Ansh Indian   (माँ का अंश)
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Joined 30 January 2019

3 HOURS AGO

ख़त-ओ-किताबत से इतर भी रूह से रब्तगी निभाई जाती है
ख़ामोश दुआओं संग खामोशी से वाबस्तगी निभाई जाती है

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5 HOURS AGO

तकल्लुफ़ और बे-तकल्लुफ़ी को करके दरकिनार
अजनबिय्यत को हमराह बना ज़ीस्त-ए-सफ़र तय किया जाए

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6 HOURS AGO

ऐ गुलिस्तान-ए-ज़िंदगी तिरी इनायत ही तो है हम पर
जो अता करती है तू ख़ार के दरमियाँ भी महक-ए-गुल

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17 APR AT 21:45

तिरी पुर-ख़ुलूस मोहब्बत की ताबिंदगी से ही रौशन है मिरी दुनिया
तिरे ही रंग-ओ-आहंग के बाकी है अब मुझमे निशान ओ मिरी माँ

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14 APR AT 22:15

करूँ क्या क्या मैं बयाँ
हाल-ए-दिल जो है निहाँ
ख़ुद से भी कहते नहीं हैं
बेबस हुई है सिसकियाँ
ख़ामोशी का ओढ़े कफ़न
बेहिस हुए जज़्ब जो थे अयाँ
दर्द का एहसास होता नहीं
संग हुए हैं जिस्म-ओ-जाँ
जो कहूँ किसी से कभी
दिल फफक पड़ता है मिरा
इसीलिए बस चुप मैं रहूँ
ख़ामोशी को गले से लगा

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13 APR AT 7:25

ओ मिरी प्यारी माँ वाबस्ता हैं मिरी ज़िन्दगी में तुमसे ही रंग-ओ-नूर सारे
तिरे रुख-ए-रौशन के सदके ही अब मुस्कुरा कर दिन गुजरते हैं हमारे

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13 APR AT 7:12

ये बांवरा मन भी हैं बड़ा चितचोर
कभी ख़मोश है,तो कभी करे शोर

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12 APR AT 21:53

मिरे ज़ेहन और दिल पे मुसलसल तारी रहता जिसका ख़याल है
मिरी जान-ए-जाँ,नूर-ए-'ऐन,ओ माँ तिरा ही तो रौशन-जमाल है

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11 APR AT 21:25

मैं थी अनगढ़ माटी, तूने ही तो गढ़ा मुझको माँ
तिरी ममता की नमी ही मुझे अब संजोए हुए है

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20 MAR AT 21:27

माँ

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