मैं चाहता हूँ तेरी मोहब्बत मिरा वो हाल करे,
कि ख़्वाब में भी हालत को दोबारा बहाल करे।
मैं ठीक-ठाक हूँ वो भी ना कोई सवाल करे,
मुस्कुरा कि उम्र-ए-रवाँ अपना जमाल करे।
धूप भी गई हार जिसके साफ़-ओ-शफ़्फ़ाफ़ से,
और तिरे नाम से अंधेरी रातें भी मलाल करे।
ऐसे मंज़र से तो बचने को निग़ाह ऊपर किए,
अब ऐसे में तो तिरी ज़ुल्फ़ कुछ कमाल करे।
तिरे सामने ग़ैर कि बातें ठुकराए या क़ुबूल करे,
तुझसे चाह है कि तिरे तबस्सुम मिरा ख़्याल करे।
शबें बीत रही सुन मेरी चाहतों के किनारे पर,
मर मिटें है की चाहतों का अब तू निहाल करे।
तू भी चाह की कोई मुझसा तिरा देख भाल करे,
राज़ी हूँ राह-ए-ख़ुदा कि तुझसा आँखें लाल करे।
दिए लब उन्हें की मशहूर हो गई वो ज़मीं अब,
सोचूँ माह-रू ऐसी क्या मिरा उम्र भर हाल करे।
पैरों में तिरे रहना होगा मुझको पसंद क्योंकि,
भूल जाऊँ वादे तो आँख मिलाना ना मुहाल करे।
-