भेजे थे जो गुल उसका कोई जबाब आए
चश्मों'सुकूँ के वास्ते कोई आदाब आए।
बड़े एहतमाद से पैगामे'उल्फ़त को खड़ा
वस्ल की राहों में ओढ़े वो हिज़ाब आए।
मेरे पिंदारे'भ्रम का भी उनकों ख्याल आए
लग के गले मेरे हिस्से का तो सवाब आए।
आरजुएं'जुस्तजू का कुछ सबब मिल जाए
बहारे'पयाम में लिपटा वो माहताब आए।
ए'जाजे'लम्स से मेरा रोम रोम खिल जाना
आँखें मूंदे बैठा हूँ कब तेरा ख़्वाब आए।-
किसी हसीन शाम का ख़्वाब लगते हो तुम
मेरे हर सवालों का जवाब लगते हो तुम
नहीं मुझे चाह मिले कोई खुदा क्योंकि
हर बुराई को मिटाने वाला सवाब लगते हो तुम!!-
सवाब का एक काम आज मैं भी कर आया
सिक्के नहीं थे मेरे पास
एक फ़क़ीर को अपनी 'नज़्म' सुना आया
- साकेत गर्ग 'सागा'-
क्या अज़ाब,क्या सवाब,जब मज्लिस में सवाल ये सामने आया।
एक मज़लूम शख्स ने उठा रोटी का इक निवाला यह फ़रमाया।
जो मेरे अपनों को भी मयस्सर न करा पाऊँ यह तो, है अज़ाब।
जो किसी भूखे को भरपेट खिला,उसकी भूख मिटाऊँ तो सवाब।-
2122 1212 22/112
जीस्त में आए अब अज़ाब नहीं,
मैंने इतने किए सवाब नहीं।
नेकी कर के हमेशा भूली मैं,
इसका रक्खा कोई हिसाब नहीं।
आपकी खूबियों के हैं कायल,
सच कहूँ आपका जवाब नहीं।
ख़्वाब में भी सनम नहीं आएं,
इतने भी दिन अभी ख़राब नहीं।
शेर सारे ग़ज़ल में अच्छे हों,
इससे बढ़ कर कोई ख़िताब नहीं।
गज़लें हम आप की सभी पढ़ते,
अब पढ़ें कैसे जब क़िताब नहीं।
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शबाब में ही ढुंढो सवाब का रश्ता
कोन क्या कर रहा है रब सब जानता..-
दबी कहीं किताब के, गुलाब में ही रह गई
महक पुराने प्यार की, किताब में ही रह गई
ये आज तक हुआ नहीं, यकीं कभी मिली थी वो
मिली जो ख़्वाब सी हमें, वो ख़्वाब में ही रह गई
न जाने क्या थी दुश्मनी, हमारी छत से अब्र को
छुपी कहीं वो चांदनी, हिजाब में ही रह गई
ये ऊँच-नीच, जात-पात, दरमियाँ खड़े रहे
बने हुए वो हड्डी जो, कबाब में ही रह गई
अता सभी को हो गई, नसीब में लिखी थी जो
हमारी हर खुशी लिखी, हिसाब में ही रह गई
कुछ इत्तिफाक यूँ रहे, मिले हमेशा मय-कदे
बची खुची ये ज़िन्दगी, शराब में ही रह गई
सवाल का जवाब भी, मिला सवाल सा हमें
उलझ के सारी बात फिर, जवाब में ही रह गई
गुनाह से बड़ी मिली, सज़ा हमें यहाँ 'असर'
कमी कहीं ज़रूर फिर, सवाब में ही रह गई
Hitendra_Asar-
हुस्न ऐसा गोया शराब लगता है,
उससे मिलना बिल्कुल सवाब लगता है।
मैं उलझ जाता जब भी जिंदगी के सवालों में,
वो मुस्कुराता तो सीधा जवाब लगता है।
बातों से उसकी रस टपके है मुहब्बत के,
लब ऐसा की जैसे गुलाब लगता है।
जो देखा उसको तो सरल समझा सब कुछ,
मुश्किल उसके बोसों का हिसाब लगता है।
हो कर के भी पास उसके हुआ नहीं मैं कभी,
पाकिस्तान को जैसे कश्मीर ख़्वाब लगता है।
मांगा बहुत था दर ब दर उसे,
वो मिला ऐसे जीता हो खुदा का चुनाव लगता है।
सर से पैर तक नशे में झूम जाता मैं,
बे सुद होता ऐसे जैसे मेरे होंठों को शराब लगता है।
दिखता जब भी मुझको सर ए बाज़ार दिखता,
चेहरा उसका जैसे खुदा का रचाव लगता है।
रिश्ते बने ऐसे की जख्मों की कमी ना हुई,
कुछ दोस्तों में बिल्कुल मेरे दुश्मनों का सुभाव लगता है।
हार जाता था जब जब मैं दिन से,
मुझको सुकूं देता चेहरा तेरा बिल्कुल अलाव लगता है।
शाम ठहरती जब कुछ देर उसकी जुल्फों में,
हर शब मेरे गर्दन पर उसके होंठों का घाव लगता है।-
ज़िन्दगी इक किताब है, या कोई ख़्वाब है।
वो पास हो तो सवाब और दूर हो तो अज़ाब है।
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तेरी अदा का कुछ तो
सवाब उठाना चाहते थे।
हम शायद कुछ तो
तुझे जीना चाहते थे😒।।
तूने अपने पहलू में
हमको आने नहीं दिया।
हम तुझपे मरना चाहते थे
तूने जीने भी नहीं दिया😔।।— % &-