021 AT 23:33

कहानी के मिरी सब किरदार आबाद रखना,
ऐ खुदा पर मुझको भी याद रखना

यूँ तो अच्छी है अलामत इश्क की, फिर
फिर जरूरी है थोड़ा एहतियात रखना

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16 SEP 2021 AT 21:50

तमाम रात छूने का उन्हें खयाल आता रहा
पर्दे में उन्हें देख मिरी ज़ुर्रत तमाम हुई

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16 SEP 2021 AT 15:42

हीरा तलाश कर रहा मैं हीरे की खान में,
बापू बैठा रहा,जबकि अपने मकान में

जैकारों मैं उठती यहां मोमिन की सदा,
मैं सुन रहा हूँ राम को मस्जिद की अज़ान मैं



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15 SEP 2021 AT 18:31

कैसीं तेरी ये उलझनें कैसा मलाल है
लब पर तेरे,मेरे लिए ये किसका सबाल है

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15 SEP 2021 AT 17:16

उम्मीद हो ना क्यों यहाँ दीगर के साथ की
अपनों के हांथों में खंजर हसीन है

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15 SEP 2021 AT 14:02

कुछ ख़ामोशी मांगी थी जिंदगी में हमनें,
सब चाहने वालों ने किनारा कर लिया

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