उम्मीद-ए-मुलाक़ात कि इबारत लिख आया,
निकाह से पहले ये बात मैं लिख आया,
हर एक जुर्म में तुम मेरा हाथ लिख देना,
तिरा नाम मैं अपने साथ-साथ लिख आया।
[ कैप्शन में पढ़े पूरा ]-
इलाहाबाद 👣 (01-08-2002) 🌍
X-Kvian (All.🔄Lko.)
Hi. Hello. Hola. Ola. Bonjour. Ci... read more
तेरी झुलझुल झुमकों ने मुझको लुभा लिया
तेरे जिस्म की खुशबू ने मुझको चुरा लिया
तेरी आँखों की गहराई में डूबा हुआ मैं
जैसे समंदर ने किनारा छुरा लिया
तेरी मुस्कान में खिली थी बहारें सारी
जिनकी ख़ुशबू ने मेरा जी भरा लिया
तेरी यादों की गलियों में कुछ खोता रहा
मगर खुद को ही खोकर तेरा करा लिया
जिसको देखा झुमकों में पहली नज़र भर
उस पल से मैंने तेरा दिल पुरा लिया
तेरी बातों की शिरीनी ने मुझको घर बना दिया
तेरे अल्फ़ाज़ की मीठास ने मेरा जी लुभा लिया
तेरी मुस्कुराहटों में छुपी है खुशियों की दुनिया
जिसकी किरणों ने मेरे अंधेरे को मिटा लिया
तेरी चाल पे मेरा दिल किया गया है निसार
जिसकी लहरों ने मेरे वजूद को हिला दिया
उनकी बाहों में आकर मैंने सुकून को पा लिया
जिसके गले ने मुझको अपना ही बना लिया
तुझसे जुदा होकर मैं जीना नहीं चाहता
तेरे साथ ही मेरा दिल कभी सही लगा लिया-
मैं चाहता हूँ तेरी मोहब्बत मिरा वो हाल करे,
कि ख़्वाब में भी हालत को दोबारा बहाल करे।
मैं ठीक-ठाक हूँ वो भी ना कोई सवाल करे,
मुस्कुरा कि उम्र-ए-रवाँ अपना जमाल करे।
धूप भी गई हार जिसके साफ़-ओ-शफ़्फ़ाफ़ से,
और तिरे नाम से अंधेरी रातें भी मलाल करे।
ऐसे मंज़र से तो बचने को निग़ाह ऊपर किए,
अब ऐसे में तो तिरी ज़ुल्फ़ कुछ कमाल करे।
तिरे सामने ग़ैर कि बातें ठुकराए या क़ुबूल करे,
तुझसे चाह है कि तिरे तबस्सुम मिरा ख़्याल करे।
शबें बीत रही सुन मेरी चाहतों के किनारे पर,
मर मिटें है की चाहतों का अब तू निहाल करे।
तू भी चाह की कोई मुझसा तिरा देख भाल करे,
राज़ी हूँ राह-ए-ख़ुदा कि तुझसा आँखें लाल करे।
दिए लब उन्हें की मशहूर हो गई वो ज़मीं अब,
सोचूँ माह-रू ऐसी क्या मिरा उम्र भर हाल करे।
पैरों में तिरे रहना होगा मुझको पसंद क्योंकि,
भूल जाऊँ वादे तो आँख मिलाना ना मुहाल करे।-
मैं काग़ज़ों पर कुछ लफ़्ज़ लिखूँ अपने पहचान लेते हैं,
लोग समझदार है कि अपना मतलब पहचान लेते हैं।
हंस-हंसकर इसी तरह शहर को तनहा ही जान लेते हैं,
शायद यूहीं ख़ुद को बुरा कहकर ही चादर तान लेते हैं।
ख़्वाबों कि तलाश में हम पलकों का क़र्ज़ उतार लेते हैं,
नींद पूरी होती है उनकें लबों पर आँखें इत्मीनान लेते हैं।
उनकें इंतज़ार में वक़्त को पैरों तले दाब बलीदान लेते हैं,
जब बसंत के पत्ते उनकें चेहरे पर सादगी छान लेते हैं।
इश्क़ जाने किस चीज़ का है मिलते ही पहचान लेते हैं,
उनकें लबों का स्वाद मेरे होंठों से हर रोज़ बयान लेते हैं।
कोई आस-पास हो तो इश्क़ में बेईमान मान लेते हैं,
कि उस को मानते हैं ‘प्रदीप’ जिस को जान लेते हैं।
मुझे ख़रीद कर मत पढ़ना न ऐसा एहसान लेते हैं,
ज़ीस्त इतनी नंगी है की झूठा एहसान पहचान लेते हैं।-
तू जतन करता तो मैं बीमारी नहीं होती,
तिरे ख़ून से अलग़ ख़ुद-दारी नहीं होती।
जज्बातों को कभी किसी ने समझा नहीं,
समझते तो ऐसी कोई नादानी नहीं होती।
बापू कुछ भी कर लेना ग़द्दारी नहीं होती,
मोहब्बत है इससे कोई शादी नहीं होती।
बता मैंने मानी है बातें सारी तेरी या नहीं,
देख सियासती कोई समझदारी नहीं होती।
बराती के रूह से रूह कि शादी नहीं होती,
ख़ज़ाने से ख़ुशियों कि गिरफ्तारी नहीं होती।
भाई की पसंद से सभी तैयारी में थे की,
