जरूरत की सड़क बनाने के लिए
अक्सर सपनों का डामर बिछ जाता है!-
बेतहाशा भागती सड़कों पे हमारी दुनिया
रौंदती हौसलों को भूख की मारी दुनिया
बदस्तूर है ऐ ज़िन्दगी, नाज़-ओ-नखरे तेरे
चाशनी में लिपटी, आज भी खारी दुनिया !-
दुर्घटना से क्यों डरू मै
तेरा पीछा करू मैं
काल भी मेरा क्या कर लेगा।
मौत से ना डरू मै।
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एक नई सड़क***
सदियों से चल रहे
अब उखड़ने लगी,
उड़ उड़ कर धूल
मुंह पर गिरने लगी….
भाग रहे हैं सब और
चलने के लिए
वही सुस्त नियम.....
नए नियमों के साथ
एक नई सड़क
अब तो बननी चाहिए…
छायादार, घना
बरगद का पेड़,
शीतल जल का प्याऊ,और
वो आम का पेड़,
जो लगाया था शायद
मेरे दादा के परदादा ने….
उन्हें सहेज लें और
उखाड़ फैंके बाकी
सब झाड़- झंखड….
समय आ गया
नए रूप बाली
एक नई सड़क,
हर घर तक
अब तो बननी चाहिए….
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बरसाती हो तुम प्यार की बारिश,
तभी बह पाता हूं टूटकर सड़क जैसे।
मुंबई जैसा है इश्क़ हमारा।-
वो सड़क, जो जाती थी,
दूसरों को सही रास्ता दिखाने की तरफ,
उसे मैं पीछे छोड़ आया हूं,
...जबसे मालूम हुआ कि
मैं खुद ही गलत रास्ते पर हूं।-
शहर की हर इक गली में ढूंढते फिरते रहे हम,
मंजिलों की सड़क तो दिमाग़ में से निकलती थी ।-
बड़प्पन में जाने कितनों की चमक खो गई,
हवा भी यहां पत्ते के लिए एक सड़क हो गई।-
देखता हूँ लोगों को सर से पाँव तक
कुछ इस तरह मैं नियत भाँप जाता हूँ-
तलबगार अट्टालिकाओं में जो बैठे हैं!
रहगुजर वो सड़कों पर भी कर लेते है,
जाने कितनी मंजिलों का सड़कें राबता,
और वहीं, कितनों का ये रैन-बसेरा है।
अंधियारे में सोलर लाइट के सहारे...
कभी अंडरपास, कभी सब-वे के किनारे
कभी घुम्मकड़, ले सिग्नल पर डेरा डाले,
...बड़े शहरों में बसी गुमनाम जिंदगियां।
ठंड में ठिठुरते, बारिश में भींगते और,
धूप चिलचिलाती तब छांव को तड़पते,
मजबूर महकमों में छुपते, दबे, पिछड़े,
बहरे प्रजापाल, अपरिहार्य भूले-लाल।-