जब मैं तुमको पहला तोहफ़ा दूंगी वो मैं तुम्हें न देकर मां को दूंगी ,। क्योंकि तुम उनके बिना कुछ भी नहीं तो तुमसे , पहले हमेशा मां होगी । और वो न तुम्हारी मां होगी ,न मेरी होगी वो बस हमारी मां होगी ।।
बड़े घर की बहूओं को सबकुछ मिलता है बिना उनके मांगे ही , सिवाय वो बस नहीं मिलता जो वो चाहती है । उन्हें लाद तो दिया जाता है सोने के जवाहरातों से , लेकिन उन्हें आजादी नहीं होती बाहर जाने की । उस मंगलसूत्र की गांठ बंधते हैं ही वह कैद हो जाती है एक आलिशान घर में । उन विदाई के आंसुओं के साथ- साथ में बह जाती है उनकी ठहाके वाली हंसी। वो दोतरफा वचन लिए तो जाते हैं यकीनन वो एकतरफा होते हैं । उसके सपनों को उसी चौखट में दफना दिया जाता है जहां उसका होता है गृह प्रवेश । रहने होता उसे उस घर में खुश होकर क्योंकि वो एक बड़े घर की बहू जो होती है ।।