या यूं कहूं खुद से मिलना
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कुछ कुछ मुझसे मिलते हैं
बाहर से शांत पर
अंदर से बेचैन फिरते हैं
कोई समझे तो समझे
नहीं तो बेपरवाह दिखते हैं
कहना तो बहुत कुछ चाहें पर
आवाजों के जंगल से डरते हैं-
देख आदमी के रंग जिंदगी हैरान है
यही सोच सोच हो रही परेशान है
रंग बदलना तो है उसकी फितरत
उससे भी आगे ये कौन मेहरबान है
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डरावना सत्य
अतुल सुभाष जो बेंगलुरु की एक कंपनी में आईटी इंजीनियर का काम करता था, ने सुसाइड से पहले अपने लगभग 80 मिनट के वीडियो में अपने ऊपर अपनी पत्नी तथा ससुराल वालों के अत्याचारों के बारे में खुलकर बात की कि कैसे उसे एक एटीएम मशीन की तरह इस्तेमाल किया जा रहा था, उसके ऊपर विभिन्न धाराओं में केस दर्ज किए गए थे और कहीं उसकी सुनवाई नहीं हो रही थी ।जब इस तरह का कोई मामला हमारे सामने आता है तो हम अति संवेदनशील हो उठते हैं और एक तरफा होकर सोचने लगते हैं।-
धड़ाम से गिरते देखा
आज उस बड़े पेड़ को
जो खड़ा था,ठीक
मेरी खिड़की के सामने,,,,
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खिदमतगार जब बगल की कब्र में आकर सो गया
एक हुक्मरान मर कर भी, एक और मौत मर गया।।-
किताबों में रखे गुलाब किसे अच्छे नहीं लगते
यादों के ये नर्म लिहाफ किसे अच्छे नहीं लगते
खाली खाली सा लगता है ये आसमान
तारों के ये अंबार किसे अच्छे नहीं लगते
पक्की ईंट के हों या कच्ची मिट्टी के
ये अपने घर जनाब किसे अच्छे नहीं लगते
एक अरसा हुआ उन्हें छूटे,फिर भी
साथी वो नादान किसे अच्छे नहीं लगते
आज भी जिनके लिए दिल मचल जाए
कागज़ के वो नाव भला किसे अच्छे नहीं लगते
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सांस की हर आहट में तुम
मेरी मुस्कुराहट में तुम
तनहाई के शोर में तुम
तो शोर की खामोशी में भी तुम...
अब कैसे कह दूं,
की मैं तुम्हारे साथ नहीं होती......
जागूं तो सोच में तुम
सो जाऊं तो खवाव में तुम
हर एहसास में तुम
मेरी हर ख्वाहिश में तुम...
अब कैसे कह दूं,
की तुमसे मुलाकात नहीं होती.....
मेरी कविता में तुम
कविता के हर लफ्ज़ में तुम
उसके रस में तुम
तो उसके श्रृंगार में भी तुम
अब कैसे कह दूं
की तुमसे बात नहीं होती-