Naresh Saxena   (Naresh Saxena)
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Joined 28 December 2016


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Joined 28 December 2016
30 JUL AT 20:23

कभी कभी,
मन करता हैं,
तुम्हारी उपेक्षा,
और मेरे आत्म सम्मान,
दोनो की परवाह नहीं करते हुए,
तुम्हें एक मेसैज,
भेज ही दिया जाये।।

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8 JUL AT 18:50

मृत्यु,
शोक हैं,
अब इस पृथ्वी पर,
तुमसे मिलना ना होगा,

मृत्यु,
आंनद हैं,
पुनर्जन्म लेकर,
तुमसे फिर से ,
मिलने की संभावना हैं।।

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28 JUN AT 23:02

कुछ लिखने का मन हो रहा हैं,
सुनो, तुम ज़रा याद आओ तो।

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26 JUN AT 20:06

ज़िद्दी हूँ....
पर ये,
ज़िद नहीं,
प्यार है।

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24 JUN AT 7:41

सूदख़ोर....
ऐसा कितना प्रेम दिया उधार?
ये चुकता क्यों नहीं।
यादों की और कितनी किश्तें,
बाकी हैं अभी?
मैं खाली हो गया हूँ,
बस करो, अब और नहीं।।

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22 JUN AT 3:18

मुझे बाँध कर, ख़ुद उन्मुक्त रहने की चाह,
खरीदने बेचने के तराज़ू अलग अलग, वाह।

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12 JUN AT 7:09

और कितना कर्ज़ बाकी हैं अभी,
और कितना याद करना हैं तुम्हें।

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7 JUN AT 17:19

मैं,
वक़्त नहीं,
वृक्ष हूँ,
देखो,
अब भी वहीं,
ठहरा हूँ ।।

-


5 JUN AT 7:39

तुम,
आत्मा की सदृश हो,
तुम मुझे दिखाई नहीं देती,
लेकिन मेरे भीतर, कहीं हो।
मुझे निरंतर,
तुम्हारे अस्तित्व का बोध रहता हैं।

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31 MAY AT 20:37

प्रेम...
अपितु वासना?
शब्द से क्यूँ बाँधना,
मेरी भावना,
इतनी समझ तो तुम में बाकी हैं,
अब जो भी हैं, तुमसे ही हैं,
औऱ मेरे लिए इतना ही काफी हैं।

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