Pradeep Yadav   (Prawontgodeep)
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Joined 26 November 2019


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4 HOURS AGO

तेरी मुलाक़ात ने ये क्या बना दिया,
आँधी था और तूने हवा बना दिया।

तेरी इक हंसी की मीठी खुशबू ने,
मेरे जिस्त को इतना सजा दिया।

निशस्त इश्क में पहली बार मिले,
और तूने गले लगा ख़ज़ीना बना दिया।

तेरी बाहों में आकर पाया सुकून मैंने,
तेरी महक से मैखाना बना लिया।

जुल्फों की चमन में खो गई जान मेरी,
कि तिरे ख़ुलूस ने ज़िंदा बचा लिया।

नए रास्तों में नई मंज़िलें हो गईं,
पुराने ख्वाबों को धुआं बना लिया।

मुश्ताक़-ए-दीद ने जो न देखा यक-बारगी,
वो अस्ल में ख़्वाबों का चेहरा बना दिया।

'प्रदीप' उन आँखों की तारीफ़ करे कैसे,
जिन्होंने उक़्बा को भी दीवाना बना लिया।

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24 APR AT 9:07

ईश्वरीयता~







[कैप्शन में पढ़ें]

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22 APR AT 7:25

मुझे तुम्हारी मोहब्बत में रातें कितनी खुमारी लगे,
उम्र की बहारें ये हसीन मुझको तेरे संग गुज़ारी लगे।

बुलबुलों की तरह दिल गुनगुनाए बस तेरे लिए,
तेरी मुस्कान पे हर ग़ज़ल भी मुझको प्यारी लगे।

रातों की रौशनी में निगाह-ए-हसरत बाद-ए-बहारी लगे,
चाँदनी बनकर चमकती है बातें तो कभी छुरी कटारी लगे।

कोई दम में भरे आहें तो कोई उसे देख कुँवारी लगे,
उसने देखा कि हमने मारी आँख फिर दीन-दारी लगे।

क्या रसीली है क्या है प्यारी आँखे की शिकारी लगे,
यक़ीनन सपनों की मल्लिकाए भी तुम्हारी हज़ारी लगे।

देखो तो कैसे शौक़ हैं की कैफ़ियत भी प्यारी लगे,
मोहब्बत में हर क़दम हर लम्हा अब तो ख्वाबी लगे।

मुसलसल ही हर नफ़स का गुज़रना भी भारी लगे,
गुज़ारे कुछ संग मगर गुज़ारने बैठे तो उम्र सारी लगे।

इलाज 'प्रदीप' के उदासियों का ये है की वो भी तुम्हारी लगे,
मोहब्बत ब्योपार तो वोही ग़र उनका 'प्रदीप' मदारी लगे।

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17 APR AT 10:01

मुरादों में~




[कैप्शन में पढ़ें]

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15 APR AT 9:00

तुझे ज़ीस्त में पाकर क्या हादिसा हुआ है,
मिरे ज़ीस्त में फ़स्ल-ए-गुल महका हुआ है।

कहना ये भी ग़लत नहीं जुनूँ इश्क़ का था मेरा,
तू उतरी सराब सी और समुंदर बहका हुआ है।

तिरी निगाह ने हल्का सा नक़्श छोड़ा हुआ है,
मिरे नज़रों में इश्क़ कुछ और गहरा हुआ है।

झुलस-झुलसकर अंजाम-कार निशाँ छोड़े ग़र,
सबा तिरे एहसासों का मुद्दतों से ज़हरा हुआ है।

किस फ़िक्र में दिल ये अंदाज़ा-ए-सहरा हुआ है,
पाकर खो देने का मिरे ख़्वाबों पर पहरा हुआ है।

बस इक रात से मिरे घर में चाँद उतरा हुआ है,
तबसे ही ये दिल तिरे चेहरे पर ठहरा हुआ है।

दीदा-ए-शौक़ में बे-वजह क्या दरबहरा हुआ है,
इश्क़ में तिरे कलम भी साग़र-ए-सहबा हुआ है।

