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Thoughts । Emotions । Musings
Poetry । Quote... read more
एक समंदर हो ऐसा कि डूब जाए दिल का दरिया...
एक समंदर हो ऐसा कि डूब जाए दिल का दरिया...
वक़्त बेवक्त लबालब जाम सा छलक जाता है...
ना जाने कब पिघल जाए, ज़माना नाबाद हो जाए...
एक आरज़ू हंसने की सरेआम बे-आबरू न कर जाए!
एक समंदर हो ऐसा कि डूब जाए दिल का दरिया...
एक समंदर हो ऐसा कि डूब जाए दिल का दरिया...
बड़े होश में उठकर चले थे जाने जां कहां पहुंचने को,
वो बेख़ौफ़ ख़्वाबों की उड़ानों... और उफ़ानों पर...
ये चांदनी खलिश बन ना बरसे मोम के आशियाने पर!
एक समंदर हो ऐसा कि डूब जाए दिल का दरिया...
एक समंदर हो ऐसा कि डूब जाए दिल का दरिया...
तबाही वाजिब सवालों की और झूठी नुमाइश की
ऐवज में गिरवी पड़े नसीबों के फंदे नाखुश आशियाने
आगोश में तू गले लग जाये.. सूख जाए दिल का दरिया!!-
Once again!
Broken ribs won't realign
to the mercy of politics
Stopped breaths won't revive
to breathe it's air...
Once again!
It's all over black much before
it could have been red
Counted numbers don't match
and, it's not fair....
Once again!
Hatred over love and peace
Religion over language and reach
Oh Mercy! melt the glaciers
Not a world I wish to be!-
जी, कैसे जिए जिंदगी मेरी
कहना है कह रहे नहीं
जीना है जी काहे रहे नहीं
लफ़्ज़ों की चाशनी तेरी
सुन-सुन लगे नाज़नीन बड़ी
बहरूपिया चढ़े दोपहिया
ख्वाबों आरज़ू माहरु बड़ी
लफ़्ज़ों की चाशनी तेरी
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काॅंटों का भी वजूद है,
इश्क़ का ये उसूल है
बांटते ख़्वाब-ओ-दिलकशी,
अहबाब मशगूल है
ऊबी सी रुसी सी
दबे पांव चौखट की ओट में
देखती है चांद को...
अमावस की बाट जोह,
सिलवटों में चादर की
ढूंढने लगी टूटे केश...
सेंकतीं कलेजे को जो
उस ठंडक में अलस है
बैठे-बिठाए खो गई...
ये बरसों की तलब है!!-
वो सारी किताबें कहती है
तुम पुरानी आदतें छोड़ दो
और नई आदतें बनाओ
बदलाव लाओ जिंदगी में
जिद्द देखो आसमान की
जिद्द देख लो जमीन की
जित देखो उत जिद्द देखो
जिद्दी वहमी इस मन की
खरोंचे बैठा है मन कोमल
घनी छांव को छांटते पागल
जाने किस बात का मुवक्किल
बन दिन-रात सिर्फ़ ख़िलाफत
अंतर तमस में बहरी अक्ल
अरमां अपने कर रहा कत्ल
सबको अच्छा सोच-सोच कर
सर्वस्व भूला हुआ है बोझिल-
Like a storm you stretched your wings
Fondling and fiddling waves you drove
A quarter of the year swayed with you
A tremble a fumble of the dreams due
A note to remember, a flute to rebuke
A piece of mirage, a gallactic devore...
A minimalistic tender tribute to anarch
A farewell commitment to dear March!
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बातों में छलक आता
मन का गुलाम बेहया सुकून है
हुकूमतें मोहब्बतों को
मुनासिब यक़ीनन यहां नहीं है!
आजीज़ लख़्त-ए-ज़िगर
तोड़कर बंदिशें सदी की
चिल्ला-झल्ला कर खोया
चंद हंसी के टुकड़ों को!-
वक्त के तराशे हुए माहिर अदाकार
कहते कहते रुक जाते हैं हम
दर्द हुआ पर दर्द नहीं है बरकरार
ऐसा ही बस जताते है हम
खुश रखें हर चेहरे को गुलज़ार
हमारा ये गुलशन रहे अब
तिनके से भारी सब अपेक्षाएं
किस किस के नाम करें
सब ठीक है कह कर इच्छाएं
किस नदी में प्रवाह करें-
तेरी तस्वीर को ऐसे देखती हूं कि
शायद ये पल गुज़र ना जाए कहीं
तेरी तस्वीर को ऐसे देखती हूं कि
आने वाला पल शायद आए ही ना कभी
जो तू मिल जाए तो उस पल ख़ुद को
महसूस बिल्कुल कर ही ना पाऊं कहीं
तू पुकारे और तेरी आवाज़ को
पहुंचाने वाली हवा बंद पड़ जाए ना कहीं
प्यास ये उम्र भर की उन चंद पलों में
शायद बुझ ना पाए कहीं
छुअन से पुलकित रोम-रोम होश में
शायद फ़िर ना आए कभी-