करूँ क्या क्या मैं बयाँ हाल-ए-दिल जो है निहाँ ख़ुद से भी कहते नहीं हैं बेबस हुई है सिसकियाँ ख़ामोशी का ओढ़े कफ़न बेहिस हुए जज़्ब जो थे अयाँ दर्द का एहसास होता नहीं संग हुए हैं जिस्म-ओ-जाँ जो कहूँ किसी से कभी दिल फफक पड़ता है मिरा इसीलिए बस चुप मैं रहूँ ख़ामोशी को गले से लगा