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13 APR AT 8:14

सोचता हूँ फूँक दूँ शहर की इस शहर में क्या करूँ,
शहर में तिरा भी घर नहीं तो ख़ौफ़-ए-सहर का क्या करूँ।










[ In Caption ]

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11 APR AT 9:06

मैं चाहता हूँ तेरी मोहब्बत मिरा वो हाल करे,
कि ख़्वाब में भी हालत को दोबारा बहाल करे।

मैं ठीक-ठाक हूँ वो भी ना कोई सवाल करे,
मुस्कुरा कि उम्र-ए-रवाँ अपना जमाल करे।

धूप भी गई हार जिसके साफ़-ओ-शफ़्फ़ाफ़ से,
और तिरे नाम से अंधेरी रातें भी मलाल करे।

ऐसे मंज़र से तो बचने को निग़ाह ऊपर किए,
अब ऐसे में तो तिरी ज़ुल्फ़ कुछ कमाल करे।

तिरे सामने ग़ैर कि बातें ठुकराए या क़ुबूल करे,
तुझसे चाह है कि तिरे तबस्सुम मिरा ख़्याल करे।

शबें बीत रही सुन मेरी चाहतों के किनारे पर,
मर मिटें है की चाहतों का अब तू निहाल करे।

तू भी चाह की कोई मुझसा तिरा देख भाल करे,
राज़ी हूँ राह-ए-ख़ुदा कि तुझसा आँखें लाल करे।

दिए लब उन्हें की मशहूर हो गई वो ज़मीं अब,
सोचूँ माह-रू ऐसी क्या मिरा उम्र भर हाल करे।

पैरों में तिरे रहना होगा मुझको पसंद क्योंकि,
भूल जाऊँ वादे तो आँख मिलाना ना मुहाल करे।

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9 APR AT 10:10

मिरा दर्द भी देखो तिरा सुरमई रंग ले जाता है,
चुप चुप रह कर सहने से तो इंसाँ भी मर जाता है।

किस तरह लोग चले जाते हैं उठ कर चुप-चाप,
तिरे महफ़िल से उठकर चले तो घर आ जाता है।

इश्क़ के दश्त में प्यासे इंसाँ का भी मन भर जाता है,
तिरा इश्क़ नश्शे से प्यासा ज़मीर यूहीं तर जाता है।

जाए कोई उसका भी हाल जाकर देखे क्या मुझसा है,
जानूँ कोई हमराह इश्क़ निभाते उम्र भर जाता है।

ग़ैर से मिलना हँस हँस कर किरदार में कर जाता है,
एक शख़्स रहा जिससे ‘प्रदीप’ सर-ता-सर जाता है।

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7 APR AT 21:07

उम्मीद-ए-मुलाक़ात कि इबारत लिख आया,
निकाह से पहले ये बात मैं लिख आया,
हर एक जुर्म में तुम मेरा हाथ लिख देना,
तिरा नाम मैं अपने साथ-साथ लिख आया।







[In caption]

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23 DEC 2022 AT 18:34

नसब की ज़बान है ऊँची तो जरा ख़ामोश रह लेंगे,
ख़ामोश जो ज़मीं पर रहे हैं महवश से कैसे बोलेंगे।

जो ना-शुनीदा लफ़्ज़ रहे रंग-ए-सुख़न में घोलेंगे,
चेहरा देख गुप-चुप रहे मगर तेरी तस्वीर से बोलेंगे,
जाने कब तक तिरी तस्वीर में रही निगाहें मेरी,
इक हवा की लहर आए ऐसी की पूरे तेरे हो लेंगे।

तुम नहीं बोलती हो तो मत बोलो हम भी नहीं बोलेंगे,
रुख़ पे हवा के हो लिए तो पलकों को दरिया से धोलेंगे,
तेरे रूठने पर संसार निसार रहे अपनी नाव डुबो लेंगे,
तुम जो यूं ही और दूर रहे तो हम राहों में कांटे बो लेंगे।

सो कर उठ गए हैं ख्वाबों से तेरे सोचा है आज रात को,
चांद की पिघलती हुई चांदनी में हम बस तुमको देखेंगे।

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