I̊m̊r̊ån̊ K̊h̊ån̊J̊o̊ẙa   (इंसान)
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Joined 17 February 2020


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साथ हर दम मेरा निभाया है उसने।
देकर के कई हसीन पलों की यादें,
हँसते हुए मुझको रुलाया है उसने।

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मुसीबत पड़े तो हमसे कतराने वाले।
पसंद नहीं है हमें लोग इतराने वाले।
काम आए ज़रूर मुसीबत में लेकिन,
फिर हर पल अहसान जतलाने वाले।

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कौन कहता है बदल रहा हूँ मैं।
हक़ीक़त में तो संभल रहा हूँ मैं।
देख दुनिया के नए रवय्यो को,
अंदर ही अंदर दहल रहा हूँ मैं।

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इस तरह हुस्न पर असली शबाब आया है।
जब लबों पर ज़ुल्फ़ों का हिजाब आया है।

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कभी कभी बेकार होता है,
बेवक्त बे वजह अच्छा होना।

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आजकल लोग...._

बिन चिंगारी के आग लगाने लगे हैं।
बे सबब ज़हर को फैलाने लगे हैं ।
परे रख कर इल्म की किताबों को,
मोबाइल से तारीख़ बतलाने लगे हैं।

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अपना किरदार निभाऊंगा चला जाऊंगा।
अपने दुख दर्द सुनाऊंगा चला जाऊंगा।
बस्तियां उजड़ी हैं नफरत के बुलडोज़र से,
मकाँ कुछ प्यार के बनाऊंगा चला जाऊंगा!

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ज़माने के हर रंग तहरीर में रक़म है।
क़लम पे उसके बड़ा रब का करम है।
लफ़्ज़ों में बसा करती है नर्गिसी ख़ुशबू,
आज ही के दिन हुआ उसका जनम है।

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चेहरा उसका कमाल मख़मली।
लब पर उसके सवाल मख़मली।
बातों से उसके फूल हैं झड़ते,
लहज़ा उसका बवाल मख़मली।

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बज़ाहिर तो हर तरफ़ इंसान नज़र आता है।
कर्म से अपने अक्सर हैवान नज़र आता है।
क़र्ज़ ले लिया ख़ूब बच्चों की शादी के लिए,
रियाकारी से वो अपने धनवान नज़र आता है।

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