Ajay Rajesh   ("अजय" राजेश)
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Joined 26 December 2019


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Joined 26 December 2019
18 JUN AT 19:35

लोग कहते है अगर सब कुछ पहले से निर्धारित है ।
तो हमे कर्म करने की ज़रूरत क्या है,
हां के बिल्कुल सही है ,जो भाग्य में लिखा है वहीं मिलेगा पर इसके साथ परमात्मा ने इंसान को इतना सक्षम भी बनाया है कि अगर वो चाहे तो अपना भाग्य भी बदल सकता है ,अगर वो पूरी निष्ठा से किसी कार्य को करने का ठान ले तो समस्त ब्रह्मांड की शक्तियां उसकी सहायता के लिए उपस्थित हो जाती है और जो भाग्य में नहीं है वो भी मिल सकता है । इसलिए तो इसी कर्म योनि कहते है यहां कर्म ही आपको राम और कर्म ही आपको रावण बनाता है ।

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18 JUN AT 17:37

Falling for someone's internal beauty than external appearance, is rare but still the first sign of true love ....

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16 JUN AT 6:07

"कुछ किस्से गलतफहमियों के यूं मशहूर हो गए कि फिर न चाहते हुए भी हम आपसे दूर हो गए।"

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10 JUN AT 22:23

Out now on youtube link in bio

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7 JUN AT 7:51

अधूरा होकर भी
प्रेम यह पूरा है,
इसमें मोह नहीं, त्याग है।
इसमें वासनाएँ नहीं,
केवल निःस्वार्थ प्यार है।

यहां शरीर नहीं,
रूहें मिली हैं,
यहां रूप नहीं,
भावनाएँ दिल में उतरी हैं।

यहां उसे पाने की लालसा नहीं,
उसकी खुशी में ही अपनी खुशी
देखने का सुकून है।

यहां शब्दों का मोह-जाल नहीं,
प्रेम की वाणी का प्रकाश है।

यहां दूरी है सांसारिक रूप में,
पर आत्मिक रूप से नज़दीकियाँ हैं।

यहां एकत्व की बात है,
जन्मों से परे है यह प्रेम-गाथा।

ऐसे प्रेम को सदा ही नमस्कार है,
यहां स्वार्थ नहीं, मोह नहीं — केवल प्यार है...

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31 MAY AT 9:57

यह सवाल मन में आ रहा था
बार बार यही मुझे
मेरे पथ से भटका रहा था
पर अब समझ में आया है कि
वो मेरा था ही नहीं जो
मैने पकड़े रखा था
पकड़े रखने के कारण ही मैने
दुखों का स्वाद चखा था।
मोह को प्रेम का नाम देना
सदा ही दुख का कारण है।
प्रेम तो है श्री कृष्ण राधा सा
जो जग के लिए उदाहरण है ।
मर्यादा निवाने के लिए
दोनों ने हित का त्याग किया ।
मोह ने है सदा बांधा सबको
और प्रेम ने ही है आजाद किया –२

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27 MAY AT 14:17

आप तो सिर्फ अपना कार्य करते हो,
लोगों की आप से जुड़ी अपेक्षाएं उन्हें अच्छे या बुरे का एहसास करवाती हैं।"

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25 MAY AT 22:20


"घर में बरकतों के रुकने की वजह तंगदिलियां हैं , न कि मकड़ी के जाले लगना।"

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24 MAY AT 10:53

धर्म क्या है ?
"जियो और जीने दो"
के सिद्धांत का पालन ही धर्म है |
अधर्म क्या है ?
खुद के स्वार्थ के लिए दूसरों से
उनकी आजादी छीनना ही अधर्म है ।

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23 MAY AT 14:17

"तेरा तुझको सौंप दे, क्या लागत है मोर,
मेरा मुझमें कुछ नहीं, जो कुछ है सो तोर।"
This is not just lines these are the key to salvation
Yehi moksh hai

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