अक्ल पे उनकी आता है मुझको तरस
चलती साँसों को जो ज़िंदगी कहते हैं
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"तुम इतना छोटा छोटा क्यों लिखते हो?"
"साँसे भी कम हैं और शब्द भी।"-
जग दूषित मत कीजिये, साँसें हैं वरदान
स्वच्छता को अपनाकर, बढ़ता है इन्सान-
कभी यूँहीं, जब हुईं, बोझल साँसें
भर आयी बैठे बैठे, जब यूँ ही आँखें
तभी मचल के, प्यार से चल के
छुए कोई मुझे पर नज़र न आए...-
भले तूँ मुझको यार कहे, पर क्यों तेरी सुनूं
मैं भी हूँ मुसाफिर प्यारे, रस्ता देख के चलूं-
जीवन देने वाले का हम पर एहसान हैं,
फिर भी न जाने क्यूँ देह का झूठा अभिमान हैं
नेकी पर चल, बदी से डर ए बंदे,
क्यूँकि कर्म ही तेरी पहचान हैं।
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वो दिन वो पल,
मुझे आज भी याद है
जब तुम
अज़नबी से खास हो गई !
जब से तेरी यादों को,
संजोने क्या लगा
लगता है दिल का तुम,
हर एक एहसास हो गई !
पता नहीं हमारे बीच में,
ऐसा क्या था
जो तुम मेरे दिल के,
इतने पास हो गई !
तुम्हारी देह का,
तो मुझे पता नहीं
पर मेरी देह की,
तुम हर सांस हो गई......!-