अपने बनाये पिंजरे की क़ैद से, बाहर निकलने की छटपटाहट, काल्पनिक सलाखों से टकराकर, निःशब्द चीख़, और फिर सन्नाटा, रोज़ रोज़ यही दोहराता रहता हूँ, पिंजरे से बाहर नहीं निकल पाता हूं।।
सतरंगी इंद्रधनुष के रंगों में, जहाँ एक रंग दूसरे से मिलता हैं, उन्ही बारीक लकीरों में, तुम्हारा चेहरा तलाशता, अपने हाथ में गुलाल लिए, तुम्हारा रास्ता निहारता।।