Rahul Mani Tiwari   (राहुल मणि तिवारी)
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"मणि"🖋️
Joined 27 May 2020


"मणि"🖋️
Joined 27 May 2020
1 JUN 2021 AT 20:56

उससे कुछ रंग उधार लूँगा मैं
मेरे महबूब के कई रंग हैं

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28 MAY 2021 AT 14:07

जिंदा रहने के लिए ज़िंदगी दे
ख़ुदा मुझको बहुत से दुश्मन दे

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1 MAY 2021 AT 11:23

लौट कर उस गली फिर नहीं गया
मैं जहाँ गया मुक़म्मल नहीं गया

घर की दीवारों पे दरार अभीं है
जेंहन से ग़ुर्बत का डर नहीं गया

बादल बरस रहे हैं तो इसमे नया क्या
नदी से मिलने कभी सागर नहीं गया

मैं बुरा हूँ और मुझे बुरा ही रहने दो
अच्छा आदमी इस ज़माने से हंस कर नहीं गया

हुई बारिश तो बह गई सड़कें और मकाँ
कई दिन तक शहर से दलदल नहीं गया

सोचता हूं क्या सच में जिंदा हैं हम
ज़िंदगी से मौत का डर नहीं गया

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27 NOV 2020 AT 10:47

कुछ तो बयाँ करता है तेरा ख़ामोश यूँ होना
तेरे बदन से रिसता लहू तेरा हर वक्त दर्द में होना

तेरे जिस्म का ठंडापन तेरा साँस ना लेना
तेरी आँख का पानी तेरा लाश सा होना

तेरे होंठ की कंपन, यूँ ख़ुद को नोचते रहना
तेरे लफ़्ज़ की थकन, यूँ ख़ुद को कोसते रहना

नींद से डर के उठकर बस तेरा चीखते रहना
ख़ुद में ख़ुद को समेट कर सबसे फ़ासला रखना

कुछ तो बयाँ करता है तेरा ख़ामोश यूँ होना
तेरे बदन से रिसता लहू तेरा हर वक्त दर्द में होना

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2 OCT 2020 AT 14:51

क्या लिखूं क्या ना लिखूं
सब लिख दिया अब क्या लिखूं

लाश लिखूं या श्मशान लिखूं
किसी लड़की का दर्द, उसकी आवाज़ लिखूं

जला Face, acid attack लिखूं
Rape लिखूं या सारे समाज पे मैं Case करूं

गंदे लोग, गंदी सोच लिखूं
जलती रात या काली सुबह लिखूं

चीख़ लिखूं या खून लिखूं
निर्वस्त्र बदन, उसकी टीस लिखूं

तितली के नोच पंख जो ख़ुश हुए,
उन दरिंदों का असली भेष लिखूं

मुकदमों की अगली तारीख़ लिखूं
कितने साल के बाद का इंसाफ लिखूं

अपने कानून की सारी गंदी बात लिखूं
और कितने हालात या ज़ज्बात लिखूं

मैं रो पड़ा ये लिखते हुए
और क्या लिखूं कैसे लिखूं?

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21 SEP 2020 AT 13:24

किसी को ग़म,
किसी को हया,
किसी को अना, तोड़ देती है
समुंदर रेत का बना क़िला तोड़ देती है

तोड़ देती है तूफ़ान दरख़्त को जड़ों से
कभी फूल भी आईने तोड़ देती है

होती नहीं हया दरिंदों में नोच लेते है पंख
तितली तड़पती कर दम तोड़ देती है

मैं नींद में हूँ और मुझे नींद में ही रहने दो
खुली आंखें ख़्वाबों को जल्दी तोड़ देती है

कई मर्तबा देखा है हमने ऐसा भी
कुछ औरतें घर जोड़ती हैं कुछ तोड़ देती हैं

मोहब्बत की बात पे हर बार जिस्म मांग लेना
जिस्म की भूख प्रेम की पवित्रता तोड़ देती है

उसका नाम लिख कर कलम तोड़ दिया हमने,
जैसे अदालतें सज़ा-ए-मौत में कलम तोड़ देती है

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10 AUG 2020 AT 14:39

अब हर चीज़ में सियासत हो गई है |
हर काम में रिश्वत जरूरी हो गई है ||

लगी है हर तरफ नफरतों की आग |
इस गर्मी में बरसात जरूरी हो गई है ||

लोग इतने दिन से अपने घर में हैं अब |
ये कैसी बीमारी शहर में आ गई है ||

देखा है कई मां-बाप को करते हुए बच्चों में भेद-भाव |
ना जाने कितनी बेटियों की "भ्रूण हत्या" हो गई है ||

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31 JUL 2020 AT 9:46

तुम मेरी तस्वीर अपने साथ में रखना
दूर जाओ हमसे गर तो भी राब्ता रखना

तुम्हारे घर से गुज़रे हम और तुम बदनाम हो जाओ
इससे बेहतर है तुम्हारी गली से फ़ासला रखना

कभी मेरी आँखों में भी देखो ख़ुद को
अच्छा नहीं हर वक़्त सामने आईना रखना

पेश आता नहीं हूं अपनों से मैं आज-कल सलीक़े से
मैं चाहता हूं ख़ुद से सबको ख़फ़ा ही रखना

होती नहीं हर हसरत पूरी इस जहां में सबकी
ज़रूरी है अपने दिल में थोड़ा हौसला रखना

आँखें खोल कर क्या करूँ जो तेरा दीदार ही ना हो
मैं चाहता हूं इन आँखों को उम्र-भर मूँद कर रखना

तेरा दिया फूल मेरी तिजोरी के अंदर है
मेरी आदत नहीं क़ीमती चीज़ किताबों में रखना

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21 JUL 2020 AT 13:03

बहुत मिली खुशियां तो हम रो पड़े
ज़िंदगी से ज़िंदगी में लड़ पड़े
नहीं कोई ख़्वाहिश अब मेरी
सब ख़्वाहिशों को मार कर, हम रो पड़े

वो हम से दूर जाना चाहता था
हम ही उसके रास्ते से हट गए
की उसको भूलने कि काफ़ी कोशिशें
कलाई काट ली अपनी, हम रो पड़े

बेज़ार कर गया और बेकार कर गया
वो मुझको बंजर रेगिस्तान कर गया
जला कर राख कर गया वो शहर चराग़ों का
देख कर तीरगी चारो तरफ, हम रो पड़े

जिस्म को छलनी रूह ख़ाक कर गया
वो मुझको जला कर राख कर गया
उसने कहा जो हुआ भूल जाओ
हालात पे हंसते हुए अपनी, हम रो पड़े

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14 JUL 2020 AT 10:42

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