हम तो सोच रहे कि..🤔
तुम्हें इतना याद करें कि..
तुम्हें हिचकी नहीं सीधा
दिल का दौरा पड़े..😂😂-
मिलेंगे हम हर रोज़ लेकर, अपने हाथों में तेरी उंगलियाँ,
खुले आसमां में किसी पेड़ के नीचे, जुड़ जायेंगे हम जैसे फूल और पट्टे,
रह जायेंगी एक करने को टहनियाँ।
[In Caption]-
इज्ज़त लुटी हुई सिसकियाँ देखी हैं क्या
उनको लूटती वो उंगलियाँ देखी हैं क्या
उठाकर कौन ले गया सबको पता है मगर
ज़ुल्म को ढूँढती वो निश़ानियाँ देखी हैं क्या
किसी जान की क्या कीमत है कभी सोचा
दर्द से तड़पती हुई वो बच्चियाँ देखी हैं क्या
ग़रीब है इसको दबा लो डर जायेगा बेचारा
लाचारी से हुई वो परेश़ानियाँ देखी हैं क्या
तू तो बेदर्द है ही कोई असर कहाँ होगा तुझे
भूख से उजड़ती ज़िन्दगानियाँ देखी हैं क्या
दूसरों की मदद् किया करो भलाई इसी में है
मदद् माँगती हुई ख़ुदगर्ज़ियाँ देखी हैं क्या
छोटा समझकर जिसको छोड़ दिया "आरिफ़"
उसकी वो बड़ी-बड़ी नादानियाँ देखी हैं क्या
"कोरे काग़ज़" पर कभी एक जुर्म ना लिखा
उससे हुई सबकी वो ख़ामोशियाँ देखी हैं क्या-
दूरियाँ हो या नजदीकियाँ, याद आती है तेरी गुस्ताखियाँ
ख़ुद से तो कब का टूट गए है ,जिन्दा रखी है तो बस है तेरी तन्हाईयाँ।
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तुम्हारे दूर जाते ही,
हमने बेवफाई कर ली है ।
तुम्हारी जगह हमने ,
सिसकियों से रिश्तेदारी कर ली है।।-
एक दिन मैं छोड़ जाऊँगी
यह घर ये दीवारें ,आँगन ,यह छत
फिर मैं खोजने नहीं आऊँगी
इनमें दबी हुई चिट्ठियाँ ,प्रिय तेरी पदचाप
छोड़ जाऊँगी अपनी दबी हुई सिसकियाँ
छोड़ हमारी संततियों को अब उनके हाल
फिर मिलूंगी तुझ से इस धरा के उस पार
छिप जायेंगे हम चन्द्रमा की परिधि के आसपास
चंद्रमा बन जायेगा झिलमिलाता मानसरोवर
बन हंस के जोड़े ,साथ चुगेंगे मोतियों के दाने
कहीं और जा छिपेंगे कृतिका नक्षत्र बनकर
ख़ुश रहेगें हम दोनो मदमाते प्रमुदित ऐश्वर्य में
इस दुनियां से दूर बस जायेंगे अदृश्य कोटर में
अपनी हिक़मत से एक नई उज्ज्वल सृष्टि बसायेंगे-
चल आज शर्म को नंगा करते हैं,
प्यार को भी शर्मिन्दा करते हैं,
इंच दर इंच उतरुं तुझमे चिर के सन्नाटों को,
चल आज मिल के सिसकारियों को जिंदा करते हैं।।-
अपनें ही गिराते हैं, नशेमन पे बिजलियाँ,
तोड़ के दिल को लाते हैं, लबों पे सिसकियाँ,
फिर बनते हैं ऐसे, कि कोई बात ही न हो,
कैसै बनाए उनके साथ अपना आशियाँ।
कब तक दिल सहे, ज़मानें भर की ठोकरें,
अपनो नें भरी हो जब, जीवन में नफ़रतें,
बात वफ़ा और प्यार की, किताबों तक रही,
कुछ एक पल बनें, जीवन भर की नेंमतें।
तल्ख होते दिलों की, इन्सानियत मरी,
बिजली चमक के अपने, दामन में आ गिरी,
चल फिर रही हैं लाशें, ज़िन्दगी कहाँ गई,
इन्सानियत दिलों की आप ही, काफ़ूर हो गई।
खुदा के देखते ही देखते, दौलत खुदा बनीं,
वो ऊपर देखता रहा और परछाइयाँ छुपीं,
अंधेरे नें डाली चादर, जब बेमानियाँ भरी,
बूँद टपक के खून की, धरती में जा मिली।
रोकर उठेंगे हाथ अब, खुदा के ही सामनें,
इस उम्मीद पे कि आ जाएगा, वो हमको थामनें,
पैदा करे न हमको वो, कयामत तक भी कभी,
या फिर दे एक दुनियाँ, इन्सानियत भरी।
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॥ खिड़कियाँ ॥
कभी घर के अन्दर की खामोशी,
तो कभी बाहर का शोर दिखाती हैं,
खिड़कियाँ भी कितनी राज़दार होती है,
कभी बताती, कभी सब छुपाती हैं!!
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काश.........!
कोई सुन पाता ख़ामोश सिसकियां मेरी
आवाज़ करके रोना मुझे आज भी नही आता।-