Shree   (A journey of thoughts)
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Joined 8 June 2021


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26 JUN AT 8:37

मेरा सुकून
मेरी मोहब्बत का रूसूख़
मेरा लिबास
मेरी शोहबत की कैफ़ियत
मेरा एहसास
मेरी आज़माइश की उड़ान
मेरा अंदाज़
मेरी इबादत का है ठहराव
मेरा इश्क
मेरी दुआओं का अंजाम
मेरी किस्मत
मेरी आगोश़ में तेरा असबाब

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13 JUN AT 8:05

पत्थर से प्यार ना हो कभी यार
पतझड़ में ठहरी है बहार कब
पहाड़ सी विरहन, तरसता मन

पहरे नज़रों की राहों में बिछाए
सोचे मन सपनों की ओट लिए
बंजर घर और सूने आंगन बुहारे

कहते बादल, कहते तारे-सागर
कहे आंचल, कहता तन-धड़कन
इंतज़ार फले कब, ना फूले चंदन

अधर अबोल और अंतर सजल
शनै: शनै: हुआ स्थिर मन चंचल
खुशबू इतरा देख हुई है ओझल

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6 MAY AT 22:06

करे तो क्या करे
दिल ये जान कर...
हर ख्वाहिश को
सच मान कर...
कह दूं जो भी है
दबी आहटों की गूंज में...
हर दीदार में छुपी
फ़ुर्सत भरी तेरी नज़र में...
ख़ुशहाल थी दुनिया हमारी
तेरी आरजू के जूनून में....
बातें भरी थी सन्न आंखों में
रतज़गे ख़्वाबों की पनाहों में!

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4 MAY AT 0:50





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2 MAY AT 0:21

एक समंदर हो ऐसा कि डूब जाए दिल का दरिया...
एक समंदर हो ऐसा कि डूब जाए दिल का दरिया...
वक़्त बेवक्त लबालब जाम सा छलक जाता है...
ना जाने कब पिघल जाए, ज़माना नाबाद हो जाए...
एक आरज़ू हंसने की सरेआम बे-आबरू न कर जाए!

एक समंदर हो ऐसा कि डूब जाए दिल का दरिया...
एक समंदर हो ऐसा कि डूब जाए दिल का दरिया...
बड़े होश में उठकर चले थे जाने जां कहां पहुंचने को,
वो बेख़ौफ़ ख़्वाबों की उड़ानों... और उफ़ानों पर...
ये चांदनी खलिश बन ना बरसे मोम के आशियाने पर!

एक समंदर हो ऐसा कि डूब जाए दिल का दरिया...
एक समंदर हो ऐसा कि डूब जाए दिल का दरिया...
तबाही वाजिब सवालों की और झूठी नुमाइश की
ऐवज में गिरवी पड़े नसीबों के फंदे नाखुश आशियाने
आगोश में तू गले लग जाये.. सूख जाए दिल का दरिया!!

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23 APR AT 7:52

Once again!
Broken ribs won't realign
to the mercy of politics
Stopped breaths won't revive
to breathe it's air...

Once again!
It's all over black much before
it could have been red
Counted numbers don't match
and, it's not fair....

Once again!
Hatred over love and peace
Religion over language and reach
Oh Mercy! melt the glaciers
Not a world I wish to be!

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18 APR AT 20:45


जी, कैसे जिए जिंदगी मेरी
कहना है कह रहे नहीं
जीना है जी काहे रहे नहीं
लफ़्ज़ों की चाशनी तेरी

सुन-सुन लगे नाज़नीन बड़ी
बहरूपिया चढ़े दोपहिया
ख्वाबों आरज़ू माहरु बड़ी
लफ़्ज़ों की चाशनी तेरी

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14 APR AT 21:22

काॅंटों का भी वजूद है,
इश्क़ का ये उसूल है
बांटते ख़्वाब-ओ-दिलकशी,
अहबाब मशगूल है
ऊबी सी रुसी सी
दबे पांव चौखट की ओट में
देखती है चांद को...
अमावस की बाट जोह,
सिलवटों में चादर की
ढूंढने लगी टूटे केश...
सेंकतीं कलेजे को जो
उस ठंडक में अलस है
बैठे-बिठाए खो गई...
ये बरसों की तलब है!!

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13 APR AT 23:36

वो सारी किताबें कहती है
तुम पुरानी आदतें छोड़ दो
और नई आदतें बनाओ
बदलाव लाओ जिंदगी में

जिद्द देखो आसमान की
जिद्द देख लो जमीन की
जित देखो उत जिद्द देखो
जिद्दी वहमी इस मन की

खरोंचे बैठा है मन कोमल
घनी छांव को छांटते पागल
जाने किस बात का मुवक्किल
बन दिन-रात सिर्फ़ ख़िलाफत

अंतर तमस में बहरी अक्ल
अरमां अपने कर रहा कत्ल
सबको अच्छा सोच-सोच कर
सर्वस्व भूला हुआ है बोझिल

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1 APR AT 0:08

Like a storm you stretched your wings
Fondling and fiddling waves you drove
A quarter of the year swayed with you
A tremble a fumble of the dreams due
A note to remember, a flute to rebuke
A piece of mirage, a gallactic devore...
A minimalistic tender tribute to anarch
A farewell commitment to dear March!

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