Rajneesh Bharti   (Rajneesh Raahi 'मुदित')
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Keep on doing mistakes....🤗🤗🤗
Joined 2 October 2020


Keep on doing mistakes....🤗🤗🤗
Joined 2 October 2020
24 JAN AT 7:08

16.11.24

ख्वाहिश बैठी रही ताउम्र।
अल्फाज़ों के पुल बनते रहे।
हक़ीक़त में शगुफ़्ता कोई मलाल नहीं।
ख्यालों के दायरे बने रहे।

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22 JAN AT 8:36

20.11.24
मौत इंतजार में है कहानी चल रही है ।
रात अज़ीब है उजालों में कट रही है ।

सुनकर उनकी ख़ामोशी बात बन रही है।
खाई गहरी थी बादलों से छट रही है ।

गुज़ारिश तमन्ना ईश्क कविता कर रही है।
आप खाम-म-खाह परेशानी कर रही है।

गोया जिंदगी बहानों पे चल रही है।
ये क्या कम है जिन ठिकानों पे कट रही है।

मुब़ारक हो तुम्हें कोई अंज़ाम-ए-गुलिस्ता ।
यहाँ दीमक लग रही है ।

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10 NOV 2024 AT 9:20

जीवन यात्रा है 😌
और भटक कर ही
राह मिलना है
तो प्रतीक्षा किसकी !

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5 NOV 2024 AT 20:56

14.05.24
पानी बह गया है
छिछला रह गया है
मार्ग टूटा नहीं
आगे बढ़ गया है
धारा से निकल
नदी के पैर उखड़ गए

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30 OCT 2023 AT 21:18

ऐसा नहीं कि घृणा है तुमसे
या कि कोई नाराज़गी है तुमसे।
मन बस शान्त हो गया है
ठहर गया है अगर गया है।

न गिराव है न उठाव है
अचानक जैसे सबकुछ जम गया है
मेरे लिए।
कुछ मुझमें हो गया है खो गया है
तुम्हारे लिए।

ज़मीन सुघर गया है बाग़ उघड़ गया है
कुछ भी हो पर अभिव्यंजति नहीं

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19 MAR 2023 AT 20:41

खिले चेहरे में जो खाली है।
कौन जाने उसमें किसकी निशानी है?

भिंगती सब के उर की मानी है।
छिपी उसमें किसीकी नादानी है!!

तुम्हारे भावों में जो पानी है।
जाने कितनी ही नदियों सी कहानी है।।

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23 JAN 2023 AT 7:20

23.01.20
विदा कर रहा हूँ तुम्हें अब

रहते रहते जहाँ मेरे
तुम न आए जिस मकां में मेरे
द्वार भी स्वागत का वहाँ
सजा है सजा ही रहेगा सदा

समझ उनको किसी और का
घाव खुद में कर रहा हूँ
जाते जाते मकां मेरी
खुद से विदा कर रहा हूँ

एहसास जिएँ जो सारे जहाँ
मैं वहीं उन्हें बंद कर रहा हूँ

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23 JAN 2023 AT 6:42

23.01.2020

थीं नहीं मगर मकान वो मेरे
छोड़ उनको आगे बढ़ रहा हूँ
समेट सारे तन सा सामान
मकान से मन ढो रहा हूँ

सजाए जिसमें हर कोने को मैंने
कभी तुम्हारे आने की राह में
मानकर इसे सिर्फ तुम्हारा ही
जा रहा हूँ ज़माने में कहीं

बन चुका हूँ जो बन्जारा कोई
है तो कोई और ठिकाना नहीं
मिट्टी मिट्टी हीं रहना है अब
रास्ते रास्ते ही ठहरना है अब

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15 JAN 2023 AT 18:06

23.01.20
विदा कर रहा हूँ तुम्हें अब
अब मैं नींद खोल रहा हूँ

सो रहा था मैं भावों में तेरे
अब मैं आँखे मीच रहा हूँ

थी कोई न नर्म राह बीच में
खींच खुद को बदल रहा हूँ

थे ईरादें अटल जितने भी मेरे
टाल उनको आगे बढ़ रहा हूँ

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1 JAN 2023 AT 11:55

नवनीत नित्य नित्य हो तुम्हारा
नववर्ष सहर्ष सरस बीते तुम्हारा

पुष्प पावन नूतन सी मेरे मन में
बाग बाग खिली सी रहो सदा
मानस मीत जग संबंधों की कहानी में
मिठास सी पात्र निभाती रहो सदा

इस जगह जिस जगह तुम रहो
या याद भी जाये उस जगह
सब जगह प्यारी पल सी रहो
तुम खुश रहो तुम खुश रहो।

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