दिन की रौशनी में
हँसते मुस्कुराते चहरे
रात के आँचल में लिपटते ही
क्यूँ बन जाते हैं
दीवारों पर रेंगते
जिस्म पिपासु साए...
घात लगाए
दबोच लेने को आतुर
नोंचने पर आमादा
हर वह जिस्म
जिसमें हो हरारत
कच्चा, पक्का, जीवित, मृत...
इन निशाचरों की बदबू में
क्यों घुली मिली सी होती है
किसी अपने की महक
अक्सर...-
हर लम्हे में तू है और एक तेरी ही
मौजूदगी के एहसास से दिन मुकम्मल होता है
फिर रात वापस घेर लेती है एक तेरे ही साये में.....-
जाने वाले को,
कौन रोक पाया है।
जिसने भी पाया,
बस साया पाया है।
भूलने की कोशिश,
कितनी भी करो,
कोई ना कोई याद,
जरूर दिलाया है।-
यहां दरख़्तों के साये में धूप लगती है
ये जिंदगी है जनाब रो-रो कर हंसती है
-
गहरी काली आँखें उसकी,
रेशम जैसे बाल,
बन्द आंखों में ही,
एक चेहरा सा बन पाता है।
आंखे खुल जायें,
तो सबकुछ,
दूर-दूर हो जाता है।
बस उसके हाथों का स्पर्श,
जो गालो को छूकर,
खुशबू का वो मधुर अहसास
मुझे देकर जाता है।
मेरे चहुदिश ही रहकर,
न जाने क्यों वह,
मुझको बहुत बताता है।
एक बार फिर से,
अंधेरे के साये में,
बन्द आँखों की खिड़की पर,
मेरा ख्वाब अधूरा रह जाता है।-
दिल कह रहा अब,
साकी को शर्मिंदा किया जाएं,
तेरी जुल्फो के साये,
तेरे लबों का ज़ाम पिया जाए-
उजालों के साये,
कुछ और पास आए,
जिंदगी के अंधेरों में,
जब अचानक,
तुम नज़र आये..!
आशाओं के दिये,
जल उठे उदास राहों पर,
गुनगुना उठी थी जिंदगी,
तुम्हे क्या खबर?
ऐ बेख़बर!!-
तुम्हारी यादों के साये
आज भी मुझसे मोहब्बत निभाते हैं
वो मुझे तन्हा नही रहने देते ....-