मिरे ख़्वाब न होते अज़ा-दारी नहीं होती।
तख्त या सिंहासन से सौदागरी नहीं होती,
मुआ'मलात-ए-मोहब्बत मक्कारी नहीं होती।
दुनिया के तमाशों से क्या लेना-देना मेरा,
क्या सोचेंगे लोग यें दुनियादारी नहीं होती।
सुलाया है फ़क़त ख़ाना खिला पिलाकर तूने,
यूँही अश्क़ ख़ुश्क कर सिसकारी नहीं होती।
फ़ितरत लूटने कि फ़क़त फ़िरक़ा-परस्ती क्यूँ,
तेरे ख्याल से ही मेरी खुशहाली नहीं होती।
मैं खुदसे ख़ुद की पहचान बनाना चाहती हूं,
किसी की परछाईं में पहचान छुपानी नहीं होती।-
मुस्कराहट से फूलों की ओढ़नी बिछती रही,
नूर के नग़्मे बिखेर भी सरकार हटती रही।
एक शाम उनकीं महक किरदार से उतरी क्या,
यूं ही ख़ुशबूएँ ख़ुरच कर मुझमें बसती रही।
रात भर बारिशें खिड़कियों से गुज़रती रही,
क़तरा-क़तरा उनका दीदार बरसती रही।
मेरी निगाहें उनकीं निगाहों से सरकती रही,
उन्हें ख़बर ही क्या कैसे इतवार कटती रही।
परदेस में दूर कहीं उनकीं पायलें खनकी फिर,
साँस-दर-साँस बिजलियों कि तार चमकती रही।
जहाँ वो आँखें मिरा इंतिज़ार करती रही,
अब मासूमियत के ठेकेदार-नीं बहकती रही।
ख़्यालों की धज़्ज़ियाँ यादों में कसकती रही,
उनकें बिना बारिशें भी बेकार ही बरसती रही।
एक रोज़ गुलशन में महक लहराती हुई उतरी,
आदाओं कि घटा घनघोर तुम्हें तकती रही।-
ज़रा समझ लूँ तो लिखूँ मुझमें कौन हूँ मैं,
यहाँ आया हूँ और यहीं लूटा जाऊँ मैं।
ततहीर-ए-ज़ात से ज़ात गुज़र ज़ाए मेरी,
ज़ात बनकर मुक़म्मर यूं मुतजल्ला जाऊँ मैं।
जीते-जी भी इश्क़ में क्या डर जाना,
ग़र जीते-जी ये ख़बर पहुँचा जाऊँ मैं।
कि खुश्बू तिरे बातों की फैली थी महफ़िल में,
कब तलक सफ़र-दर-सफ़र मारा जाऊँ मैं।
इस ख़ामोशी से यादों में बस जाऊँ मैं,
अपना हश्र इश्क़ में ग़र डूबा जाऊँ मैं।
सुबह चमकूँ शाम ढले फिर सो जाऊँ मैं,
यूँ ही इश्क़ की राहों पर देखा जाऊँ मैं।-
तेरी मुलाक़ात ने ये क्या बना दिया,
आँधी था और तूने हवा बना दिया।
तेरी इक हंसी की मीठी खुशबू ने,
मेरे जिस्त को इतना सजा दिया।
निशस्त इश्क में पहली बार मिले,
और तूने गले लगा ख़ज़ीना बना दिया।
तेरी बाहों में आकर पाया सुकून मैंने,
तेरी महक से मैखाना बना लिया।
जुल्फों की चमन में खो गई जान मेरी,
कि तिरे ख़ुलूस ने ज़िंदा बचा लिया।
नए रास्तों में नई मंज़िलें हो गईं,
पुराने ख्वाबों को धुआं बना लिया।
मुश्ताक़-ए-दीद ने जो न देखा यक-बारगी,
वो अस्ल में ख़्वाबों का चेहरा बना दिया।
'प्रदीप' उन आँखों की तारीफ़ करे कैसे,
जिन्होंने उक़्बा को भी दीवाना बना लिया।-
मुझे तुम्हारी मोहब्बत में रातें कितनी खुमारी लगे,
उम्र की बहारें ये हसीन मुझको तेरे संग गुज़ारी लगे।
बुलबुलों की तरह दिल गुनगुनाए बस तेरे लिए,
तेरी मुस्कान पे हर ग़ज़ल भी मुझको प्यारी लगे।
रातों की रौशनी में निगाह-ए-हसरत बाद-ए-बहारी लगे,
चाँदनी बनकर चमकती है बातें तो कभी छुरी कटारी लगे।
कोई दम में भरे आहें तो कोई उसे देख कुँवारी लगे,
उसने देखा कि हमने मारी आँख फिर दीन-दारी लगे।
क्या रसीली है क्या है प्यारी आँखे की शिकारी लगे,
यक़ीनन सपनों की मल्लिकाए भी तुम्हारी हज़ारी लगे।
देखो तो कैसे शौक़ हैं की कैफ़ियत भी प्यारी लगे,
मोहब्बत में हर क़दम हर लम्हा अब तो ख्वाबी लगे।
मुसलसल ही हर नफ़स का गुज़रना भी भारी लगे,
गुज़ारे कुछ संग मगर गुज़ारने बैठे तो उम्र सारी लगे।
इलाज 'प्रदीप' के उदासियों का ये है की वो भी तुम्हारी लगे,
मोहब्बत ब्योपार तो वोही ग़र उनका 'प्रदीप' मदारी लगे।
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